Rourkela News: गजराज का खौफ! पेड़ पर मचान बनाकर खेतों की रखवाली कर रहे किसान

Rourkela News: अक्तूबर-नवंबर में फसल पकने पर हाथी गांवों में घुस भारी नुकसान करते हैं. इसे देखते हुए किसान मचान बनाकर सुरक्षा में जुटे हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | October 26, 2024 11:35 PM

Rourkela News: लाठीकटा प्रखंड के विभिन्न गांवों में अब अपने खेतों को हाथियों से बचाने के लिए ग्रामीण पेड़ के ऊपर मचान बनाकर फसल की रखवाली कर रहे हैं. हाथियों के आने की स्थिति में उसे भगाने के लिए टॉर्च एवं पटाखे अपने पास रख रहे हैं. यह कितना कारगर होगा, यह तो समय ही बतायेगा. लेकिन फिलहाल ग्रामीणों के पास अपने खेतों को बचाने का कोई दूसरा विकल्प नहीं है. लिहाजा वे इस काम में जुट गये हैं. लाठीकटा प्रखंड में सालों भर हाथियों का आतंक देखा जा रहा है. खौफ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले दो साल के अंदर 12 लोगों की जान जा चुकी है. जबकि कई ग्रामीण हाथी के हमले में घायल होकर स्थायी रूप से विकलांग हो चुके हैं. पिछले महीने ही हाथी के हमले में दो लोगों ने जान गंवायी है. जिसके बाद यहां हर किसी के मन में डर समाया हुआ है. एक ओर जहां ग्रामीण त्राहि-त्राहि कर रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर वन विभाग अब तक हाथियों को खदेड़ने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं कर पाया है.

सर्वाधिक प्रभावित इलाके

लाठीकटा प्रखंड की रामजोड़ी, मुंडाजोर, बड़दलकी, जोड़ाकूदर, गर्जन, बिरकेरा, बिरडा, टांयसर, बलाणी, सीउडीह जैसी ग्रामपंचायतों में हाथियों का उत्पात सालों भर रहता है. यह सभी इलाके हाथियों से सर्वाधिक प्रभावित हैं. इन्हीं इलाकों में पिछले दो साल के अंदर 12 लोगों की मौतें हुई हैं. ज्यादातर जानें तब गयीं, जब अपनी फसल और मकान को बचाने के क्रम में हाथियों से लोगों का आमना-सामना हुआ. वर्ष 2022 की मई में तुणडुकोचा के शुक्रा खड़िया, जुलाई में मुंडाटोला के आम्रनेसिया सिंदुर, अगस्त में मनको ग्राम के बुधुआ एक्का, गोटीधर गांव के मोटू किसान, नवंबर में डोलाकुदर के मकरु सिंह, दिसंबर में सीउडीह के नरेश कुम्हार, नवंबर 2023 में पिंकड़चुंदी गांव के नेगी एक्का, दिसंबर में रांटो गांव के सुरेंद्र तिर्की, रामजोड़ी के बिरसु बिनझिया, 2024 जुलाई में सोनापर्बक गंजुटोला के शुक्रमाणी समासी, राणीबेंटा के राजू बागे, सितंबर में रुटकुपेड़ी लेटोटोला के रोहित मांझी, बिरकेरा गांव के अजीत बारा, की हाथी के हमले में मौत हो चुकी है. वहीं कनरसुआं गांव के कार्तिक भूमिज और मनको, बाउंडबेजडा गांव के शुक्रा तिर्की स्थायी रूप से विकलांग हो गये.

सिर्फ जान का खतरा नहीं, खाने को भी पड़ रहे लाले

गजराज जब मानव बस्तियों का रुख करते हैं, तो केवल जान का ही खतरा नहीं रहता, बल्कि किसानों का अनाज भी खा लेते हैं. खेतों में फसल के अलावा घर में रखा अनाज भी गजराज खा जाते हैं. खाने के साथ फसल को नष्ट भी कर देते हैं. धान की फसल के अलावा सब्जियों की भी यही स्थिति रहती है. बार-बार फसल नष्ट होने के कारण बड़दलकी, मुंडाजोर, रामजोड़ी, बलाणी, सीउडीह जैसे गांवों में किसान अपने खेतों में फसल नहीं उगा रहे हैं. जिससे खेत मैदान में तब्दील हो गये हैं. मुंडाजोर ग्रामपंचायत के पटबेड़ा, बुढ़ीकूदर, डोलाकुदर, बेत आदि जंगल से सटे गांवों में जब फसल पकने लगती है, तब अक्तूबर, नवंबर में ग्रामीण पेड़ों पर मचान बनाकर निगरानी में जुट जाते हैं.

तेज आवाज कर हाथियों को दूर खदेड़ते हैं ग्रामीण

मचान से निगरानी करने के साथ ही टीन के डिब्बे आदि लेकर ग्रामीण बैठते हैं. हाथी नजर आते ही तुरंत टीन को बजाया जाता है, जिससे आवाज निकलने पर हाथी भाग जाते हैं. वहीं आवाज सुनकर ग्रामीण भी सतर्क हो जाते हैं. हालांकि, ग्रामीणों को इसके लिए रतजगा करना पड़ता है. ग्रामीण वन विभाग से इस समस्या के स्थायी समाधान की मांग कर रहे हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Next Article

Exit mobile version