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चंदौली : भाजपा के लिए जीत की राह नहीं है इस बार आसान, जानिए यहां का जातीय गणित

चंदौली से पंकज कुमार पाठक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से चंदौली की दूरी महज 30 किलोमीटर की है. यह शहर काफी पिछड़ा है. 2014 में ‘मोदी लहर’ में यह सीट 16 साल बाद (1998 के बाद) फिर से भाजपा ने जीत ली थी. चंदौली उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में से एक […]

चंदौली से पंकज कुमार पाठक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से चंदौली की दूरी महज 30 किलोमीटर की है. यह शहर काफी पिछड़ा है. 2014 में ‘मोदी लहर’ में यह सीट 16 साल बाद (1998 के बाद) फिर से भाजपा ने जीत ली थी.
चंदौली उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में से एक है. यह वाराणसी मंडल में आता है. प्रदेश के 80 संसदीय क्षेत्रों में इसकी संसदीय संख्या 76 है. चंदौली पूर्व में बिहार, उत्तर-पूर्व में गाजीपुर, दक्षिण में सोनभद्र, दक्षिण-पूर्व में बिहार और दक्षिण-पश्चिम में मिर्जापुर की सीमाओं से घिरा है. चंदौली लोकसभा क्षेत्र में 5 विधानसभा क्षेत्र (मुगलसराय, सकलडीहा, सैयदराजा, अजगरा और शिवपुर) आते हैं जिसमें अजगरा रिजर्व सीट है.
सपा-बसपा गठबंधन ने चंदौली संसदीय सीट से जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ संजय चौहान को उम्मीदवार बनाया है. भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र पांडेय मैदान में हैं. कांग्रेस के चुनाव निशान पर पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की पत्नी शिवकन्या कुशवाहा जन अधिकार पार्टी की उम्मीदवार हैं. काम के साथ-साथ जाति भी देखना पड़ता है
इस इलाके में जातीय समीकरण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. मुकुल चौहान कहते हैं, वह वोट करते वक्त सिर्फ काम नहीं देखेंगे. मुकुल वेल्डिंग का काम करते हैं, चंदौली के मुख्य चौराहे पर इनकी दुकान है. मुगलसराय में इनका घर है. चंदौली की राजनीति पर कहते हैं, ऐसा सांसद होना चाहिए, जो चुनाव के बाद भी आपको मिलता रहे. केंद्र सरकार ने काम किया है, सरकारी काम ऑनलाइन होने लगे हैं, बिजली पहले से ज्यादा रहती है, लेकिन काम के साथ-साथ अपनी जात के लोगों को भी तो देखना होगा.
जातीय गणित
1,952,756 कुल जनसंख्या
1,017,905 पुरुष आबादी
934,851 महिला आबादी
88% हिंदू
11% मुस्लिम
01% अन्य
पिछड़ा जिला घोषित, काम को लेकर उठ रहे सवाल
2006 में पंचायती राज मंत्रालय ने देशभर के 640 जिलों में सबसे पिछड़े जिलों की एक सूची जारी की थी, जिसमें 250 पिछड़े जिलों में इस जिले को भी रखा गया था. इस के बावजूद यहां योजनाएं कितनी पहुंची बड़ा सवाल है.
चंदौली के शहरी इलाकों में सड़क बने हैं. रेलवे फाटक का काम हुआ है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में कितना काम पहुंचा, इस सवाल पर चाय की दुकान के मालिक अविनाश कहते हैं, उज्जवला योजना के तहत कई लोगों ने पैसे खाये. गांव तक लाभ नहीं पहुंचा. लोग खेती-किसानी से जुड़े हैं. समय पर बिजली मिले, सिंचाई के लिए पानी हो, बीज और खाद समय पर मिल जाये. मैंने तो सरकार की तारीफ करते भी लोगों को देखा है, लेकिन समस्या अब भी वैसी ही है.

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