लखनऊ से राजेन्द्र कुमार
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अखिलेश को संकट में डाल रहे दंगे
लखनऊ से राजेन्द्र कुमार उत्तर प्रदेश फिर बारूद के ढेर पर बैठा नजर आ रहा है. आये दिन सूबे के किसी ना किसी जिले में हो रही सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हो रही हैं. बीते दिनों बुलंदशहर में मजहबी दंगा भड़काने का प्रयास कट्टरपंथियों की तरह से हुआ. बीते ढ़ाई वर्षों के दौरान मुजफ्फरनगर से […]
उत्तर प्रदेश फिर बारूद के ढेर पर बैठा नजर आ रहा है. आये दिन सूबे के किसी ना किसी जिले में हो रही सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हो रही हैं. बीते दिनों बुलंदशहर में मजहबी दंगा भड़काने का प्रयास कट्टरपंथियों की तरह से हुआ. बीते ढ़ाई वर्षों के दौरान मुजफ्फरनगर से लेकर बुलंदशहर तक में हुई दो सौ से अधिक साप्रदायिक हिंसा की घटनाएं यूपी में सब कुछ ठीकठाक ना होने का इशारा करती है. यह संकेत भी दे रही है कि सांप्रदायिक उन्माद और दंगे की घटनाएं अखिलेश सरकार को संकट में डाल रही हैं. फिर भी अखिलेश सरकार मजहबी दंगा भड़काने वाले कट्टरपंथियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं कर पा रही है.
सरकार के इस सुस्ती के कारण ही भाजपा के फायरब्रांड नेता सांसद योगी आदित्यनाथ खुल कर एक वर्ग विशेष के प्रति आग उगलने रहे हैं. तो सपा के विवादित नेता आजम खान की भाजपा और उनके नेताओं को मुस्लिम विरोधी बता रहे हैं. भाजपा तथा सपा नेताओं के बीच हो रही इस जुगलबंदी का दुष्प्रभाव सूबे के माहौल पर पड़ रहा है. और एक छोटी सी बात पर भी अब सूबे के लोग एक दूसरे की मकान दूकान जलाने लगे हैं. चिंता की बात तो यह है कि कट्टपथियों के बहकावे में हो रही ऐसी हिंसक घटनाओं में इजाफा होने का खतरा खुफिया अफसरों ने जताया है.
गृह विभाग को आईबी से मिली जानकारी के अनुसार कट्टपंथी सूबे में नवरात्र के बाद सांप्रदायिक उन्माद फैलाने का प्रयास करेंगे. अखिलेश सरकार के लिए खुफिया महकमें का यह इनपुट चिंता बढ़ाने वाला है. इसकी वजह पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली है. सूबे की पुलिस अब तक त्वरित कार्रवाई कर सांप्रदायिक दंगों को रोकने में असफल रही है. जिसे देखते हुए कहा जा रहा है कि अभी तक जिस अंदाज में सूबे के पुलिस प्रशासन ने दंगों से निपटने का प्रयास किया है यदि उसमें बदलाव नहीं हुआ, तो अखिलेश सरकार के दमन पर बड़ा दाग भी लग सकता है क्योंकि इस बार जिस तरह का फसाद हो रहा है उसमें वामपंथी और दक्षिणपंथी दोनों एक ही भाषा बोल रहे हैं.
बहरहाल, अब सरकार और सत्तारुढ़ दल दोनों सांप्रदायिक हिंसा लेकर गंभीर हुए हैं. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि सांप्रदायिक ताकतों का डट कर मुकाबला किया जाएगा. समाजवादी पार्टी इसके पीछे राज्य के राजनैतिक दलों की भूमिका देखती है. परन्तु कट्टरपंथी हिंदू ताकतें अब उस तरह नजर नहीं आतीं जैसे पहले के दंगों में दिखाई पड़ी थीं. पूर्वांचल में जहां योगी का दबदबा रहा है, वहां अभी तक सांप्रदायिक हिंसा की घटना नहीं हुई. उलटे पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दूसरे नए शहर निशाने पर रहे हैं. ऐसे में यूपी के नए-नए इलाकों में हो रहे इन दंगों के पीछे कौन है, यह सवाल पूछने पर भाकपा के वरिष्ठ नेता अशोक मिश्र ने कहते हैं कि मुजफ्फरनगर हो या फिर बुलंदशहर तथा यूपी का कोई अन्य शहर पहली बार अल्पसंख्यक तबका आक्रामक हुआ है. पहले जिस तरह संघ परिवार के संगठन इस तरह की गतिविधियों में नजर आते थे वे दिख नहीं रहे हैं.
भाजपा नेता ह्रदय नारायण दीक्षित संघ परिवार पर लगाए गए इस आरोप को गलत बताते हैं. दीक्षित कहते हैं कि मुजफ्फरनगर, बरेली, मुरादाबाद, कांठ और बुलंदशहर सब जगह दंगे की शुरूआत किसने की. जब किसी को यह महसूस हो जाए कि सरकार ने उन्हें छूट दे दी है तो यह होगा ही. पुलिस को जब यह संदेश हो कि एक खास समुदाय पर कड़ाई न होने पाए, तो वही होगा जो गाजियाबाद और मुरादाबाद में हुआ. वह पार्टी के सांसद आदित्यनाथ के भड़काऊ भाषणों का बचाव भी करते हैं. दीक्षित के अनुसार योगी लोगों को अगाह कर रहे हैं कि लोग अफवाहों में ना फंसे. जबकि अखिलेश सरकार हिंसा की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए पहल करती हुई नजर नहीं आती. भाजपा नेता का यह तर्क समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी को गलत लगता हैं.
वह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में आने वाले दिनों में सांप्रदायिक हिंसा होने की आईबी (इंटेलीजेंस ब्यूरो) की आशंका गंभीर मामला है. सपा सरकार पहले से सचेत है क्योंकि जातीय और सांप्रदायिक ताकतें कुंठित और हताश हैं. राज्य सरकार इन तत्वों की साजिशों को किसी भी सूरत में कामयाब नहीं होने देगी. राजेन्द्र चौधरी के इस कथन को लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर रहे डा. रमेश दीक्षित महज एक सरकारी बयान बताते हैं. डा. दीक्षित के अनुसार भाजपा और उसके नेता यूपी में सांप्रदायिक दंगा करा रहे हैं और वर्ष 2017 तक यूपी में ऐसी हिंसक घटनाएं होने की आशंका है. सांप्रदायिक दंगे की घटनाओं को अब रोकने में असफल रही अखिलेश सरकार को अब ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाना होगा. अन्यथा उनके माथे पर दंगे ना रोक पाने के दाग लगते रहेंगे और दंगे उनकी सरकार के लिए संकट का सबब बन जाएंगे.
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