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RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा – समाज ऐसा बनना चाहिए जिसमें राष्ट्रवाद कूट-कूटकर भरा हो

मथुरा : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की सद्भावना समिति की द्विदिवसीय बैठक के समापन सत्र को संबोधित करते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि आज समाज में जितनी भी बिरादरियां हैं सभी ने अपने संगठन बना रखे है. हमारा मकसद उन तक पहुंचना होना चाहिए. उनमें सद्भाव पैदा कर एक ऐसा समाज तैयार […]

मथुरा : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की सद्भावना समिति की द्विदिवसीय बैठक के समापन सत्र को संबोधित करते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि आज समाज में जितनी भी बिरादरियां हैं सभी ने अपने संगठन बना रखे है.

हमारा मकसद उन तक पहुंचना होना चाहिए. उनमें सद्भाव पैदा कर एक ऐसा समाज तैयार किया जाये जिसमें राष्ट्रवाद का भाव कूट-कूटकर भरा हो. उन्होंने कहा, हमें हर वर्ग में अपने संबंध इस तरह बनाने हैं. लोगों के घरों पर जाकर उनके साथ भोजन करें. उनके दुख दर्द में शामिल हों. समाज में जो भी कुरीतियां हैं उन्हें दूर किया जाये. समाज को संगठित करने के लिए सभी मिल-जुलकर काम करें और उन्हें समझायें कि वह पहले हिंदू हैं और बाकी सब उसके बाद. आरएसएस के सूत्रों के अनुसार, यूं तो देश भर में ही संघ को और भी ताकतवर बनाने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन संघ इस समय उन राज्यों पर ज्यादा जोर दे रहा है, जहां शाखाओं की संख्या कम है. ऐसे राज्यों में संघ ने शाखाएं बढ़ाने का फैसला लिया है. पश्चिम बंगाल और केरल के साथ पूर्वोत्तर के सभी राज्यों अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मणिपुर, मेघालय और मिजोरम में आरएसएस अपनी सक्रियता में तेजी लायेगा. विशेष तौर पर इन राज्यों में स्कूली स्तर से ही बच्चों में संघ की विचारधारा पैदा करने के लिए वहां नए स्कूल भी खोले जायेंगे. आदिवासी क्षेत्रों में चलाये जा रहे एकल विद्यालयों की संख्या में वृद्धि की जायेगी.

बैठक के अंतिम दिन तीन सत्र हुए, जिनमें सामाजिक सद्भाव बढ़ाने पर जोर दिया गया. संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ संघ के सह सरकार्यवाह भैया जी जोशी, दत्तात्रेय होसबोले, कृष्णगोपाल और सुरेश सोनी ने भी प्रचारकों को संबोधित किया. रविवार को मोहन भागवत ने जहां वृंदावन के सुदामा कुटी आश्रम में पहुंचकर सुतीक्ष्ण दास महाराज के कार्यक्रम में भाग लिया, वहीं सोमवार को वे महावन में यमुना किनारे रमणरेती स्थित श्रीकाष्र्णि उदासीन आश्रम में महंत काष्र्णि संत गुरु शरणानन्द के यहां पहुंचे. उन्होंने संत-महात्माओं के साथ बैठक कर हिंदू समाज की स्थिति पर विचार-विमर्श करते हुए संत समाज से मदद मांगी. उन्होंने वहां संतों के साथ ही प्रसाद ग्रहण किया. इस दौरान गीता मनीषी महामंडलेश्वर संत ज्ञानानंद वृंदावन के कई अन्य संत मौजूद थे.

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