बामड़ा : देश के इकलौते सिसल रिसर्च स्टेशन में न वैज्ञानिक हैं, न ही जरूरी उपकरण
बामड़ा रियासत की ओर से 1920 में 276 एकड़ जमीन में सिसल की खेती शुरू की गयी थी. यहां बना देश का इकलौते सिसल रिसर्च सेंटर सुविधाओं की कमी से जूझ रहा है.
बामड़ा. संबलपुर जिला के बामड़ा प्रखंड स्थित देश का इकलौता सिसल रिसर्च स्टेशन पुनरुद्धार की बाट जोह रहा है. वर्तमान यहां कोई भी वैज्ञानिक नहीं है. जिससे यह रिसर्च स्टेशन एक तकनीशियन समेत 8-10 कर्मचारियों के भरोसे चल रहा है. वर्ष 1920 में बामड़ा रियासत के तत्कालीन महाराजा अफ्रीका से सिसल पौधा लेकर आये थे और बामड़ा में इसकी खेती शुरू की गयी थी. रियासत की ओर से 276 एकड़ में सिसल की खेती का विस्तार किया गया था. इस पर और अधिक शोध व विकास के लिए बामड़ा में देश का एकमात्र सिसल रिसर्च स्टेशन स्थापित किया गया था. देश आजाद होने के बाद रियासत खत्म हो गयी. जिसके बाद ओडिशा सरकार की देखरेख में इसका संचालन हो रहा था. 1962 में केंद्र सरकार के भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र (आइसीएआर) ने इसका जिम्मा ओडिशा सरकार से लिया था. आइसीएआर ने बामड़ा केंद्र को देश का इकलौते सिसल रिसर्च स्टेशन का दर्जा देने समेत सिसल पर रिसर्च का काम शुरू किया था. बाद में देश के विभिन्न हिस्सों में इसकी खेती को बढ़ावा दिया गया.
केंद्र सरकार ने बंद की वित्तीय सहायता, रिसर्च स्टेशन बंद होने के कगार पर
बामड़ा सिसल रिसर्च सेंटर में एक नियमित वज्ञानिक समेत करीब 80 लोग कार्य करते थे. इस शोध संस्थान की ओर से लीला नाम से हाइब्रिड वेराइटी का सिसल विकसित करने समेत कई अन्य सफल शोध किये गये थे. लेकिन केंद्र सरकार की ओर से धीरे-धीरे वित्तीय सहायता कम करने से यह रिसर्च स्टेशन बंद होने के कगार पर पहुंच गया है. इस रिसर्च स्टेशन में अच्छी लैब बनाने के साथ स्थायी वैज्ञानिक और तकनीशयन की नियुक्ति करने समेत पूरे 276 एकड़ जमीन में फेंसिंग, जर्जर हो गये रिसर्च स्टेशन, स्टाफ क्वाटर्स, गेस्ट हाउस की मरम्मत करने के साथ ट्रैक्टर और अन्य उपकरण उपलब्ध करने की आवश्यकता है.
बामड़ा सिसल रिसर्च सेंटर का विकास जरूरी
बामड़ा सिसल रिसर्च सेंटर का विकास किये जाने की आवश्यकता लंबे समय से महसूस हो रही है. यहां पर एक कृषि विश्वविद्यालय का निर्माण करने से अंचल के युवा लाभान्वित होंगे. साथ ही यहां पर अन्य कृषि उत्पादों पर भी शोध शुरू किया जा सकता है. संबलपुर सांसद तथा केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और यहां के विधायक व मंत्री रविनारायण नायक की ओर से इस रिसर्च स्टेशन का कायाकल्प करने की पहल किये जाने की उम्मीद है.
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