सुंदरगढ़. सुंदरगढ़ जिले में सड़क चौड़ीकरण से लेकर नयी-नयी खदानें खुलने और जंगलों की अंधाधुंध कटाई का परिणाम अब दिखने लगा लगा है. 20 साल पहले जहां जिले के अधिकतर हिस्सों में 25 फीट पर पानी मिल जाता था. अब 150 फीट खुदाई के बाद भी पानी नहीं मिल रहा है. जिले में नदियों का जल स्तर तो कम हुआ ही है, भू-जल स्तर भी काफी नीचे चला गया है. सुंदरगढ़ और झारसुगुड़ा जिला के कुछ इलाकों की लाइफ लाइन ईब नदी में भी पानी का स्तर लगातार कम होता जा रहा है. विगत कुछ सालों से इस नदी में केवल बारिश के दिनों में ही पानी रहता है, जबकि बाद के महीनों में यह पूरी तरह से सूख जाती है. जिससे खासकर सुंदरगढ़ शहर के लोगों को भीषण जल संकट का सामना करना पड़ रहा है.
2023 में दो दिन ठप रही थी जलापूर्ति
12 जून, 2023 को ईब नदी का पानी सूख जाने के कारण सुंदरगढ़ शहर में दो दिनों तक पानी की आपूर्ति नहीं हुई थी. जिससे पानी की वैकल्पिक व्यवस्था करनी पड़ी थी. लेकिन इसके बाद भी पानी के लिए हाहाकार मचा रहा. जानकारों का कहना है कि यदि इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं किया गया, तो जिस प्रकार कुछ वर्ष पूर्व महाराष्ट्र के लातूर में रेल मार्ग से टैंकर के माध्यम से पानी पहुंचाया गया था, वैसी ही हालत यहां पर ही उत्पन्न हो सकती है. वहीं उक्त दिवस पर शहरी सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग या ओडिशा जल निगम के जल आपूर्ति और उपचार संयंत्र ने हाथ खड़े कर दिये थे, क्योंकि ईब नदी की धारा सूख चुकी थी. अब स्थिति और भी बदतर है.
जलाशयों की जल भंडारण क्षमता घटी
विशेषज्ञों के अनुसार, सुंदरगढ़ समेत अन्य इलाकों में भू-जल स्तर चिंताजनक रूप से गिर रहा है, इसलिए झरनों, तालाबों, कुआं आदि की जल भंडारण क्षमता घट रही है और पानी का बहाव नहीं हो रहा है. यहां तक कि कई जगहों पर चापाकल से पानी नहीं निकल रहा है. ऐसे में ग्रामीण जलापूर्ति विभाग ने जो जानकारी दी है, वह बेहद चौंकाने वाली है. विभाग के अनुसार, 20 साल पहले सुंदरगढ़ में 25 फीट नीचे पानी मिल जाता था. अब यह 150 फीट नीचे चला गया है. विशेषकर हेमगिर, कोइड़ा के खनन क्षेत्र में भूजल स्तर काफी नीचे चला गया है.सड़क चौड़ी करने के लिए काट दिये पेड़
विशेषज्ञों का कहना है कि बड़े पैमाने पर वनों का नष्ट होना इसका एक बड़ा कारण है. एक समय सुंदरगढ़ शहर हरा-भरा था. उस समय के राजा ने शहर की सड़कों के किनारे बहुत सारे नीम के पेड़ लगवाये थे. बाद में प्रशासन ने सड़क चौड़ी करने के लिए सभी पेड़ कटवा दिये. सैकड़ों एकड़ हरे-भरे जंगल को खनन के लिए साफ कर दिया गया. जिससे मिट्टी की जल-धारण क्षमता कम होने से भूतल जल स्तर भी काफी नीचे चला गया है. जिससे अब इस समस्या का स्थायी समाधान करने की जरूरत महसूस हो रही है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है