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आजम खान को रामनाईक का झटका

II लखनऊ से राजेन्द्र कुमार II अखिलेश सरकार के सबसे तेजतर्रार मंत्री आजम खान को सूबे के राज्यपाल रामनाईक ने करारा झटका देने की ठान ली है. जिसके तहत उन्होंने अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिलाने संबंधी अल्पसंख्यक आयोग अध्यादेश को मंजूरी देने के पूर्व इस पर कानूनी राय लेने का […]

II लखनऊ से राजेन्द्र कुमार II

अखिलेश सरकार के सबसे तेजतर्रार मंत्री आजम खान को सूबे के राज्यपाल रामनाईक ने करारा झटका देने की ठान ली है. जिसके तहत उन्होंने अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिलाने संबंधी अल्पसंख्यक आयोग अध्यादेश को मंजूरी देने के पूर्व इस पर कानूनी राय लेने का फैसला किया है. राज्यपाल रामनाईक के इस फैसले से उक्त बिल की मंजूरी अधर में लटक गई है. अब यदि विधान मंडल के आगामी सत्र तक इस अध्यादेश को मंजूरी न मिली या इसे लौटाया ना गया तो अगला सत्र आने पर अध्यादेश का कोई मतलब नहीं रह जाएगा.
उक्त ‍अध्यादेश की ऐसी गति आजम खान की हार होगी. गौरतलब है कि सूबे के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री की हैसियत से आजम खान ने अपने चहेते शकील अहमद जो वर्तमान में राज्य अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष हैं को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिलाने के लिए राज्य अल्पसंख्यक आयोग बिल कैबिनेट से पारित कराकर राजभवन की मंजूरी के लिए भेजा था. सूत्रों के अनुसार कार्यवाहक राज्यपाल डा. अजीज कुरैशी ने इस बिल पर कोई निर्णय नहीं लिया. डा. अजीज कुरैशी के बाद यूपी के राज्यपाल बने रामनाईक ने जब इस बिल का अध्ययन किया तो उन्हें इसमें कई खामियां नजर आयी.
जिसके तहत रामनाईक ने राज्य अल्पसंख्यक आयोग बिल को लेकर यह जानना चाहा हैं कि अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने की ऐसी कौन सी तात्कालिक आवश्यकता है जिसके लिए अध्यादेश लाना जरूरी हुआ? दो दशक पुराने इस आयोग के कामकाज की दृष्टि से ऐसी कौन सी जरूरत आन पड़ी जिसके लिए तत्काल अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया जाए. राज्य के अन्य आयोगों को लेकर सरकार ऐसी उदारता क्यों नहीं दिखा रही? क्या सिर्फ अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देना न्यायसंगत होगा? राज्यपाल ने कानून विशेषज्ञों से उक्त बिल पर उपजे अपने इन सवालों को लेकर कानूनी राय मांग ली.
राजभवन के अनुसार विशेषज्ञों की राय मिलने के बाद ही अब इस मामले में राज्यपाल कोई निर्णय लेगें. राजभवन के सूत्रों का यह भी कहना है कि राज्यपाल के उक्त सवालों का जवाब अखिलेश सरकार के पास भी नहीं है. यदि अखिलेश सरकार ने विधान मंडल के दोनों सदनों से विधेयक के रूप में इस बिल को पारित कराकर राजभवन भेजा होता तो राज्यपाल का नजरिया अलग होता. अब लंबित अध्यादेश के रूख में इसे मंजूरी देने को लेकर राज्यपाल को कोई जल्दी नहीं है. अब यदि विधान मंडल के अगले सत्र के पहले इस अध्यादेश को मंजूरी न मिली तो उक्त अध्यादेश का कोई मतलब नहीं रह जाएगा.
कहा यह भी जा रहा है कि राज्यपाल इस बिल को मंजूरी नहीं देंगे क्योंकि अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने से विसंगति पैदा होगी. अनुसूचित जाति आयोग, महिला आयोग तथा अन्य आयोगों के अध्यक्षों को राज्यमंत्री का ही दर्जा मिला हुआ है, ऐसे में सभी आयोग एक ही स्तर पर नहीं रह जाएंगे और भेदभाव पैदा होगा जो न्यायसंगत नहीं है. वैसे भी दिल्ली तथा देश के अन्य राज्यों में अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा नहीं मिला है और रामनाईक ऐसी कोई नई प्रथा नही डालेंगे, जिससे भाजपा को हर मौके पर गरियाने वाले आजम खान की मंशा पूरी होती हो. इसलिए राज्यपाल रामनाईक आजम खान द्वारा भेजे गए अध्यादेश में कानूनी खामियां निकाल कर उसे मंजूरी ना देने का पुख्ता रास्ता तैयार कर रहे हैं.
राज्यपाल का कथन
अल्पसंख्यक आयोग बिल को लेकर कई बिंदु सामने हैं. चूंकि आयोग का अध्यक्ष कांस्टीट्यूशनल अथॉरिटी नहीं है, इसलिए उसे कैबिनेट मंत्री का दर्जा नहीं दिया जा सकता. इससे विसंगति पैदा होने की आशंका है. इस बारे में संवैधानिक प्रावधानों के तहत सारे पहलुओं का बारीकी से परीक्षण कराने के बाद ही कोई निर्णय किया जाएगा.

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