मुंबई: बंबई हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने एक महिला को आदेश दिया है कि वह अपने पूर्व पति को तीन हजार रुपये गुजारा भत्ता दे, क्योंकि उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. महिला जिस स्कूल में टीचर की नौकरी करती है, उसे भी कोर्ट ने निर्देश दिया कि उसकी सैलरी से हर महीने पांच हजार रुपये काटे जायें और उन्हें अदालत में जमा कराया जाये.
ऐसा इसलिए कि महिला ने अदालत के आदेश के बावजूद अगस्त 2017 से अपने से अलग रह रहे पति को गुजारा भत्ता नहीं दिया है. औरंगाबाद हाईकोर्ट में जस्टिस भारती डांगरे की बेंच ने इस केस में नांदेड़ की निचली अदालत के आदेशों को सही करार देते हुए कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 और 25 निर्धन पति या पत्नी को भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार प्रदान करती है.
पूर्व पति को अंतरिम राहत देते हुए हाईकोर्ट ने महिला की दलील खारिज कर दी. महिला के वकील ने दलील दी थी कि दोनों के बीच तलाक पहले ही हो चुका था. गुजारा-भत्ता देने का आदेश बाद में जारी किया गया.
Also Read: बंबई हाईकोर्ट ने दिया बड़ा फैसला: माता-पिता के जिंदा रहते बेटों का प्रॉपर्टी पर कोई हक नहीं
दोनों का विवाह 17 अप्रैल, 1992 को हुआ था. शादी के कुछ सालों बाद पत्नी ने क्रूरता को आधार बनाते हुए कोर्ट से इस शादी को भंग करने की मांग की थी, जिसे वर्ष 2015 में स्थानीय कोर्ट ने मंजूरी दे दी. तलाक के बाद पति ने नांदेड़ की निचली अदालत में याचिका दायर करते हुए कहा कि उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और पत्नी के पास जॉब है, जिसे देखते हुए उसने पत्नी से 15,000 रुपये प्रति माह की दर से स्थायी गुजारा भत्ता देने की मांग की. पति का तर्क था कि उसके पास नौकरी नहीं है जबकि उसकी पत्नी पढ़ी लिखी है.
पति ने याचिका दायर करते हुए दावा किया कि उसने पत्नी को पढ़ाने में काफी योगदान दिया है. उसने कहा कि पत्नी को पढ़ाने के लिए उसने अपनी कई महत्वाकांक्षाओं को दरकिनार किया और घर से जुड़ी चीजों को मैनेज किया था. पति ने दलील दी कि उसे स्वास्थ्य से जुड़ी कईं समस्याएं हैं, जिसकी वजह से उसकी सेहत ठीक नहीं रहती. दूसरी तरफ, उसकी पत्नी महीने का 30 हजार रुपये कमाती है.
एक तरफ जहां पति ने गुजारा भत्ता देने की अपील की, वहीं पत्नी का कहना था कि उसके पति के पास किराने की दुकान है. उसके पास एक ऑटो रिक्शा भी है. महिला ने कहा कि उसका पति उसकी कमाई पर निर्भर नहीं है, लेकिन इस रिश्ते से उसकी एक बेटी भी है, जो मां की कमाई पर निर्भर है. इसलिए पति द्वारा किये गये गुजारा भत्ता की मांग को खारिज किया जाना चाहिए.
पति-पत्नी की दलीलें सुनने के बाद निचली अदालत ने वर्ष 2017 में आदेश दिया कि महिला को अपने पति को 3,000 रुपये प्रति माह गुजारा भत्ता के रूप में भुगतान करना पड़ेगा. हालांकि, कोर्ट के आदेश के बाद भी महिला पूर्व पति को पैसे नहीं दे रही थी, जिसे देखते हुए वर्ष 2019 में एक और आदेश दिया गया, जिसमें कोर्ट ने आवेदन की तारीख से याचिका के निपटारे तक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया.
Posted By: Mithilesh Jha