स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती के बलिदान दिवस पर भुवनेश्वर में विशाल मैराथन आयोजित
स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती स्मृति ट्रस्ट की ओर से जन्माष्टमी के अवसर पर भुवनेश्वर में मैराथन का आयोजन किया गया. इसमें करीब 3000 युवाओं ने हिस्सा लिया.
भुवनेश्वर. स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती के बलिदान दिवस ‘जन्माष्टमी’ के अवसर पर भुवनेश्वर में विशाल मैराथन आयोजित किया गया. स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती स्मृति ट्रस्ट की ओर से आयोजित इस सामूहिक दौड़ कार्यक्रम में तीन हजार से अधिक लोगों ने भाग लिया. समाज के विभिन्न वर्ग के लोग इस कार्यक्रम में सम्मिलित हुए. भुवनेश्वर के प्रदर्शनी मैदान से यह सामूहिक दौड़ शुरू हो कर श्रीराम मंदिर, श्रेया चौक, मास्टर कैंटीन, राजमहल चौक, गिरिदुर्गा मंदिर होते हुए फिर से प्रदर्शनी मैदान पहुंची. इसके बाद प्रदर्शनी मैदान के पास संकल्प सभा का आयोजन किया गया, जिसमें संतों ने आशीर्वचन दिया. अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय सह-संगठन मंत्री स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती महाराज, पूर्वी भारत और ओडिशा के अध्यक्ष स्वामी शंकरानंदगिरि महाराज, ओडिशा के राधावल्लव मठ के प्रमुख महंत रामकृष्ण दास महाराज, वरिष्ठ संन्यासी स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती महाराज, दिव्य जीवन संघ के स्वामी दामोदरानंद सरस्वती महाराज, महिमा अलेख गादी के बाबा रमेश महाराज, स्वामी जीज्ञासानंद सरस्वती महाराज, स्वामी निर्वाणानंद गिरि महाराज, विश्व हिंदू परिषद के पूर्वी मंत्री महंत कृष्ण गोपाल दास महाराज, भुवनेश्वर के चैतन्य महाराज और कई संत उपस्थित थे. इन संतों ने पताका दिखा कर विशाल सामूहिक दौड़ का शुभारंभ किया. कार्यक्रम में स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती स्मृति न्याय के मैनजिंग ट्रस्टी मनसुखलाल सेठिया व विभिन्न सामाजिक व धार्मिक संगठनों के प्रमुख भी उपस्थित थे. जयकृष्ण पृष्टि के संयोजन में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया.
कंधमाल में स्थापित किया था आवासीय विद्यालय व छात्रावास
सभा को संबोधित करते हुए संतों ने कहा कि स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती का जन्म 1924 में ओडिशा के अनुगूल जिले के गुरुजंग गांव में हुआ था. वह 1965 में हिमालय से लौटे और गोहत्या और धर्मांतरण के खिलाफ आंदोलन में शामिल होने के लिए ओडिशा आये. 1968 में वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की योजना के तहत कंधमाल जिले में गये. स्वामी जी ने चार दशकों से अधिक समय तक संबंधित क्षेत्रों के सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक विकास के लिए अथक प्रयास किया और उन्हें सशक्त बनाने का प्रयास किया. शिक्षा क्षेत्र में सुधार के लिए स्वामीजी ने चक्कपाद और जलेशपटा में आवासीय विद्यालय, महाविद्यालय और छात्रावास भी स्थापित किया. उन्होंने कंधमाल जिले के सभी गांवों में सत्संग केंद्र स्थापित किया. सत्संग के माध्यम से हजारों जनजातीय लोगों को नशे की आदत से छुटकारा मिला. स्वामीजी को न केवल साहित्य और दर्शन का ज्ञान था, बल्कि कृषि, पशुपालन और फलों की खेती का भी ज्ञान था, जो उन्होंने कंधमाल में जनजातीय लोगों को सिखाया. वे जनजातीय संस्कृति के प्रमुख संरक्षक थे. उस समय छल, कपट और लालच दिखाकर गरीब लोगों को ईसाई धर्म में दीक्षित किया जा रहा था. स्वामी जी इस अन्यायपूर्ण और अवैध कृत्य के विरुद्ध पहाड़ बनकर खड़े हो गये. जिसके परिणामस्वरूप वह हमेशा से ईसाई मिशनरियों के निशाने पर थे.
2008 में स्वामीजी की हुई थी हत्या, मिले न्याय
उपस्थित वक्ताओं ने कहा कि 23 अगस्त, 2008 को पवित्र जन्माष्टमी उत्सव के दौरान, शाम 7:30 बजे, हमलावरों ने जलेशपटा में शंकराचार्य स्कूल में प्रवेश किया और गोलीबारी की और स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती, स्कूल की संचालिका, मां भक्तामयी, बाबा अमृतानंद, किशोर बाबा और एक छात्र के पिता, पुरंजन गंठी की हत्या कर दी. इस मामले में साजिशकर्ताओं क पकड़ने का आज तक प्रयास नहीं किया गया. संतों ने इस हत्या के मामले में न्याय प्रदान करने की मांग की.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है