9 साल की उम्र में खो दी थी सुनने की क्षमता, फिर अपने संघर्ष से ऐसे बनी पहली मूक बधिर अधिवक्ता

मुंबई की रहने वाली 45 साल की सौदामीनी पेठे ने नया कीर्तिमान रचा है, वो दिल्ली बार काउंसिल में प्रैक्टिस करने वाली पहली बधिर अधिवक्ता बन गयी हैं. वह जल्द ही भारतीय सांकेतिक भाषा (आइएसएल) दुभाषिए के जरिये अदालत में जिरह करती नजर आयेंगी

By Prabhat Khabar News Desk | December 19, 2022 1:14 PM

विकलांगता चाहे कैसी भी, लेकिन हौसले की ताकत सबको पछाड़ देती है. समाज में कई ऐसे लोग हैं, जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में शिखर पर पहुंचकर विकलांगता को न सिर्फ ठेंगा दिखाया है, बल्कि अपने जैसे लोगों के लिए एक मिसाल पेश की है. इस कड़ी में अब सौदामिनी पेठे का भी नाम जुड़ गया है. एलएलबी के बाद वह दिल्ली बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन कराने वाली पहली बधिर अधिवक्ता बन गयी हैं. अपनी इस कामयाबी से सौदामिनी उन मूक बधिर युवक-युवतियों के लिए प्रेरणास्रोत बन गयी हैं, जो वकालत के क्षेत्र में करियर बनाना चाहते हैं.

छोटी-सी उम्र में ही सुनने की क्षमता खो देने वालीं 45 वर्षीया सौदामिनी पेठे ने हाल ही में एलएलबी की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली बार काउंसिल में अपना रजिस्ट्रेशन कराया है. इसके साथ ही वकालत के क्षेत्र में उन्होंने नया कीर्तिमान रच डाला है. वह दिल्ली बार काउंसिल में प्रैक्टिस करने वाली पहली बधिर अधिवक्ता बन गयी हैं. वह जल्द ही भारतीय सांकेतिक भाषा (आइएसएल) दुभाषिए के जरिये अदालत में जिरह करती नजर आयेंगी.

अब वह सुनने में अक्षम लोगों के अधिकारों के लिए काम करने के साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा एवं न्याय तक उनकी पहुंच सुनिश्चित करने में मदद करना चाहती हैं. साथ ही वह कानूनी पेशे में शामिल होने के लिए मूक बधिर युवाओं को प्रेरित करना चाहती हैं.

नौ साल की उम्र में खो दी सुनने की क्षमता

सौदामिनी का जन्म साल 1977 में मुंबई के डोंबिवली में हुआ था. उनके पिता का नाम विश्वास संत और माता का नाम मृदुला है. उनके पिता भारतीय रिजर्व बैंक में सहायक प्रबंधक के पद पर तैनात थे. सौदामिनी का शुरुआती बचपन सामान्य बच्चों की तरह ही बीता. बचपन में वह अपने माता-पिता की बातों को सुनकर, पढ़कर और समझकर बड़ी हुईं. उस दौरान वह अपने आसपास में बच्चों के साथ खूब खेलती और पढ़ती थीं.

मगर, उनकी जिंदगी में एक ऐसा पल आया, जब वह निराश हो गयीं. जब वह नौ वर्ष की थी, तो उन्हें मैनिंजाइटिस नामक बीमारी हो गयी. हाइ पावर की दवा खाने की वजह से धीरे-धीरे उनकी सुनने की क्षमता कम होती चली गयी. नतीजतन, उनकी सुनने की क्षमता कम हो गयी. बावजूद इसके उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई सामान्य बच्चों के साथ ही पूरी की. हालांकि, इस दौरान उन्हें काफी परेशानी का भी सामना करना पड़ा.

सामान्य बच्चों के बीच एक बधिर छात्रा के रूप में एसएच जोंधले हाइ स्कूल में उनका अनुभव कभी-कभी काफी अलग था. उन्हें खुद पढ़ाई करनी पड़ती थी. शिक्षक क्या पढ़ा रहे थे, वह सुन नहीं पा रही थीं. उन्हें अपने दम पर पढ़ाई करनी थी. उन्होंने गाइड खरीदी और दोस्तों से नोट्स बनाने में मदद ली. उनके शिक्षक भी काफी प्रोत्साहित करते थे.

