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संकीर्तन से भक्ति का अलख जगा रही है बाल कलाकार शिखा कमार

शिखा कमार 16 वर्ष की उम्र से ही अलग-अलग जगहों पर संकीर्तन कर रही हैं. साथ ही वह जनता को कला और संकीर्तन के महत्व से अवगत भी करा रही हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | May 7, 2024 10:32 PM

राउरकेला, सुंदरगढ़ जिले में सामाजिक व धार्मिक अनुष्ठानों की ओर से पर्व त्योहार से लेकर दिन विशेष पर आयाेजित हरि संकीर्तन में शामिल होकर भक्तों में भक्ति की अलख जगाने का काम कर रही है बाल कलाकार शिखा कमार. कमार 16 वर्ष की उम्र से ही अलग-अलग जगहों पर संकीर्तन कर रही हैं. साथ ही वह जनता को कला और संकीर्तन के महत्व से अवगत भी करा रही हैं. सोमवार की शाम छेंड कलिंग विहार के को-ऑपरेटिव कॉलोनी में भी आयोजित हरि संकीर्तन में शामिल होकर उसने अपनी प्रतिभा से सभी को मोहित कर दिया. जानकारी के अनुसार शिखा संबलपुर जिले के बामरा ब्लॉक के बाउंसलगा पंचायत के सालेटिकरा गांव के प्रह्लाद कमार और सुकांति कमार की सबसे बड़ी बेटी हैं. शिखा को छोटी उम्र से ही कला के प्रति रुचि थी. उसने अपने पिता से ही संकीर्तन करना सीखा. वे अपने पिता के साथ 16 वर्ष की आयु से पश्चिम ओडिशा के विभिन्न स्थानों पर गयीं और हरि संकीर्तन किया. हरि संकीर्तन में शिखा जैसे ही मंडप में आती है तो पूरी ऑडियंस की नजर उन पर टिक जाती है. जिस तरह से वह महामंत्रों को विभिन्न भावों के साथ सुंदर आवाज में गाती हैं वह दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता है. इतना ही नहीं उनकी मीठी बातें और विनम्र व्यवहार भी लोगों को प्रेरित करता है. जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि कला और संस्कृति के बिना मानव जीवन पशु के समान है. यह ईश्वर की वास्तविकता को महसूस करने और मोक्ष का मार्ग बनने का सबसे अच्छा तरीका है क्योंकि कीर्तन में सत्य, शांति, दया और क्षमा की भावना कूट-कूट कर भरी है. अत: आधुनिकता के स्पर्श के कारण दिन-ब-दिन लुप्त होती जा रही कीर्तन की मौलिकता को बचाने के लिए हम सभी को सावधान रहने की आवश्यकता है. आज की भौतिकवादी दुनिया में, जब लोग दिन-प्रतिदिन कला, संस्कृति और आध्यात्मिक अभ्यास से दूर होते जा रहे हैं. वैेसे में 17 वर्षीया शिखा की कला अभ्यास के प्रति प्रतिबद्धता और समर्पण आज के समाज के लिए एक उदाहरण है.

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