कन्नौज से आशुतोष दीक्षित
डिंपल को हैट्रिक बनाने की चुनौती
सपा का यह गढ़ माना जाता हैं, जहां छह बार वह जीती
इत्र नगरी कन्नौज सपा और भाजपा के लिए प्रतिष्ठा वाली सीट बन गयी है. सपा प्रत्याशी डिंपल यादव के सामने जीत की हैट्रिक लगाकर मुलायम सिंह यादव परिवार की बादशाहत बरकरार रखने की चुनौती है, जबकि भाजपा प्रत्याशी सुब्रत पाठक दो बार की हार का बदला लेने को आतुर दिख रहे हैं.
डिंपल जीतती हैं तो तीन बार लगातार इस सीट पर जीत दर्ज करने वाली पहली उम्मीदवार होंगी, जबकि सुब्रत की जीत से 1998 से लगातार सपा का गढ़ बनी कन्नौज में सेंध लगेगी, जो इतिहास रचने से कम नहीं होगा. कांग्रेस ने लगातार चौथे चुनाव में प्रत्याशी नहीं उतारा है. 1998 से इस सीट पर यादव परिवार का ही कब्जा है. मुलायम से लेकर अखिलेश और पुत्रवधू डिंपल यादव तक जीत चुकी हैं.
चुनाव से पहले एक-दूसरे के प्रमुख नेताओं को जोड़ा
पिछले चुनाव में मोदी लहर में भी सपा का कब्जा बरकरार रहा था. हालांकि टक्कर कांटे की हुई थी, लेकिन इस बार समीकरण कुछ बदले हुए हैं.
सपा और बसपा गठबंधन से मुस्लिम और यादव के बाद दलित वोट भी डिंपल को मिलने उम्मीद जगी है. वहीं, भाजपा ब्राह्मण, ठाकुर और पिछड़ी जाति के वोट बैंक को अपने पक्ष में मान रही है. अनुसूचित जाति के वोट बैंक में सेंधमारी भी हो रही है. भाजपा ने सपा खेमे को झटका देकर बैस ठाकुर को साधने के लिए मजबूत नेता पूर्व विधायक अरविंद प्रताप सिंह को अपने खेमे में शामिल कर लिया. इसके बाद रसूलाबाद के पूर्व ब्लाॅक प्रमुख कुलदीप यादव ने भी भाजपा की सदस्यता ले ली है.
कुलदीप के भाजपा में आने से पार्टी को यादव वोट भी मिलने की उम्मीद जगी है. उधर, सपा ने भी भाजपा को झटका दिया है. पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की जनसभा में भाजपा से पूर्व एमएलसी डॉ रामबख्स सिंह ने पत्नी पूर्व विधायक रामनंदिनी वर्मा और बेटे आलोक वर्मा के साथ सपा की सदस्यता ले ली. सपा ने अपने इस दांव से लोधी वोट बैंक पर निशाना साध लिया. इसी सीट में करीब दो लाख लोधी मतदाता हैं.
अखिलेश व डिंपल, दोनों ने की यहीं से शुरुआत
इस लोकसभा क्षेत्र में पांच विस सीटें आती हैं. इनमें से एक पर सपा, बाकी सीटों पर भाजपा का कब्जा है. अखिलेश और डिंपल दोनों ने उपचुनाव से ही कन्नौज में शुरुआत की. अखिलेश ने 2000 व डिंपल ने 2012 में हुए उपचुनाव में पहली बार जीत दर्ज की थी.
सीट पर पहले सांसद थे डॉ राममनोहर लोहिया
यह सीट 1967 में अस्तित्व में आयी. यहां के प्रथम सांसद डॉ राममनोहर लोहिया बने थे. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में लोहिया को 472 वोटों से जीत मिली थी. भाजपा को मात्र एक बार 1996 में जीत मिली, जब उसके चंद्रभूषण सिंह विजयी हुए थे.
पिछड़ाें का रुख महत्वपूर्ण
भाजपा-सपा में कड़ी टक्कर दिख रही है. चुनावी ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है. भाजपा मजबूत दिख रही है. पिछड़ा वर्ग जिसका साथ देगा, नतीजे उसी के पक्ष में होगा.
पिछले चुनाव में जीत की खुशबू से चंद फासले पर रह गये थे पाठक
कौन कितनी बार यहां जीता
एसएसपी : 1 बार : 1967
कांग्रेस : 2 बार : 1971, 1984
जपा : 2 बार : 1977, 1991
जनता पार्टी-एस : 1 बार : 1980
भाजपा : 1 बार : 1996
सपा : 7 बार
1998, 1999, 2000, 2004, 2009, 2012, 2014
जद : 1 बार : 1989
नोट- यह सीट 1967 में सृजित हुई. अब तक 13 आम व दो उपचुनाव हुए हैं.
भाजपा मान रही ब्राह्मण, ठाकुर और पिछड़ी जाति के वोट बैंक को अपने पक्ष में
2014 में 19907 वोट से जीती थीं डिंपल
डिंपल यादव, सपा
489164 वोट (43.89%)
सुब्रत पाठक, भाजपा
469257 वोट (42.11%)
निर्मल तिवारी, बसपा
1,27,785 वोट (11.47%)
वोट का गणित
54% पुरुष मतदाता
46% महिला मतदाता
मुस्लिम 2,50,000
सवर्ण 4,50,000
ओबीसी 8,00,000
एससी-एसटी 3,00,000