नोएडा डेफ सोसायटी में लंबे समय तक की नौकरी

तमाम परेशानियों के बावजूद सौदामिनी ने कभी हार नहीं माना. स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में बीए और साल 2000 में एमए की डिग्री हासिल कीं. इसी बीच उन्होंने यशदीप पेठे (43) से शादी कर ली. वे भी बधिर थे. यशदीप इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन में बतौर कार्यकारी के रूप में गुजरात में तैनात थे. फिर ट्रांसफर होने के बाद दोनों फरीदाबाद शिफ्ट हो गये.

इस बीच आर्थिक रूप से खुद को साबित करने के लिए सौदामिनी ने नोएडा डेफ सोसायटी में डॉक्यूमेंटेशन का काम किया. उस दौरान वह होठों को पढ़कर और कभी-कभी लिखकर लोगों से संवाद करती थीं. साल 2008 में उन्होंने आइएसएल सीखना शुरू किया. इसके साथ उन्होंने ग्रीटिंग कार्ड कॉपीराइटर के रूप में भी काम किया. फिलहाल, वह वर्तमान में बधिर महिलाओं के अखिल भारतीय फाउंडेशन में निदेशक और एक्सेस मंत्रा फाउंडेशन में ट्रस्टी हैं.

मन में यूं आया एलएलबी की पढ़ाई करने का विचार

सौदामिनी के मन में एलएलबी करने का विचार उस समय आया, जब उन्हें एक ऑनलाइन वर्कशॉप में हिस्सा लेने का मौका मिला. उस वर्कशॉप में अमेरिका के बधिर लोग भी जुड़े हुए थे. उस दौरान पता चला कि अमेरिका में करीब 500 ऐसे बधिर लोग हैं, जो एलएलबी करने के बाद कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे हैं. इसके बाद सौदामिनी ने भी ठान लिया कि जब अमेरिका के लोग ऐसा कर सकते हैं, तो हम भारतीय क्यों नहीं कर सकते. इसके बाद उन्होंने फरीदाबाद के इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ एंड रिसर्च में एलएलबी में दाखिला ले लिया. सौदामिनी ने इसी साल अगस्त में एलएलबी की डिग्री हासिल की है.

बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन के दौरान बेटे ने की मदद

एलएलबी करने के बाद सौदामिनी के लिए यहां तक पहुंचना इतना आसान नहीं था, लेकिन उनके बेटे ने उनकी काफी मदद की. विश्वविद्यालय में दाखिले संबंधी औपचारिकताओं को पूरा करने, कोर्ट में हलफनामा दायर करने और संबंधित ऑथोरिटी से मीटिंग कराने से लेकर हर मोर्चे पर उनके बेटे ने साथ दिया. दसवीं की प्री-बोर्ड परीक्षा होने के बावजूद बेटे ने अपनी मां के लिए दुभाषिए का काम किया. उस दौरान सौदामिनी को पता चला कि बार काउंसिल में दिव्यांगों के लिए न तो कोई कैटेगरी है और न ही कोई रिजर्वेशन की व्यवस्था है. इसके बाद उन्होंने तय कर लिया कि इस मुद्दे को वह राष्ट्रीय स्तर पर जरूर उठायेंगी.

मूक बधिर समुदाय को अधिकार दिलाना लक्ष्य

दिल्ली बार काउंसिल से जुड़ने के बाद सौदामिनी कहती हैं, ‘मैं अपने लक्ष्य पर काम कर रही हूं और मूक बधिर लोगों को उनके अधिकार दिलाने के लिए अपनी कानून की डिग्री का इस्तेमाल करना चाहती हूं. मैं जीवन के हरेक पहलू, भले ही वह शिक्षा हो, स्वास्थ्य सेवा हो, करियर हो या सबसे महत्वपूर्ण न्याय की बात हो, मैं देश में बधिर समुदाय के हक और अधिकार के लिए लड़ाई लड़ना चाहती हूं.’

प्रस्तुति: देवेंद्र कुमार

Next Article

Exit mobile version