।। लखनऊ से राजेन्द्र कुमार ।।
उत्तर प्रदेश की ग्यारह विधानसभा और मैनपुरी संसदीय सीट पर हुए उपचुनावों ने सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की राजनीतिक उदासी मिटाते हुए उनके चेहरे पर मुस्कान ला दी. सपा को मैनपुरी संसदीय सीट सहित आठ विधानसभा सीटों पर इन चुनावों में जीत हासिल हो गयी. सपा को मिली इस सफलता से भाजपा की पेशानी पर बल पड़ना स्वाभाविक है क्योंकि राष्ट्रीय राजनीति के पटल पर नरेंद्र मोदी की उपस्थिति के बावजूद यूपी में मोदी का मैजिक नहीं चला और ऐसा नतीजा आया है.
वास्तव में उपचुनावों का ये नतीजा भाजपा की साख को यूपी में धूल में मिला गया है क्योंकि जिन ग्यारह विधानसभा सीटों पर यूपी में उपचुनाव हुआ वह सभी भाजपा के कब्जे वाली थी. इन पर वर्ष 2012 में चली अखिलेश यादव की आंधी में भी भाजपा नेताओं ने जीत हासिल की थी. इस बार भी इन सीटों पर चुनाव प्रचार करते हुए भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत ने दावा किया था कि भाजपा की यह सीटे अब भी अविजित हैं, लेकिन इनमें से सपा ने बिजनौर, ठाकुरद्वार, सिराथू, चरखारी, बल्हा, हमीरपुर, निघासन और रोहनिया सीटें अपनी झोली में डाल ली. मैनपुरी संसदीय सीट पर भी सपा ने तेज प्रताप सिंह को जिता लिया. प्रमुख मुलायम सिंह यादव के इस्तीफा देने के चलते मैनपुरी सीट पर चुनाव हुआ था. सपा प्रमुख ने अपने भाई के पुत्र तेज प्रताप सिंह को तीन लाख से अधिक मतों से चुनाव जिता लिया. वही भाजपा को लखनऊ पूर्व, नोएडा और सहारनपुर विधानसभा सीट पर ही इस उपचुनाव में जीत हासिल हो सकी.
भाजपा की यह खराब हालत तीन माह में ही कैसे हो गयी, जबकि तीन माह पूर्व इसी प्रदेश के लोगों ने भाजपा के प्रत्याशियों को जिताने के लिए बसपा, कांग्रेस और रालोद जैसे दलों के सभी प्रत्याशियों को हरा दिया था. सपा को भी मात्र पांच संसदीय सीटों पर सिमट कर रह गयी थी, यह सीटे भी वह थी, जिन पर सपा प्रमुख मुलायम सिंह सहित उनके परिवार के लोग ही चुनाव जीते. फिर कैसे सपा ने उपचुनावों में भाजपा को पटकनी दे दी? इस सवाल पर लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रहे डा. रमेश दीक्षित कहते हैं कि बीते लोकसभा चुनावों में भाजपा और नरेन्द्र मोदी दोनों ने ही देश के विकास का मुददा उठाया था. परन्तु तीन माह बाद यूपी में भाजपा के नेताओं ने विकास के मुददे की जगह लव जेहाद जैसा मसले को तूल दिया. सांसद योगी आदित्यनाथ के जरिए सांप्रदायिक रंग को तीखा करने की कोशिश की. भाजपा का यह रवैये यूपी के जनमानस को पसंद नहीं आया और यूपी के लोगों ने सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के सांप्रदायिकता के खिलाफ चलायी जा रही मुहिम पर विश्वास जताते हुए भाजपा को झटका दे दिया.
डा. दीक्षित के अनुसार अभी भी यदि भाजपा ने अपने रवैये को नहीं बदला तो उसे विधानसभा के अगामी चुनावों में भी ऐसी ही शिकस्त खानी होगी क्योंकि यूपी का जनमानस अतिवाद को पसंद नहीं करता. उपचुनावों में भी कांग्रेस के जीत ना सकने कर डा. रमेश दीक्षित कहते हैं कि कांग्रेस लोकसभा चुनावों में मिली हार के सदमे से ही अभी तक बाहर नहीं निकल सकी है, इसलिए कांग्रेस के नेताओं ने उपचुनावों को गंभीरता से नहीं लिया यह देख जनता ने भी कांग्रेस पर ध्यान नहीं दिया. फिलहाल उपचुनावों में मिली जीत से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बम-बम हैं. चुनावों के परिणाम आने के तुरन्त बाद उन्होंने अपनी खुशी का इजहार भी किया और कहा कि यूपी की जनता ने सांप्रदायिक ताकतों को उनकी औकात बता दी है. यूपी की जनता विकास की बात करने वाले को ही अपना आर्शीवाद देगी. ऐसे में अब सूबे की सरकार जनता के हितों का ध्यान रखते हुए उनकी समस्याओं को दूर करने में जुटेगी.
कौन कहां से जीता
मैनपुरी संसदीय सीट से सपा प्रत्याशी तेज प्रताप सिंह.
विधानसभा सीटों पर कौन जीत
चरखारी सीट से सपा के कप्तान सिंह.
सिराथू से सपा के वाचस्पति.
बल्हा से सपा के बंशीधर बौद्ध.
ठाकुरद्वारा से सपा के नवाब जान.
हमीरपुर से सपा के शिवचरण प्रजापति.
रोहनिया से सपा के महेंद्र सिंह.
निघासन से सपा के कृष्ण गोपाल पटेल.
बिजनौर से सपा की रुचि वीरा.
लखनऊ से पूर्व भाजपा के आशुतोष टंडन.
सहारनपुर नगर से भाजपा के राजीव गुंबर.
नोएडा से भाजपा की विमला बाथम.
इनका कहना है
‘लोकसभा चुनाव में भाजपा ने लोगों को बेवकूफ बनाया था. इन उपचुनाव में यूपी के लोगों ने भाजपा को इसका करारा जवाब दिया है और समाजवादी पार्टी के पक्ष में वोट देकर अन्य दलों को चेतावनी भी दे दी है कि जनता किसी के बहकावे में आने वाली नहीं है.’ – शिवपाल सिंह यादव (लोकनिर्माण), मंत्री उत्तर प्रदेश.
‘उपचुनावों में हुई हार हमारे लिए सबक है. हार के कारणों की समीक्षा कर हम अपनी गलतियां सुधारेंगे और वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में सपा की नकारा सरकार को उखाड़ फेंकेंगे. – लक्ष्मीकांत बाजपेयी, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश.