अभी भी पाषाण युग में जीने को अभिशप्त हैं अंतेईटोला गांव के आदिवासी

आजादी के सात दशक बाद भी अंतेईटोला में विकास की किरण नहीं पहुंची है. यहां न बिजली है और न ही पीने के पानी की सुविधा

By Prabhat Khabar News Desk | May 28, 2024 10:41 PM
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राउरकेला,काेइ़ड़ा ब्लॉक मुख्यालय से वाया कालटा जामुडीही होकर 25 किलोमीटर तक जाने के बाद चोरधरा पंचायत कार्यालय है. इस कार्यालय से चार किलोमीटर के बाद पहाड़ व जंगल से घिरा राक्सी टोला के पास है अंतेईटोला. यहां तक जाना किसी संघर्ष से कम नहीं होता है. इस गांव तक जाने के लिये हाथों से बनी पहाड़ी पथरीला कच्चा रास्ता है. लेकिन यहां पर बारिश के दिनों में जाना मुश्किल है. गांव पहुंचने के बाद पता चलता है कि आजादी के सात दशकों के बाद भी यहां विकास की किरण नहीं पहुंची है. यह गांव दो भाग में विभक्त है, जहां पर 100 से अधिक आदिवासी रहते हैं. गांव के बीच से होकर रेल लाइन गयी है. कच्ची झोपड़ी में रहने वाले इन ग्रामीणों को पता ही नहीं है कि बिजली क्या होती है, स्वच्छ पेयजल के नाम पर आदिम काल से बना एक नाला ही इनका भरोसा है. बारिश होने पर यह पानी भी खदान के कारण लाल हो जाता है. अवश्य यहां पर एक चापाकल है. लेकिन चार व्यक्ति मिलकर इसका पंप चलाने के 15 मिनट के बाद यहां से मटमेैला पानी निकलता है, जो पीने के लायक नहीं है. वहीं यहां पर जाने के बाद देखा जाता है कि यहां कोई युवक नहीं है. गांव की महिलाएं व शिशु ही हांडी-गगरा लेकर जंगल की ओर जाते हैं और आते हैं.

गांव के अधिकांश पुरुष राज्य के बाहर गये हैं कमाने

कुछ महिलाएं जंगल से केंदुपत्ता लाकर बीड़ा बनातीं हैं तथा सप्ताह में एक बार बाजार में बेचने जातीं हैं. यह केंदुपत्ता ही इनकी जीविका का जरिया है. गांव के अधिकांश पुरुष तमिलनाडु के चेन्नई समेत हैदराबाद अथवा अन्य किसी शहर में कमाने के लिये जाते हैं. पाैष्टिक खाद्य न मिलने से यहां के बच्चों की हडिड़्यां नजर आती हैं. वहीं यह बच्चे जान की बाजी लगाकर इस गांव के एक ओर से दूसरी ओर जाने के लिये जान की बाजी लगाकर रेल पटरी पार करते हैं. नाला का पानी पीकर तरह-तरह की चर्मरोग का शिकार हो रहे हैं.जिससे ऐसा लगता है कि यहां के आदिवासी वर्ष 2024 में भी पाषाण युग में जीवन जीने के लिये अभिशप्त हैं. जबकि यह अंचल खदान व अन्य प्राकृतिक संपदा से भरा है. जिसमें केंद्र से लेकर रा्ज्य सरकार तक को करोड़ों का राजस्व हा्सिल होता है. इसके बाद भी इस अंचल के आदिवासियों की यह दयनीय जिंदगी आश्चर्य का विषय है. इस अंचल से पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के समय से यहां के सांसद तीन-तीन बार आदिवासी कल्याण मंत्री बनने के साथ इस्पात मंत्री भी बन चुके हैं. राज्य सरकार के 25 साल के शासन में यहां के जनप्रतिनिधियों को खाद्य आपूर्ति मंत्री से लेकर श्रम मंत्री तक बनाया जा चुका है. साथ ही इस क्षेत्र के विधायक को देश के श्रेष्ठ विधायक का पुरस्कार भी मिल चुका है.

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