मुंबई : एंटीलिया मामले का मुख्य आरोपी सचिन वाझे ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के सामने मनसुख हिरेन से जुड़े सारे राज उगल दिए. इस मामले की जांच में लगी एनआईए की मानें, तो निलंबित सहायक पुलिस निरीक्षक सचिन वाझे ने कथित तौर पर मनसुख हिरेन की हत्या इसलिए कर दी, क्योंकि वह इस मामले में सबसे कमजोर कड़ी था. अब तक की जांच के अनुसार, वाझे को इस बात का शक था कि मामला उसके हाथ से निकल रहा है और अगर ऐसा हुआ, तो हिरेन उसकी साजिश का पूरा राज उगल देगा.
जांच एजेंसी इस निष्कर्ष की ओर बढ़ रही है कि वाझे ने एंटीलिया के बाहर बम प्लांट करने की योजना बनाई थी, लेकिन एटीएस और एनआईए जैसी एजेंसियों ने हिरेन की स्कॉर्पियो चोरी होने की थ्योरी पर काम शुरू कर दिया था. खुद को बचाने के लिए वाझे ने हिरेन को इस मामले की जिम्मेदारी लेने के लिए कहा था. उसे मनाने की कोशिश की, लेकिन जब मनसुख हिरेन ने उसकी बात मानने से इनकार कर दिया, तो वाझे को उसकी योजना को विफल होती दिखने लगी.
एनआईए के एक अधिकारी ने बताया कि वाझे फर्जी सिम कार्ड और वाहनों पर बदली हुई नंबर प्लेट का इस्तेमाल कर रहा था. एंटीलिया के बाहर से बरामद की गई स्कॉर्पियो कार का चेसिस नंबर खरोंच दिया गया था, जिससे कार के मालिक का पता लगाना मुश्किल हो गया. इसके बावजूद एंटीलिया के बाहर विस्फोटक मिलने की रात में ही एटीएस ने मनसुख हिरेन को पकड़ लिया था. तब वाझे ने एटीएस को मनसुख हिरेन को छोड़ने के लिए कहा था.
एनआईए अधिकारी ने आगे कहा “सचिन वाझे को इस बात का अहसास था कि अन्य एजेंसियों की पूछताछ में मनसुख हिरेन टूट जाएगा. वो एक कमजोर कड़ी साबित होगा, क्योंकि उसने जिलेटिन की छड़ें लगाने की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया था. इसलिए हिरेन को खत्म करने के लिए वाझे ने एक योजना बनाई. यह योजना एक आत्महत्या की तरह लग रही थी, लेकिन मुंब्रा क्रीक में लो टाइड की वजह से लाश जल्द बरामद हो गई. हिरेन के परिवार को पता था कि वाझे ने पहले स्कॉर्पियो का इस्तेमाल किया था.
हालांकि, हिरेन की विसरा रिपोर्ट आना बाकी है, लेकिन सबूतों के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि हिरेन की हत्या कर दी गई थी. उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण नहीं बताया गया है. लिगचर निशान नहीं हैं, इसलिए गला घोंटने से मौत का कारण नहीं बनता है. जिन डॉक्टरों ने हिरेन का पोस्टमार्टम किया था, वे भी शव परीक्षण के दौरान कुछ खामियों के लिए जांच के दायरे में आ गए हैं.
सीसीटीवी फुटेज के कारण एजेंसियों को मामले में बड़ी सफलता मिली है. एटीएस के एक अधिकारी ने कहा कि एक एजेंसी को एक पत्र भेजा गया था, जिसमें कहा गया था कि अपराध के अगले 45 दिनों तक सीसीटीवी फुटेज को नष्ट नहीं करना है. अधिकारी ने कहा कि वाझे ने माना कि 30 दिनों में फुटेज हटा दी जाएगी. जब एनआईए जांच शुरू कर पाती, लेकिन हमने यह सुनिश्चित किया कि कोई सबूत न खो जाए.
