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रेवेंशा विवि का नाम बदलने पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री के बयान को लेकर बीजद और भाजपा आमने-सामने

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के रेवेंशा विवि का नाम बदलने संबंधी बयान को लेकर बीजद और भाजपा आमने-सामने हैं. बीजद ने इसे इतिहास से छेड़छाड़ का प्रयास करना बताया है.

भुवनेश्वर. केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की ओर से शनिवार को कटक में रेवेंशा विश्वविद्यालय के नाम को बदलने के संबंध में सार्वजनिक बहस का आह्वान करने के बाद राज्य की राजनीति गरमा गयी है. बीजू जनता दल ने रविवार को इसे लेकर जहां केंद्रीय शिक्षा मंत्री पर निशाना साधा है, वहीं भाजपा ने भी बीजद पर पलटवार किया है.

औपनिवेशवाद से मुक्ति के लिए केंद्रीय मंत्री का प्रयास सराहनीय

भाजपा प्रवक्ता अनिल बिश्वाल ने रविवार को पार्टी कार्यालय में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि गैर-ओडिया अधिकारियों के लिए वकालत कर सत्ता से बेदखल होने वाली बीजू जनता दल आज एक कदम आगे बढ़कर उस ब्रिटिश अधिकारी थॉमस एडवर्ड रेवेंशा की वकालत करने पर उतर आयी है, जो भयंकर सूखे का प्रबंधन नहीं कर सके और ओडिशा में कम से कम 20 लाख लोगों की अकाल मृत्यु हो गयी थी. केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री प्रधान द्वारा कल दिये गये वक्तव्य को बीजू जनता दल शायद समझ नहीं पायी है या उनमें इसे समझने की बौद्धिक क्षमता नहीं है. उन्होंने कहा कि प्रसिद्ध लेखक जेपी दास ने अपनी पुस्तक ‘देश- काल पात्र’ में लिखा है कि जब 1866 में जब ओडिशा में भयंकर अकाल पड़ा और इसमें ओडिशा के लोग मर रहे थे, तब रेवेंशा साहब हुक्का पीने में व्यस्त थे. उन्होंने खुद इस अकाल पर जांच करने के लिए बनी कैंपबेल जांच आयोग के सामने कहा था कि अकाल इसलिए पड़ा था कि ओडिशा के लोग उत्साहहीन व आलसी होते हैं. ऐसे व्यक्ति के लिए बीजू जनता दल वकालत कर रही है. श्री विश्वाल ने कहा कि केंद्रीय मंत्री श्री प्रधान को उस विवादास्पद ब्रिटिश अधिकारी के नाम पर एक शैक्षणिक संस्थान होना चाहिए या नहीं होना चाहिए इस पर सार्वजनिक बहस की आवश्यकता होने की बात कही है. कोई भी निर्णय लेने से पूर्व समाज में बहस होना स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी होती है. पूरा देश जब औपनिवेशिकता व विदेशी हमलावरों से जुड़े प्रतीकों से मुक्त होने के प्रयास में लगा हुआ है, ऐसे में हमें भी इस बीमारी से मुक्त होना चाहिए. इस शैक्षणिक संस्थान की स्थापना के दौरान और बाद में ओडिशा अनेक महापुरुषों ने बहुत त्याग किया है. मयूरभंज महाराज ने उस समय 20 हजार रुपये का दान दिया था. आज भी रेवेंशा विश्वविद्यालय के भीतर भौतिकी और रसायन विज्ञान की प्रयोगशाला के बगल में संगमरमर के पत्थर पर इसके प्रमाण के रूप में नक्काशी मौजूद है. देश के जाने माने शिक्षाविद प्रोफेसर प्राणकृष्ण परिजा, प्रोफसर बलभद्र प्रसाद, प्रोफेसर जीबी धल व अन्य मनीषियों ने विदेशों में अध्ययन के बाद बाहर अध्यापन न कर इस संस्थान को बड़ा करने के लिए कार्य किया था. रेवेंशा संस्थान की स्थापना में व बाद में इसके विकास जो हुआ है उसमें ओडिशा के लोगों का ही हाथ है, रेंवेंशा का नहीं.

इतिहास से छेड़छाड़ करने का प्रयास कर रहे धर्मेंद्र प्रधान

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के कटक स्थित प्रतिष्ठित संस्थान रेवेंशा यूनिवर्सिटी का नाम बदलने के सुझाव वाले हालिया बयान ने ओडिशा में राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है. विपक्षी बीजू जनता दल (बीजद) ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री प्रधान के प्रस्ताव की कड़ी आलोचना की है और उनसे प्रतिष्ठित ‘रेवेंशा’ ब्रांड को संरक्षित करने और यूनिवर्सिटी की विरासत से छेड़छाड़ नहीं करने का आग्रह किया है. बीजद प्रवक्ता लेनिन मोहंती ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान पर रेवेंशा विश्वविद्यालय का नाम बदलने संबंधी उनकी टिप्पणी के लिए तीखा हमला किया और इसे ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ और ‘ऐतिहासिक रूप से गलत जानकारी’ वाला बताया. मोहंती ने कहा कि श्री प्रधान का बयान ओडिशा के इतिहास और विरासत के बारे में उनकी समझ की कमी का स्पष्ट उदाहरण है. उन्हें इस तरह की टिप्पणी करने से पहले अपना होमवर्क करना चाहिए था, खासकर तब जब बात ओडिशा में उच्च शिक्षा के लिए थॉमस एडवर्ड रेवेंशा के महत्वपूर्ण योगदान की हो.

प्रधान ने 1866 के विनाशकारी अकाल के दौरान रेवेंशा की भूमिका पर उठाया था सवाल

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने शनिवार को ओडिशा के सबसे पुराने शैक्षणिक संस्थानों में से एक रेवेंशा विश्वविद्यालय का नाम बदलने का सुझाव दिया. हालांकि,प्रधान ने स्पष्ट किया कि 156 साल पुराने संस्थान का नाम बदलने का सुझाव उनकी निजी राय है. प्रधान ने कटक में स्वशासन दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि नाम परिवर्तन की आवश्यकता है. प्रधान ने ब्रिटिश कमिश्नर थॉमस एडवर्ड रेवेंश की विरासत पर सवाल उठाया था, जिनके नाम पर रेवेंशा यूनिवर्सिटी का नाम रखा गया है. उन्होंने ओडिशा में 1866 के विनाशकारी अकाल के दौरान कमिश्नर के रूप में रेवेंशा की भूमिका पर सवाल उठाया था. उनके कारण ही उक्त अकाल में भारी संख्या में लोगों की मौत हुई थी. प्रधान ने सवाल किया था कि ओडिशा के एक प्रतिष्ठित संस्थान का नाम एक ब्रिटिश कमिश्नर के नाम पर क्यों रखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा था कि ओडिशा के बुद्धिजीवियों को इस पर विचार करना चाहिए. इस मामले पर बहस होनी चाहिए.

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