Rourkela News: राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआइटी), राउरकेला के धातुकर्म और सामग्री इंजीनियरिंग विभाग के इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन प्रोसेसिंग एंड कैरेक्टराइजेशन ऑफ मैटेरियल्स (आइसीपीसीएम-2024) के छठे संस्करण का उद्घाटन गुरुवार को किया गया. शनिवार तक चलने वाले इस तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्देश्य शैक्षणिक और औद्योगिक क्षेत्रों के बीच सार्थक विचारों का आदान-प्रदान करना है. आइसीपीसीएम 2024 का उद्घाटन बतौर मुख्य अतिथि राउरकेला स्टील प्लांट के प्रभारी निदेशक अतनु भौमिक और एनआइटी राउरकेला के निदेशक प्रो के उमामहेश्वर राव की उपस्थिति में हुआ. अन्य विशिष्ट अतिथियों में आइसीपीसीएम 2024 की आयोजन समिति के सदस्य प्रो बंकीम चंद्र राय (मुख्य सलाहकार), प्रो देबाशीष चैरा (एमएम विभाग के प्रमुख और संरक्षक), प्रो राजेश कुमार प्रुस्टी (अध्यक्ष), प्रो अंशुमान पात्र (अध्यक्ष) और प्रो अजीत बेहेरा (सचिव) शामिल थे. प्रो राजेश कुमार प्रुस्टी ने स्वागत भाषण देते हुए सम्मेलन के विषयों का वर्णन किया. कहा कि इस वर्ष का सम्मेलन कई महत्वपूर्ण विषयों जैसे स्टेनलेस और विशेष इस्पात, अपशिष्ट प्रबंधन, फाइबर-प्रबलित पॉलिमर (एफआरपी) कंपोजिट्स, नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा भंडारण के लिए सामग्री, स्मार्ट सामग्री, सामग्रियों का पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग, बायोमैटेरियल्स और सामग्री डिजाइन पर चर्चा करेगा.
अपशिष्ट प्रबंधन में पर्यावरण-अनुकूल औद्योगिक नीतियों के महत्व को रेखांकित किया
मुख्य अतिथि अतनु भौमिक ने धातुकर्म और सामग्री उद्योग में सतत प्रथाओं के महत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि दुनिया में भारत लौह और इस्पात का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और इसे बनाये रखने के साथ-साथ पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने की दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ता है. आइसीपीसीएम जैसे सम्मेलन कम-उत्सर्जन वाली औद्योगिक समाधानों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो भारत की दीर्घकालिक निम्न-कार्बन विकास रणनीति के अनुरूप हैं. उन्होंने पुनरावर्तन (रीसाइक्लिंग) और अपशिष्ट प्रबंधन में पर्यावरण-अनुकूल औद्योगिक नीतियों के महत्व को भी रेखांकित किया. प्रो के उमामहेश्वर राव ने सामग्री उद्योग में पर्यावरणीय चुनौतियों को संबोधित करने की तात्कालिकता पर बल दिया और कहा कि भारत ने 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है. हालांकि, कोयले पर औद्योगिक उत्पादन की निर्भरता को देखते हुए, इस लक्ष्य को प्राप्त करने में कई चुनौतियां हैं. यहां तक कि इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादों के लिए आवश्यक सामग्री का निर्माण करना भी ऊर्जा पर निर्भर करता है, जो फिर से जीवाश्म ईंधनों से प्राप्त होती है. यह हरित इस्पात उत्पादन जैसी सतत प्रथाओं की ओर तत्काल बदलाव की आवश्यकता को दर्शाता है.
दुनियाभर के विश्वविद्यालयों से 100 से अधिक प्रतिभागी ले रहे हिस्सा
प्रो अंशुमान पात्र ने इस आयोजन के पैमाने और दायरे पर प्रकाश डाला. इस वर्ष के सम्मेलन में भारत के 100 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया है और इसमें वैश्विक रूप से प्रतिष्ठित संस्थानों जैसे कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (बर्कले), यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स, यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम, यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल और नॉर्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों के मुख्य व्याख्यान शामिल हैं. आइआइएससी बेंगलुरु, आइआइटी और एनआइटी जैसे भारतीय संस्थानों के प्रतिनिधि और टाटा स्टील, जिंदल स्टेनलेस जैसे प्रमुख उद्योग पेशेवर भी चर्चा में भाग लेंगे. प्रो बंकीम चंद्र राय ने इस आयोजन के प्रायोजकों, विशेष रूप से राउरकेला स्टील प्लांट और टाटा स्टील, को उनके समर्थन के लिए धन्यवाद दिया. उन्होंने उभरते हुए संरचनात्मक सामग्री के रूप में एफआरपी कंपोजिट्स के महत्व पर भी जोर दिया. एमएम विभाग के प्रमुख प्रो देवाशीष चैरा ने शैक्षणिक और औद्योगिक सहयोग में सम्मेलन की भूमिका को रेखांकित किया, जबकि प्रो अजीत बेहेरा ने धन्यवाद ज्ञापन किया.
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