मिटकुंदरी-लहंडा ब्रिज छह साल के बाद भी अधूरा, 25 गांवों के लोग परेशान

कुआरमुंडा ब्लाॅक अंतर्गत देव नदी पर निर्माणाधीन मिटकुंदरी-लहंडा ब्रिज छह साल के बाद भी पूरा नहीं हो पाया है. जिससे कुआरमुंडा व नुआगांव ब्लॉक के लोग परेशान हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | June 23, 2024 12:36 AM
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राउरकेला. कुआरमुंडा ब्लाॅक अंतर्गत देव नदी पर निर्माणाधीन मिटकुंदरी-लहंडा ब्रिज छह साल के बाद भी पूरा नहीं हो पाया है. इस ब्रिज का निर्माण होने से कुआरमुंडा व नुआगांव ब्लॉक के 25 गांवों के विद्यार्थी, किसान, सरकारी कर्मचारी से लेकर आम ग्रामीण उपकृत होंगे. लेकिन छह साल के बाद भी इसका निर्माण पूरा न होने से इस बार भी बारिश के दिनों में लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा. विगत वर्ष बारिश के दिनों में लहंडा की ओर बने अधूरे पुल पर छात्र-छात्राओं से लेकर आम ग्रामीणों द्वारा बांस की बल्लियों पर साइकिल लेकर चढ़ने की तस्वीर वायरल होने के बाद प्रशासन की नींद खुली थी. जिसमें ग्रामीणों से ऐसा न करने की अपील की गयी थी. जल्द से जल्द पुल का निर्माण कार्य पूरा करने का भरोसा दिया गया था. लेकिन छह साल के बाद भी यह पुल बनकर तैयार नहीं हो पाया है. वहीं वर्तमान मॉनसून सक्रिय होने के बाद कुछ दिनों में नदी उफान पर होगी. जिससे मॉनसून खत्म होने के बाद ही इसका काम शुरू होने की उम्मीद है.

जमीन अधिग्रहण नहीं होने से निर्माण कार्य अधर में लटका

इस ब्रिज का निर्माण 30 जून, 2018 से शुरू होकर 29 जून, 2020 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था. लेकिन छह साल बीत जाने के बाद भी ब्रिज का काम पूरा नहीं हो सका है. अंचल के ग्रामीणों का कहना है कि यदि बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय हॉकी स्टेडियम 15 महीनों के रिकाॅर्ड समय में बनकर तैयार हो सकता है, तो इस ब्रिज का निर्माण पूरा करने में देरी क्याें हो रही है. इस ब्रिज पर मिटकुंदरी की ओर काम पूरा हो चुका है. लेकिन लहंडा की ओर निजी जमीन का अधिग्रहण नहीं होने के कारण अभी भी एक स्पैन का काम तथा अप्रोच रोड बनाने का काम अधर में लटका है. जिससे इस ब्रिज का निर्माण अब तक नहीं हो पाया है.

कुआरमुंडा व नुआगांव ब्लॉक के 25 गांवों के लोग होंगे लाभान्वित

बारिश के दिनों में इस नदी में पानी का स्तर बढ़ने से कुआरमुंडा व नुआगांव ब्लाॅक के 25 गांवों के विद्यार्थी, दिहाड़ी मजदूर, किसान, शिक्षक-शिक्षिकाएं व आम ग्रामीणों को परेशानी का सामना करना पड़ता है. ब्रिज का काम पूरा नहीं होने के कारण राउरकेला जाने के लिए लोगों को 50 से 60 किलोमीटर की अतिरिक्त दूरी तय करनी पड़ती है. यदि इस ब्रिज का निर्माण पूरा हो जाता है, तो इन 25 गांवों के ग्रामीण उपकृत होंगे. इस ब्रिज का निर्माण जल्द से जल्द पूरा करने की मांग पर गत 23 अक्तूबर से सामाजिक कार्यकर्ता मुक्तिकांत बिस्वाल ने कई दिनों तक आमरण अनशन किया था. लेकिन उनकी तबीयत बिगड़ जाने से पुलिस ने जबरन उनका अनशन बंद कराकर उन्हें राउरकेला सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया था.

डबल इंजन की सरकार से बढ़ी उम्मीदें

वर्तमान सूबे में बीजद की 24 साल पुरानी नवीन पटनायक सरकार बदलने के बाद सूबे में भाजपा की नयी सरकार है. साथ ही केंद्र में भी तीसरी बार मोदी सरकार बनी है. जिससे इस डबल इंजन की सरकार से विगत छह साल से यह ब्रिज पूरा होने की बाट जोह रही इन दोनों ब्लाकों के ग्रामीणाें में एक नयी उम्मीद जगी है. अब देखना यह है कि सूबे में भाजपा की नवगठित सरकार यहां के ग्रामीणों की उम्मीदों पर कब तक खरी उतरती है.

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