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Maha Shivratri 2024: महाशिवरात्रि पर प्रदोष का संयोग, देवघर में बाबा बैद्यनाथ पर अविवाहित चढ़ाते हैं मोउर मुकुट

Maha Shivratri 2024: महाशिवरात्रि पर इस बार प्रदोष का संयोग बन रहा है. आठ मार्च को सूर्योदय के साथ प्रदोष शुरू होगा, जो दोपहर तक रहेगा. बाबा मंदिर के इस्टेट पुरोहित श्रीनाथ पंडित ने बताया कि इससे पहले महाशिवरात्रि से एक दिन पहले प्रदोष पड़ता था.

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 5, 2024 10:23 AM

Maha Shivratri 2024: देवघर: महाशिवरात्रि पर प्रदोष का संयोग बन रहा है. इससे पहले महाशिवरात्रि से एक दिन पहले प्रदोष पड़ता था. आठ मार्च को सूर्योदय के साथ प्रदोष शुरू होगा, जो दोपहर तक रहेगा. यह जानकारी बाबा मंदिर के इस्टेट पुरोहित श्रीनाथ पंडित ने दी. उन्होंने बताया कि दोपहर के बाद चतुर्दशी पड़ जायेगा, जो मध्य रात्रि तक रहेगा. दोनों दिन महादेव का खास दिन माना गया है. बाबा बैद्यनाथ को मनोकामनालिंग कहा गया है और यहां आने वाले भक्तों की बाबा हर मनोकामना पूर्ण करते हैं. इसी में एक खास है महाशिवरात्रि को बाबा पर मोउर मुकुट अर्पित करने की परंपरा. अविवाहित लोग इस दिन बाबा पर मोउर मुकुट चढ़ाकर शादी की कामना करते हैं. बाबा उनके मन की मुराद पूरी करते हैं.

बाबा पर पहले चढ़ाया जायेगा रोहिणी से आया मोउर मुकुट
मोरमुकुट शादी के दौरान वर एवं कन्या को पहनाया जाता है. शादी में सिंदूरदान के दौरान वर को मोउर तथा कन्या को मुकुट पहनाने की परंपरा है. महाशिवरात्रि के दिन रोहिणी से लाया गया मोउर मुकुट को सबसे पहले बाबा मंदिर के गुंबद पर भंडारी राजू द्वारा चढ़ाया जायेगा. उसके बाद आम लोगों के द्वारा मोउरमुकुट को चढ़ाने की परंपरा शुरू होगी.

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दो तरह से मोउर मुकुट चढ़ाने की परंपरा
पंडित जी बताते हैं कि दो तरह से चढ़ाने की परंपरा है. पहला इस खास दिन पर आकर कोई अविवाहित शादी होने पर मोउर मुकुट चढ़ाने की मन्नत रखता है और एक साल के अंदर उसकी शादी हो जाती है तब वह अगले साल आकर मोउर मुकुट चढ़ाता है. दूसरा, मोउर मुकुट चढ़ाकर मन्नत की कामना करने का विधान है. चढ़ाये गये मोउर मुकुट बाबा दशहरा यानी महाशिवरात्रि के नौ दिन बाद खोला जाता है.

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मोउर मुकुट की खूब होती है खरीद-बिक्री
बाबा मंदिर के पश्चिम द्वार पर अहले सुबह तीन बजे से ही मोउर मुकुट बेचने वालों की कई दुकानें लग जाती है. दुकानों में 20 से 100 रुपये तक मोउर मुकुट खरीदकर भंडारी से बाबा मंदिर के शिखर पर चढ़वाएंगे. यह परंपरा रात के नौ बजे तक जलार्पण होने तक जारी रहेगी.

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