-राजेन्द्र कुमार-
लखनऊ: कमजोरियां तो चौतरफा दिखती हैं, लेकिन वृदांवन में दो दिन चली भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की कार्रवाई से सिर्फ एक अच्छी बात तलाशनी हो, तो वो है, भाजपा कार्यकर्ताओं में दोबारा यूपी की सत्ता पाने की छटपटाहट दिखायी दी. यह अलग बात है कि इसके बावजूद भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति सत्ता की मंजिल तक पहुंचने का कोई ठोस रोडमैप तैयार नहीं कर सकी औरअखिलेश सरकार की खराब कानून व्यवस्था के खिलाफ जनाआंदोलन चलाने तथा तमाम अन्य नाकामियों को जनता के बीच उजागर करने का फैसला लेकर बैठक समाप्त हो गई.
वर्षों बाद भाजपा की किसी राज्य कार्यसमिति में कोई ठोस निर्णय ना लिए जाने और सहमति देने के बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह तथा केंन्द्रीय मंत्री राजनाथ सिंह के बैठक में ना शामिल होने से पार्टी कार्यकर्ता आश्चर्य में हैं. अमित शाह और राजनाथ सिंह को बैठक में ना ला पाने को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी की असफलता बताया रहा है. और इन नेताओं की गैरमौजूदगी भाजपा कार्यकर्ताओं को खलती रही.
हालांकि अमित शाह और राजनाथ सिंह की गैरमौजूदगी में ही कार्यकर्ताओं को कर्मयोग का पाठ पढ़ाया गया. और उपचुनाव का बिगुल फूंकते हुए सपा सरकार का विसर्जन करने तथा यूपी फतह का संकल्प लिया गया. कार्यकर्ताओं को लोकतांत्रिक संग्राम तेज करके चुनाव जीतने के गुर देने के साथ ही मजहब देख दंगाइयों को संरक्षण देने एवं धर्म के आधार पर निर्दोषों के उत्पीड़न की सरकारी नीति पर सवाल खड़े करते हुए तमाम नसीहतें दी गई.
केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र ने कार्यकर्ताओं से कहा कि अब वं यूपी को फतह करने में जुटे. इस मकसद की पूर्ति के लिए उन्होंने कनेक्टीविटी बढ़ाते हुए एक्टीविटी बढ़ाने का मंत्र दिया गया. कलराज की तर्ज पर ही तमाम भाजपा नेताओं ने अपने भाषण में कार्यकर्ताओं को नसीहतें दी. कार्यसमिति की बैठक का ज्यादातर वक्त नसीहतें देने में गुजर गया.
कार्यकर्ताओं को अपने नेताओं से तमाम तरह की नसीहतें मिलने की उम्मीद भी थी क्योंकि लोकसभा चुनावों के बाद पार्टी का यह पहला बड़ा राज्यस्तरीय कार्यक्रम था. भाजपा का संविधान यूं तो हर तीन महीने में कार्यसमिति की वकालत करता है पर लोकसभा चुनावों के चलते तय समय पर यह बैठक नहीं हुई. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी के कार्यकाल की दूसरी कार्यसमिति की यह बैंक 15 महीने के बाद हुई. जीत के उल्लास के बाद हुई कार्यसमिति में पार्टी के बड़े नेताओं का ना आना कार्यकर्ताओं को अखरा. हालांकि अमित शाह ने 19 अगस्त को लखनऊ में जिस तरह से मिशन यूपी का ऐलान किया था उसे यही लगा था कि कार्यसमिति में वह इसका रोडमैप साझा करेंगे. इसके उलट आखिरी समय में सांगठनिक वजहें बताकर उनका कार्यक्रम टल गया और आनन फानन में कलराज मिश्र से कार्यसमिति की शुरूआत करायी गई.
समापन राजनाथ सिंह को करना था, वह भी रविवार को मथुरा नहीं पहुंचे. तो कार्यसमिति का समापन पार्टी महामंत्री संगठन रामलाल ने किया. पार्टी के दो प्रमुख नेताओं के कार्यसमिति में ना पहुंचने के चलते ही भाजपा की राष्ट्रीय टीम से बाहर हुए वरुण गांधी तथा उनकी मां मेनका गांधी और उमा भारती भी मथुरा नहीं आए. पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और सांसद योगी आदित्यनाथ सहित यूपी के भाजपा के एक दर्जन से अधिक सांसदों ने समिति की बैठक में आने का कार्यक्रम अन्तिम समय में रदद कर दिया. यही नहीं प्रदेश महामंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के पुत्र पंकज सिंह भी उद्घाटन सत्र में नहीं पहुंचे. तमाम प्रमुख नेताओं की गैरमौजूदगी में कार्यसमिति की यह बैठक कार्यकर्ताओं के लिए महज औपचारिकता साबित हुई, अब यह कहा जा रहा है.