‘ध्रुवीकरण’ और मतों के बिखराव से मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हारी सपा
लखनऊ: मुजफ्फरनगर दंगों की टीस के बाद उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव को साम्प्रदायिक शक्ल देने और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी का डर दिखाकर मुसलमानों से एकमुश्त वोट मांगे जाने की कथित कोशिशों के बावजूद राज्य की मुस्लिम बहुल सीटों पर भगवा परचम लहराया और मतों के बिखराव के कारण सपा […]
लखनऊ: मुजफ्फरनगर दंगों की टीस के बाद उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव को साम्प्रदायिक शक्ल देने और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी का डर दिखाकर मुसलमानों से एकमुश्त वोट मांगे जाने की कथित कोशिशों के बावजूद राज्य की मुस्लिम बहुल सीटों पर भगवा परचम लहराया और मतों के बिखराव के कारण सपा को हार का सामना करना पडा.प्रदेश के मुस्लिम बहुल लोकसभा क्षेत्रों में रामपुर, कैराना, सहारनपुर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, सम्भल, अमरोहा, मेरठ, बागपत, अलीगढ, एटा, बदायूं, बरेली, आंवला, फरुखाबाद, शाहजहांपुर, लखनउ, भदोही, आजमगढ, बाराबंकी और कानपुर शामिल हैं जहां मुसलमानों की आबादी 20 से 49 प्रतिशत के बीच है.
चुनाव नतीजों पर गौर करें तो इन 22 सीटों में से 20 पर भाजपा ने जीत दर्ज की जबकि खुद को मुसलमानों की एकमात्र रहनुमा के तौर पर पेश करने वाली सपा सिर्फ दो सीटें हासिल कर सकी और वह 11 सीटों पर दूसरे नम्बर पर रही. बसपा अध्यक्ष मायावती ने चुनाव प्रचार के दौरान लगभग हर जनसभा में मुसलमानों को मोदी का डर दिखाकर बसपा के पक्ष में एकजुट होने की लगातार अपील की लेकिन उसका कोई खास असर नहीं हुआ. अनुमानों के विपरीत उनकी पार्टी खाता तक नहीं खोल सकी और मुस्लिम बहुल 22 में से सिर्फ पांच पर ही वह दूसरे स्थान पर रही.
राजनीतिक प्रेक्षकों के मुताबिक मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में मतों का ध्रुवीकरण हुआ जो मुख्यत: भाजपा और सपा के बीच केन्द्रित रहा. हालांकि इसका फायदा भगवा दल को ही हुआ. नतीजतन भाजपा ने रामपुर, कैराना, सहारनपुर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, सम्भल, अमरोहा, मेरठ, बागपत, अलीगढ, एटा, बरेली, आंवला, फरुखाबाद, शाहजहांपुर, लखनउ, भदोही, बाराबंकी और कानपुर सीटें जीत लीं. आजमगढ और बदायूं सीटें सपा के खाते में गयीं.