..तो ब्याह के लिए यूपी में नहीं मिलेंगी लड़कियां

-लखनऊ से राजेन्द्र कुमार- लखनऊः यह विडम्बना है कि जिस देश और प्रदेश में मातृसत्ता की पूजा होती हो, वहां हर दिन सैकड़ों माताएं बेटे की लालसा में कोख में पल रही बेटियों को मार रही हैं. किसी भी कीमत पर एक बेटे की चाहत वाली सोच के चलते सूबे में औसतन प्रतिदिन 547 बेटियों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 12, 2014 7:56 PM

-लखनऊ से राजेन्द्र कुमार-

लखनऊः यह विडम्बना है कि जिस देश और प्रदेश में मातृसत्ता की पूजा होती हो, वहां हर दिन सैकड़ों माताएं बेटे की लालसा में कोख में पल रही बेटियों को मार रही हैं. किसी भी कीमत पर एक बेटे की चाहत वाली सोच के चलते सूबे में औसतन प्रतिदिन 547 बेटियों की गर्भ में ही जान ली जा रही है. परिणाम स्वरूप यूपी में बेटियों की संख्या निरंतर घट रही है. परन्तु अखिलेश सरकार कोख में पल रही बेटियों को बचाने की कोई पुख्ता पहल नहीं कर रही है.

यह हाल भी तब है जब सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि सूबे में जीरों से छह वर्ष के बच्चों में बलिकाओं की संख्या दस वर्ष में 916 से घटकर 899 रह गई है. सूबे में अल्ट्रासाउंड मशीनों के कामकाज पर नजर रखने का पुख्ता इंतजाम ना किए जाने के चलते यह खतरनाक स्थिति उत्पन्न हुई है. फिर भी प्रदेश सरकार कन्या भ्रूण हत्या पर अंकुश लगा पाने के लिए तेजी से सक्रिय नहीं हो रही है. यह सच्चाई राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम ) के तहत ‘जेंडर सेंसिटाइजेशन’ पर सिफ्सा द्वारा आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान उजागर हुई है. इस मौके पर सिफ्सा द्वारा जारी की गई रिपोर्ट ‍में महिलाओं के कम होते अनुपात पर चिंता जताई गई. यह कहा गया कि यूपी में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के अनुपात के अनेक सामाजिक दुष्परिणाम होंगे. महिलाओं के प्रति अपराध बढ़ेंगे साथ ही सामाजिक विषंगतियां पैदा होंगीऔर ब्याह के लिए लड़कियां मिलना परेशानी का सबब बनेगा.

सिफ्सा की यह रिपोर्ट यह भी बताती है कि आगरा, मथुरा सहित प्रदेश के पन्द्रह ऐसे जिले हैं जहां लिंग अनुपात 880 से कम है. जबकि यूपी के 32 जिलों में लिंग अनुपात 900 से कम पहुंच गया है. इन आंकड़ों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम की कोआर्डिनेटर डा. माया उप्रेती ने चिंता जतायी. डा. उप्रेती के अनुसार वर्ष 2001 की जनगणना में प्रदेश में (जीरो से छह वर्ष) लड़कियों की संख्या 916 थी जो वर्ष 2011 में घटकर 899 रह गई है. वह कहती हैं कि यह आंकड़े चिंताजनक है और सरकार को इस मामले में पहल करते हुए सामाजिक चेतना के कार्यक्रम चलाने चाहिए. उन लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए जो भ्रूण हत्या के कारोबार में लगे हैं.

डा. उप्रेती के इस कथन के बाद यूपी में लड़कियों की संख्या क्यों घटी ? यह सवाल उठा. तो कहा गया कि यूपी में कन्या भ्रूण हत्या कानून – गर्भ धारण एवं पूर्व जन्म निदान (लिंग जांच निषेध) अधिनियम 1996 का अनुपालन कराने में सरकारी मशीनरी फेल साबित हो रही है. परिणाम स्वरूप सूबे में पांच हजार से अधिक अल्ट्रासाउंड केन्द्र लिंग जांच करने में सक्रिय हैं. जिसमें दो हजार अल्ट्रासाउंड मशीनों का पंजीकरण ही नहीं हुआ है. यानि स्वास्थ्य महकमें को यह पता ही नहीं है कि इन मशीनों का उपयोग कहां और किस काम के लिए किया जा रहा है. जबकि सैम्पल रजिस्ट्रेशन सर्वे (एसआरएस) के आंकड़े बताते हैं कि देश में सर्वाधिक भ्रूण हत्या उत्तर प्रदेश में हो रही है. यूपी में सालाना दो लाख कन्या भ्रूण हत्या का रिकार्ड है. गर्भ में बेटियों को मारने का इतना बड़ा रिकार्ड किसी राज्य में नहीं है. इन तथ्यों के आधार पर भ्रूण हत्या के खिलाफ मुखर स्त्री रोग विशेषज्ञ डा.नीलम सिंह कहती हैं कि मेडिकल कौंसिल, महिला आयोग और सरकारी तंत्र अपने कर्तव्य के प्रति लापरवाह है. अगर जिला स्तर पर लोग जागरूकता रहें और सरकार भ्रूण हत्या रोकने के लिए सक्रिय दिखे तो इस पर अंकुश लग सकता है. परन्तु यूपी में सरकार के स्तर से इस कुरीत पर अंकुश लगाने के लिए सख्ती नहीं की गई, यदि की गई होती तो 18 सालों में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए बनाए गए प्री-नेटल डायग्नॉस्टिक टेक्नीक्स् (पीएनडीटी) एक्ट के तहत मात्र 96 मामले दर्ज ना होते, इससे अधिक लोगों के खिलाफ कार्रवाई हुई होती. डा. नीलम कहती हैं कि कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए बने कानून को यूपी में सख्ती से लागू करना होगा वरना वह दिन दूर नहीं जब ब्याह के लिए लड़कियों का टोटा होगा.

निष्प्रभावी हो रहा है पीएनडीटी एक्ट

कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए प्री-नेटलi डायग्नॉस्टिक टेक्नीक्स् (पीएनडीटी) एक्ट को वर्ष 1996 में लागू किया गया था. इस कानून के तहत लिंग जांच करने वाले डॉक्टर को तीन से पांच वर्ष की कैद व दस हजार रुपये का जुर्माना करने के साथ पंजीकरण रद्द किया जाना था, लेकिन अब तक इस एक्ट के तहत प्रदेश में कुल 98 मामले दर्ज किए गए जिनमें से केवल दो को सजा मिली. यह स्थिति तब है जबकि लिंगानुपात की स्थिति प्रदेश के तमाम जिलों में अत्यंत खराब है. जाहिर है कि एक्ट का प्रभावी ढंग से क्रियांवयन नहीं हो रहा है. फिर भी सूबे के स्वास्थ्य मंत्री अहमद हसन और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उक्त कानून को प्रभावी तरीके से लागू करने को लेकर फिक्रमंद नहीं है. यह हाल भी तब है जबकि सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लोकसभा चुनावों में करारी पराजय झेलने के बाद अपनी छवि को निखारने में जुटे हैं. जिसके तहत उन्होंने बन रहा आज संवर रहा कल जैसा नारा गढ़ा है. पर यूपी में भ्रूण में पल रही बच्चियों के लिए काल बने रहे अल्ट्रासांउड सेंटरों के चलते यूपी के संवरे की कल्पना डा. नीलम और विपक्षी दलों के नेता नहीं कर रहे हैं.

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