सहारनपुर हिंसाः क्या अखिलेश से नहीं संभल रहा है यूपी ?

उत्तरप्रदेश के दो जिले सहारनपुर और मुरादाबाद हिंसा की आग में झुलस रहा है. एक ओर जहां सहारनपुर में दो समुदायों के बीच हुई हिंसा में दो लोगों की मौत हो गयी है वहीं मुरादाबाद के कांठ में भी स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है. इन सब के बीच अगर सबसे ज्यादा मुश्किलें किसी के साथ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 26, 2014 6:39 PM

उत्तरप्रदेश के दो जिले सहारनपुर और मुरादाबाद हिंसा की आग में झुलस रहा है. एक ओर जहां सहारनपुर में दो समुदायों के बीच हुई हिंसा में दो लोगों की मौत हो गयी है वहीं मुरादाबाद के कांठ में भी स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है. इन सब के बीच अगर सबसे ज्यादा मुश्किलें किसी के साथ है तो वह है राज्य के मुखिया अखिलेश यादव. राज्य की ताजा हालातों और अखिलेश यादव की मुश्किलें पर प्रकाश डालता यह आलेख-

ताजा हालात

उत्तर प्रदेश के दोनों जिलों की ताजा हालात यह है कि सहारनपुर में दो समुदायों के बीच हिंसा में दो लोगों की मौत हो गयी है. करीब दर्जन लोग घायल हैं. वहां कर्फ्यू लगा दिया गया है. वहीं मुरादाबाद के कांठ में लाउडस्पीकर उतारने के मामले पर राजनीति गर्म हो गयी है. वहां धारा 144 लगा दिया गया है और पुलिस भाजपा नेताओं द्वारा जलाभिषेक किये जाने को रोकने के प्रयास में हैं. किसी बाहरी लोगों के वहां प्रवेश पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है.

ताजा घटना को लेकर अखिलेश की बेबसी

इन दोनों घटनाओं के बीच मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बेबस नजर आ रहें हैं. एक तरफ जहां सियासी मामले में राज्य में अशांति फैली हुई है वहीं दूसरी ओर सांप्रदायिक उन्माद के कारण सहारनपुर जल रहा है. ऐसे मैं अखिलेश की स्थिति किंकर्तव्यविमूढ( क्या किया जाय समझ में नहीं आ रहा) की है. सहानरनपुर की स्थिति तो यह है कि जिससे वह प्रशासनिक बल के सहारे निपट सकती है लेकिन इसमें भी वह लाचार नजर आ रही है. अब प्रशासनिक अधिकारी उनके निर्देशों के अनुसार कार्रवाई नहीं कर पा रही है या फिर अखिलेश के निर्देश क्षमता में कमी है यह सोचने का विषय है.

हो सकती है राजनीतिक मजबूरियां

जैसा कि स्पष्ट है कि इस बार लोकसभा चुनाव में अखिलेश की पार्टी को यूपी में ऐतिहासिक हार का सामना करना पडा है. मतलब कि अखिलेश अभी हैं तो वहां के मुख्यमंत्री लेकिन उनकी साख जा चुकी है. इसका कारण भले ही सपा की विफलताएं रहा हो या फिर भाजपा के अमित शाह की जोरदार कूटनीति. यूपी में सपा की करारी हार और केंद्र में भाजपा की सरकार दोनों ही अखिलेश की राजनीतिक मजबूरियां बन गयी है.

अखिलेश ही सपा के तारनहार और उसकी नैय्या डूबाने वाले

ऐसा नहीं है कि अखिलेश यादव सपा के लिए बैडलक ही रहे हैं. सपा के लिए वो सुनहरा समय लाने वाले अखिलेश ही थे जिन्होंने 2012 में यूपी में हुए विधानसभा चुनाव में 403 में से 224 सीटों पर पार्टी को विजय दिलायी थी. इस जीत का पूरा श्रेय पहली बार मुख्यमंत्री के रुप में प्रोजेक्ट हुए युवा नेता अखिलेश यादव को ही मिला. दूसरी ओर जब इस बार की लोकसभा में पार्टी को ऐतिहासिक हार मिला तो उसका ठिकरा भी अखिलेश के सिर पर ही फोडा गया.

इन घटनाओं के पहले भी अखिलेश की मुश्किलें कम नहीं थी

इन दो बडी घटनाओं के पहले भी यूपी की घटनाएं चर्चा का विषय रही है और अखिलेश की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाये जाते रहे हैं. मुजफ्फरनगर दंगा को बीते अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं. इसको लेकर भी राज्य सरकार की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठे थे. दूसरी ओर बदांयू की घटना ने यूपी सहित पूरे देश को शर्मशार किया. इसको लेकर भी अखिलेश सरकार की थू-थू हुई थी.

संभावनाओं से भरे खेल राजनीत में अखिलेश निश्चित तौर पर अपने राजनीतिक गुरु ज्ञानेश्वर मिश्र को याद करते होंगे जिन्होंने जीवनपर्यंत कभी परिस्थितयों से समझौता नहीं किया और विपरीत परिस्थियों में भी वे बडी सहजता से उसका सामना करते हुए आगे बढे. अब अखिलेश के सामने भी वहीं चुनौतियां हैं, ये परिस्थितियों से समझौता करते हैं या फिर इन विपरीत हालातों से निकले का कोई कारगर उपाय ढूंढते हैं, यह देखने वाली बात है.

Next Article

Exit mobile version