मुंबई : बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस साल फीस वृद्धि पर रोक लगाने वाले सरकारी प्रस्ताव पर अंतरिम रोक लगाते हुए कहा कि महाराष्ट्र सरकार को निजी सहायता प्राप्त स्कूलों या अन्य बोर्डों के स्कूलों की फीस संरचना में हस्तक्षेप करने का आदेश जारी करने का अधिकार नहीं है. सरकार के प्रस्ताव (जीआर), 8 मई, 2020 को, राज्य के सभी शैक्षणिक संस्थानों को निर्देश दिया गया कि वे कोविड-19 (Covid-19) महामारी के मद्देनजर शैक्षणिक वर्ष 2020-21 के लिए अपनी फीस में वृद्धि न करें.
जस्टिस उज्ज्वल भुयान और रियाज छागला की खंडपीठ ने अपने आदेश में 26 जून को पारित किया, जिसकी एक प्रति मंगलवार को उपलब्ध कराई गई थी, यह कहा गया कि यह प्रथम दृष्टया विचार था कि जीआर बिना अधिकार क्षेत्र का था. अदालत ने कहा, ‘इसलिए, हमें लगता है कि निजी गैरसहायता प्राप्त स्कूलों का प्रबंधन छात्रों और अभिभावकों को ऐसी किस्तों में फीस का भुगतान करने के लिए विकल्प प्रदान करने पर विचार कर सकता है, जो उचित होने के साथ साथ उन्हें ऑनलाइन शुल्क का भुगतान करने का विकल्प प्रदान करने की अनुमति देता हो.
अदालत ने कहा कि महाराष्ट्र शैक्षिक संस्थान (शुल्क का विनियमन) अधिनियम की धारा पांच सरकार को सरकारी एवं सहायता प्राप्त स्कूलों में फीस विनियमन का अधिकार देती है. अदालत ने कहा कि अधिनियम की धारा छह यह स्पष्ट करती है कि निजी सहायता प्राप्त विद्यालयों एवं स्थायी रूप से गैर सहायता प्राप्त विद्यालयों का प्रबंधन अपने विद्यालयों में फीस का प्रस्ताव करने के लिए सक्षम होगा.
इसके साथ ही अदालत ने कहा कि महामारी रोग अधिनियम एवं महामारी रोग (संशोधन)अधिनियम तथा आपदा प्रबंधन अधिनियम में भी कहीं इस बात का जिक्र नहीं है या ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो राज्य सरकार को निजी गैर सहायता प्राप्त स्कूलों के फीस संबंधी व्यवस्था में हस्तक्षेप करने और इससे संबंधित प्रस्ताव जारी करने की शक्ति प्रदान करता हो.
अदालत ने सरकारी प्रस्ताव के कार्यान्वयन पर अंतरिम रोक लगा दी और मामले की सुनवाई अब 11 अगस्त को होगी. इससे पहले आठ मई को प्रदेश सरकार ने एक प्रस्ताव जारी कर सभी शैक्षिक संस्थानों को अकादमिक सत्र 20—21 के लिये फीस बढ़ाने पर रोक लगा दी थी. इसमें कहा गया था कि यह सभी बोर्डों के सभी माध्यमों के प्री प्राइमरी से 12वीं कक्षा तक के छात्र छात्राओं पर लागू होगा. सरकारी प्रस्ताव से क्षुब्ध विभिन्न बोर्डों के विभिन्न गैर सहायता प्राप्त स्कूलों, शैक्षिक ट्रस्टों के प्रतिनिधियों ने अदालत की शरण ली थी और सरकार के इस आदेश को रद्द किये जाने की मांग की थी.