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एनआईए अधिकारियों ने कहा कि सचिन वाझे के खिलाफ सबूत बढ़ रहे हैं और फॉरेंसिक सबूत उनके मामले को मजबूत करेंगे. एनआईए अभी भी उस कार का पता लगाने में जुटी है, जिसमें हिरेन को कथित तौर पर मुंब्रा क्रीक में फेंकने से पहले मार दिया गया था.
सचिन वाझे ने जब मुकेश अंबानी की एंटीलिया बिल्डिंग के बाहर जिलेटिन से भरी स्कॉर्पियो खड़ी करने की साजिश रची, तो अन्य फर्जी कामों के अलावा उन्होंने स्कॉर्पियो की मूल नंबर प्लेट को हटाकर उस पर आगे-पीछे फर्जी नंबर प्लेट लगा दीं. उसके चेसिस व इंजन नंबर भी इरेज करवाए. वाझे ने सोचा कि इतने फर्जीवाड़े के बाद कोई स्कॉर्पियो के मूल मालिक तक कभी नहीं पहुंच पाएगा, लेकिन एक कहावत की तरह कि हर अपराधी कोई न कोई अपना सुराग छोड़ ही जाता है, उन्होंने स्कॉर्पियो गाड़ी में अहम सुराग छोड़ दिया और वह था कि स्कॉर्पियो की एक कांच पर बहुत ही महीन सा लिखा गाड़ी का असली नंबर.
इस केस की जांच से जुड़े एक अधिकारी ने हमें बताया कि 25 फरवरी को देर शाम जब इस गाड़ी में जिलेटिन रखे जाने वाली बात सामने आई, तो बम निरोधक दस्ते और फॉरेंसिक टीम की जांच के बाद इस स्कॉर्पियो को मुकेश अंबानी की बिल्डिंग से हटाकर येलो गेट पुलिस के परिसर में खड़ा कर दिया गया. वहां क्राइम ब्रांच और एटीएस की अलग-अलग टीमें पहुंचीं. उनमें से एक अधिकारी की नजर स्कॉर्पियो के एक कांच पर पड़ी. उसमें बहुत ही छोटा-छोटा गाड़ी का नंबर लिखा हुआ था. उस अधिकारी ने उसका फोटो खींचा और फिर अपने सिस्टम में जाकर उस नंबर के मालिक का डिटेल निकाला.
जांच में यह भी पता चला कि यह डॉक्टर पीटर न्यूटन के नाम रजिस्टर्ड है. जब उनके लोगों तक जांच टीमें पहुंची, तो बताया गया कि कुछ पैसों के लेन-देन की वजह से यह गाड़ी तो पिछले तीन साल से हिरेन मनसुख के पास थी. फिर मनसुख को संपर्क किया गया, तो उन्होंने बताया कि उनकी गाड़ी 17 फरवरी को विक्रोली में चोरी हो गई थी और उन्होंने लोकल पुलिस स्टेशन में 18 फरवरी को एफआईआर भी करवाई थी.
इसके बाद जांच टीम विक्रोली पहुंची और एफआईआर दर्ज करनेवाले सब इंस्पेक्टर, उस वक्त के डयृटी अधिकारी और जांच अधिकारी से पूछताछ शुरू की, पर विक्रोली पुलिस की कहानी से पहले अभी स्कॉर्पियो की कहानी पर ही फोकस बरकरार रखते हैं. हिरेन मनसुख के परिवार वालों का कहना है कि यह स्कॉर्पियो सचिन वाझे के पास नवंबर से 5 फरवरी तक थी. मनसुख के परिवार वालों का यह भी कहना है कि खुद मनसुख भी इसे पिछले तीन साल से यूज कर रहे थे, लेकिन कमाल यह है कि न तो मनसुख तीन साल में और न ही सचिन वाझे चार महीने में स्कॉर्पियो के एक कांच पर बहुत बारीक से लिखे मूल नंबर को पढ़ पाए. इसलिए वाझे ने गाड़ी के नीचे आगे-पीछे तो फर्जी नंबर प्लेट लगा दिए, लेकिन कांच पर मूल नंबर का सुराग छोड़ गए.
Posted by : Vishwat Sen