बामड़ा में रथयात्रा ने पूरे किए 118 साल, राजघराने ने की थी शुरुआत
बामड़ावासियों के अनुरोध पर 1905 में राजा सच्चिदानंद त्रिभुवन देव ने ग्रामीणों को महाप्रभु का विग्रह प्रदान किया था. जिसके बाद रथयात्रा की शुरुआत हुई थी. इस साल रथयात्रा को 118 साल पूरे हो गये हैं.
बामड़ा. संबलपुर जिला के बामड़ा में रथयात्रा को पूरे हुए 118 वर्ष पूरे हो गये हैं. 1905 में तत्कालीन गोविंदपुर गौंटिया मुकुंद पटेल, गोविंदपुर जमींदार रामचंद्र पाल के नेतृत्व में ग्रामीणों के एक प्रतिनिधिमंडल ने देवगढ़ स्थित बामड़ा रियासत के राजा सच्चिदानंद त्रिभुवन देव के राजदरबार में पहुंच कर जगन्नाथ मंदिर बनाने की गुहार लगायी थी. राजा सच्चिदानंद ने देवगढ़ पुरनागढ़ स्थित श्रीश्री जगन्नाथ मंदिर में रखे जगन्नाथ जी के पुराने विग्रह को गौंटिया और ग्रामीणों को सौंपा था और मंदिर निर्माण को लेकर सहयोग को भरोसा दिया था. ग्रामीणों ने विग्रह लाकर गौंटियापड़ा में गौंटिया मुकुंद पटेल द्वारा प्रदत्त 50 डिसमिल जमीन में एक खपरैल घर बनाकर प्रभु जगन्नाथ जी को स्थापित किया था. पूजा-अर्चना के खर्च के लिए गौंटिया ने आठ एकड़ खेती की जमीन मंदिर के नाम कर दी थी. जिसकी खेती और ग्रामीणों के सहायता से मंदिर का सालाना खर्च निकल जाता था. 1935 में गोविंदपुर जमींदार ने एक नया खपरैल घर बनाकर उसमे प्रभु जगन्नाथ जी को स्थानांतरित किया था.
सुंदरगढ़ जाकर रथयात्रा नहीं देख पाये, तो मंदिर बनाने का लिया फैसला
1905 में मंदिर स्थापना से पहले ग्रामीण पड़ोसी सुंदरगढ़ जिला के कुलटा गांव में पूजा-अर्चना और रथयात्रा देखने जाते थे. 1905 में भारी बारिश के कारण बामड़ा और कुलटा गांव के बीच बहने वाली नदी उफान पर होने से ग्रामीण रथयात्रा नहीं देख पाये थे. ग्रामीणों ने बामड़ा में रथयात्रा निकालने की ठानी और राजा द्वारा दी गयी जगन्नाथजी की मूर्ति को पालकी में रखकर रथयात्रा निकाली थी. बामड़ा अंचल के विद्वान पंडित दिवंगत नित्यानंद दास की मृत्यु के कुछ महीने पहले एक मुलाकात कर बामड़ा में श्री जगन्नाथ मंदिर स्थापना और रथयात्रा के इतिहास को लेकर लंबी चर्चा हुई थी.
बंदूक का बट बनाने वाले कारखाने ने रथ के चक्के का किया था निर्माण
पंडित नित्यानंद दास ने मृत्यु से पहले अपने पुरखों से सुनी बातों के आधार पर मंदिर से जुड़ी कई बातें बतायी थी. उनके मुताबिक, 1914 में बामड़ा स्थित बंदूक का बट बनाने वाले कारखाना टेउड मिल से रथ के लिये लोहे के चक्के बनाये गये थे और पहली बार रथ में जगन्नाथ जी की रथयात्रा शुरू हुई थी. 1997 में तत्कालीन बामड़ा बीडीओ रत्नाकर सिंग और बामड़ा डीएफओ कुलमणि सेठी के सहयोग से एक बड़ा लकड़ी का रथ निर्माण किया गया था. कुछ साल बाद ये रथ टूटने से फिर एक छोटे रथ का निर्माण किया गया था और उसमें 1914 में बनाये गये पुराने लोहे के चक्के लगाये गये थे. वही रथ आज भी चल रहा है. जगन्नाथ जी के रथ में छेरा पहंरा का कार्य तत्कालीन गोविंदपुर जमींदार रामचंद्र पाल, उनके बाद भवानीशंकर पाल और वर्तमान उनके वंशधर संजीव पाल ये दायित्व निभा रहे हैं. पहले बामड़ा के आस-पास के गांवों में जगन्नाथ मंदिर नहीं होने से वहां के ग्रामीण जगन्नाथ मंदिर से मूर्ति ले जाकर विभिन्न दिवसों पर रथयात्रा निकाला करते थे. अब सभी गांवों में जगन्नाथ मंदिर निर्माण होने से ये परंपरा बंद हो गयी है.
2017 में 1.20 करोड़ रुपये की लागत से बना मंदिर
6 दिसंबर, 1996 को तत्कालीन बीडीओ रत्नाकर सिंह की पहल पर एक भव्य जगन्नाथ मंदिर बनाने के लिए विशेष बैठक बुलायी गयी थी. इसमें मंदिर निर्माण को लेकर एक कमेटी का गठन किया गया. निर्माण कमेटी द्वारा मंदिर के पीछे सेवायत टंकधर दास से 22 डिसमिल जमीन 22 हजार रुपये में खरीदी गयी थी और मंदिर निर्माण का कार्य शुरू किया गया था. मंदिर के प्लिंथ का खत्म होने के बाद धन के अभाव में मंदिर निर्माण का कार्य बंद हो गया था. फिर कुछ अंतराल के बाद ग्रामीणों ने बैठक कर 11 सदस्यीय कमेटी का गठन कर मंदिर निर्माण शुरू किया था. पुरी गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी ने भी निर्माणाधीन मंदिर का परिदर्शन कर आशीर्वाद दिया था. मार्च, 2017 में मंदिर का भव्य प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम आयोजित हुआ था. नयागढ़ जिला के शिल्पकार गंगाधर जेना और उनके सहयोगी शिल्पकारों द्वारा इस भव्य मंदिर का निर्माण किया गया था. मंदिर निर्माण में कुल 1.20 करोड़ रुपये से ज्यादा राशि खर्च हुई थी. वर्तमान में पंडित अजय पुरोहित और पंडित सुब्रत मिश्र मंदिर में पूजा-अर्चना का दायित्व निभा रहे हैं.
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