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असली शिवसेना पर अब चुनाव आयोग करेगा फैसला, SC से उद्धव ठाकरे को झटका, एकनाथ शिंदे गुट की जीत

सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव ठाकरे की अर्जी को खारिज कर दिया है और चुनाव आयोग की कार्रवाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को इस मुद्दे पर फैसला लेने की मंजूरी दे दी है.

By ArbindKumar Mishra | September 27, 2022 5:26 PM

असली शिवसेना मुद्दे पर एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde ) गुट को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी जीत मिली है. जबकि उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray ) गुट को करारा झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव ठाकरे की अर्जी को खारिज कर दिया है और चुनाव आयोग की कार्रवाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को इस मुद्दे पर फैसला लेने की मंजूरी दे दी है.

उद्धव ठाकरे को करारा झटका

शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने विश्वास जताया था कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलेगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले बागी खेमे के साथ कानूनी लड़ाई में उन्हें करारी हार मिली है.

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पांच सदस्यीय संविधान पीठ कर रही थी शिंदे और ठाकरे गुट की याचिका पर सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने 23 अगस्त को शिवसेना और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की ओर से दाखिल याचिकाओं को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेज दिया था. जिनमें दलबदल, विलय और अयोग्यता से जुड़े कई संवैधानिक सवाल उठाए गए थे.

क्या है मामला

दरअसल मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अपनी गुट को असली शिवसेना बताया था. जिसके बाद उद्धव ठाकरे ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी थी कि निर्वाचन आयोग को असली शिवसेना मामले में शिंदे गुट के दावे पर निर्णय लेने से रोका जाए.

शिंदे ने किया था उद्धव ठाकरे के खिलाफ विद्रोह, महाराष्ट्र में गिर गयी महा विकास आघाड़ी सरकार

मालूम हो इसी साल जून में शिवसेना नेतृत्व के खिलाफ एकनाथ शिंदे और 39 अन्य विधायकों ने विद्रोह कर दिया, जिसके बाद उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास आघाड़ी सरकार गिर गई थी. शिंदे ने अपने समर्थक विधायकों के साथ बहुत दिन तक गुजरात और गुवाहाटी में समय गुजारा, फिर महाराष्ट्र लौटकर भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर नयी सरकार बनायी. जिसमें देवेंद्र फडणवीस ने 30 जून को उप मुख्यमंत्री और शिंदे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी.

शिंदे और ठाकरे ने दी थी ऐसी दलिल

उद्धव ठाकरे ने कहा था कि एकनाथ शिंदे गुट के विधायक किसी दूसरी पार्टी के साथ विलय करके की खुद को संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत अयोग्यता से बचा सकते हैं. जबकि शिंदे गुट ने कहा था कि दलबदल रोधी कानून उन नेताओं के लिए कोई आधार नहीं है, जिसने पहले ही पार्टी का विश्वास खो दिया.

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