बंडामुंडा. बीएसए का मैदान बदहाल, खेलने नहीं आते हैं बच्चे

सेक्टर-सी स्थित बंडामुंडा स्पोर्ट्स एसोसिएशन का मैदान पास ही स्थित पानी की टंकी में रिसाव के कारण खराब हो गया है. इसके विकास की मांग स्थानीय लोग रेलवे से कर रहे हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | August 10, 2024 11:12 PM

बंडामुंडा. सेक्टर-सी स्थित बंडामुंडा स्पोर्ट्स एसोसिएशन (बीएसए) के मैदान की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है. मैदान के ठीक बगल में स्थित रेलवे क्वार्टरों में पानी सप्लाई के लिए लगी एक बड़ी टंकी से आहिस्ता-आहिस्ता पानी रिसाव और बरसात में जलजमाव से मैदान की सूरत बिगड़ रही है. टंकी से रिसाव के कारण मैदान का आधा हिस्सा हमेशा पानी में डूबा रहता है. बड़ी-बड़ी घास उग आयी हैं. जिससे खिलाड़ी या कॉलोनी के बच्चे मैदान में खेलना पसंद नहीं करते हैं. इसके अलावा मैदान में महिलाएं, बुजुर्ग आदि टहलने वाले लोगों को भी इससे परेशानी होती है.

कई प्रकार के खेलों का होता था आयोजन

स्थानीय लोगों का कहना है कि बंडामुंडा में बीएसए खेल मैदान सबसे अच्छा माना जाता था. मैदान में हरी हरी घास होने के कारण हर प्रकार के खेल समेत कई सांस्कृतिक कार्यक्रम इसी मैदान में ही कराये जाते थे. लेकिन रेल विभाग की ओर से इस मैदान के रखरखाव के लिए आजतक कोई प्रयास नहीं किये जाने के कारण यह बर्बाद होने के कगार पर पहुंच गया है. रेल विभाग अगर इस मैदान पर ध्यान दें, तो मैदान फिर से हरा-भरा हो सकता है. क्योंकि इसी मैदान पर फुटबॉल खेल कर कई खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में पहुंचे हैं.

बीएसए मैदान से निकले थे कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी

पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी ज्ञान थापा ने कहा कि बंडामुंडा सी सेक्टर के बीएसए क्लब फुटबॉल ग्राउंड पर पहले बड़े-बड़े टूर्नामेंट हुआ करते थे. उस समय मैदान की स्थिति अच्छी थी. बहुत सारे कार्यक्रम आयोजित किये जाते थे. अब यह खराब हो गया है. स्थानीय रेलवे कर्मियों के बच्चों की खेल गतिविधियों को आगे बढ़ाने और रेल प्रशासन को रेल के दायरे में आने वाले हर एक मैदान पर ध्यान देने की जरूरत है. एक अन्य पर्व खिलाड़ी गोविंद साहनी ने कहा कि इस मैदान पर अभ्यास करने वाले फुटबॉल खिलाड़ी प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर खेलकर अपना और बंडामुंडा का नाम रोशन कर चुके हैं. पहले इस मैदान में फुटबॉल खिलाड़ी सुबह-शाम अभ्यास करते थे, लेकिन वर्तमान स्थिति ऐसी है कि इधर से लोग गुजरना भी पसंद नहीं करते हैं. रेल प्रशासन से इस ओर ध्यान देने की मांग है.

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