Mahashivratri : देवघर में बाबा व पार्वती मंदिर के शिखर से उतरा पंचशूल, स्पर्श के लिए उमड़े भक्त

फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि के अवसर पर चली आ रही परंपरा के अनुसार देवघर में बाबा एवं माता पार्वती मंदिर के शिखर पर स्थापित पंचशूल खोले गये.

By Mithilesh Jha | March 6, 2024 9:33 PM

बुधवार को फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि के अवसर पर चली आ रही परंपरा के अनुसार देवघर में बाबा एवं माता पार्वती मंदिर के शिखर पर स्थापित पंचशूल खोले गये. इस अद्भुत क्षण को देखने के लिए मंदिर परिसर में भक्तों की भीड़ लगी रही. दोपहर दो बजे से पंचशूल खोलने की प्रक्रिया प्रारंभ की गयी.

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राजू भंडारी की अगुवाई में दोपहर दो बजे से बाबा एवं माता पार्वती के बीच प्रेम एवं अमर सुहाग का प्रतीक गठबंधन को खोलने की परंपरा शुरू की गयी. सबसे पहले मां पार्वती मंदिर के शिखर से गठबंधन खोला गया. उसके बाद बाबा मंदिर के शिखर से इसे खोलकर प्रशानिक भवन में लाकर रखा गया.

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गुरुवार की सुबह मंदिरों के शिखर से उतारे गये सभी पंचशूलों की पूजा की जायेगी, फिर इन्हें मंदिराें के शिखर पर लगाने की परंपरा शुरू की जायेगी. दोपहर ढाई बजे से ढोल नगाढ़े की थाप पर पंचशूल को खाेलने की परंपरा शुरू की गयी. दोनों मंदिरों से एक साथ भंडारी ने पंचशूल खोलकर अपने पीठ पर बांध कर शिखर से जंजीर के सहारे उतरे. पार्वती मंदिर के छत से जैसे ही पंचशूल उतरते ही दर्शन व स्पर्श करने के लिए भीड़ लगी रही.

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कड़ी सुरक्षा के बीच पंचशूल को बाबा मंदिर के छत पर ले जाया गया तथा बाबा एवं मां पार्वती के पंचशूल का मिलन कराया गया. मौके पर बाबा मंदिर के प्रशासक सह डीसी विशाल सागर सहित वरीय प्रशासनिक अधिकारियों ने पंचशूल को स्पर्श कर नमन किया. इन पंचशूलों को मंदिर प्रशासनिक भवन ले जाया गया, जहां से सरदार पंडा के आवास ले जाकर महंत श्रीश्री गुलाबनंद ओझा को स्पर्श कराया गया.

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गठबंधन चढ़ाने की परंपरा हुई बंद

पंचशूल के पहले जैसे ही गठबंधन को खोला गया वैसे ही बुधवार को गठबंधन चढ़ाना बंद हो गया है. गुरुवार को बाबा मंदिर प्रशासनिक भवन में सुबह के सात बजे से बाबा एवं मां पार्वती सहित अन्य मंदिरों से खुले पंचशूलों की तांत्रिक विधि से पूजा की जायेगी. यह पूजा सरदार पंडा स्वयं करेंगे. उसके बाद गणेश मंदिर से पंचशूल लगाना शुरू किया जायेगा. बाबा एवं माता मंदिर के शिखर पर पंचशूल लगने के साथ ही सरदार पंडा श्रीश्री गुलाब नंद ओझा बाबा एवं माता मंदिर के बीच गठबंधन चढ़ाया जायेगा, फिर श्रद्धालुओं द्वारा गठबंधन चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हो जायेगी.

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