चीन से व्यापार बंद, नहीं मिल पायेगी धार्मिक महत्व की याक की पूंछ, व्यापारियों को उठाना पड़ रहा लाखों रुपये का नुकसान
देहरादून : चीन से आनेवाली याक की पूंछ अब भारतीय बाजारों में नहीं मिल पायेगी. याक की पूंछ का धार्मिक महत्व होने से इसकी भी बहुत मांग है. सीमा पर तनाव के बाद चीन से व्यापार बंद कर दिया गया है. इससे सीमावर्ती इलाके के व्यापारियों को लाखों रुपये का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है. भारत-चीन व्यापार ना होने से इस साल भारतीय बाजार और ऐतिहासिक मेलों में तिब्बती सामान नहीं मिल पायेगा.
देहरादून : चीन से आनेवाली याक की पूंछ अब भारतीय बाजारों में नहीं मिल पायेगी. याक की पूंछ का धार्मिक महत्व होने से इसकी भी बहुत मांग है. सीमा पर तनाव के बाद चीन से व्यापार बंद कर दिया गया है. इससे सीमावर्ती इलाके के व्यापारियों को लाखों रुपये का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है. भारत-चीन व्यापार ना होने से इस साल भारतीय बाजार और ऐतिहासिक मेलों में तिब्बती सामान नहीं मिल पायेगा.
इसके अलावा कच्चे ऊन का आयात ना होने से ऊनी कपड़ों का कारोबार भी प्रभावित होने की उम्मीद है. ट्रेड अधिकारी एवं उपजिलाधिकारी धारचूला अनिल कुमार शुक्ला का कहना है कि भारत-चीन व्यापार में प्रति वर्ष 300 ट्रेड पास मंगाये जाते हैं. इस वर्ष सीमा विवाद के कारण विदेश मंत्रालय से व्यापार की अनुमति नहीं मिली.
लिपुलेख पास से कैलास मानसरोवर यात्रा के साथ ही हर साल भारत-चीन व्यापार होता था. भारत से व्यापारी मुख्य रूप से सौंदर्य प्रसाधन, गुड़, मिश्री, तंबाकू आदि सामान लेकर तकलाकोट मंडी जाते थे और वहां से ऊन, ऊनी कंबल, याक की पूंछ, जैकेट और जूते लेकर भारत आते थे. तिब्बत में निर्मित जूते, जैकेट और ऊनी गर्म कपड़ों की भारतीय बाजार में अच्छी मांग रहती है.
तिब्बती सामान का सबसे अधिक कारोबार जौलजीबी और बागेश्वर के उत्तरायणी मेले में होता है, लेकिन इस बार भारतीय बाजार और इन ऐतिहासिक मेलों में तिब्बती सामान नहीं मिलेगा. पांच सौ से अधिक परिवार तिब्बत से लाये गये ऊन को कात कर गर्म कपड़े तैयार करते थे. इस बार ऊन ना मिलने से इन परिवारों के सामने भी आर्थिक संकट गहरायेगा.
इससे पूर्व 1962 की लड़ाई के कारण चीन के साथ लिपुलेख दर्रे से होनेवाला व्यापार 30 साल तक बंद रहा. हालात सामान्य होने पर 1992 में व्यापार दोबारा शुरू हुआ. भारत-चीन व्यापार में केवल भारतीय व्यापारी ही चीन की मंडी तकलाकोट जाते रहे हैं. व्यापार के लिए भारत ने 10 हजार फीट की ऊंचाई पर गुंजी में मंडी का निर्माण किया था, लेकिन भारतीय क्षेत्र में यातायात की सुविधा ना होने से चीनी व्यापारियों ने कभी यहां का रुख नहीं किया.