लखनऊ से राजेंद्र कुमार
अखिलेश सरकार के इस फैसले को राज्यपाल राम नाईक को मंजूरी देनी है और राज्यपाल इसके लिए तैयार नहीं हैं. राजभवन सूत्रों के अनुसार राज्यपाल इस मामले में प्रदेश सरकार से कई मुद्दों पर स्पष्टीकरण प्राप्त करने के बाद ही अंतिम निर्णय लेंगे, क्योंकि कई संगठनों ने मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर जावेद उस्मानी की तैनाती पर सवाल खड़े किए हैं.
इनमें जावेद उस्मानी भी शामिल हैं. यूपी के मुख्य सचिव रह चुके जावेद उस्मानी 1978 बैच के आईएएस हैं और वर्तमान में वह राज्स्व परिषद में चेयरमैन के पद पर तैनात हैं. जावेद उस्मानी को सपा प्रमुख मुलायम सिंह का प्रिय अधिकारी माना जाता है, जिसके चलते ही यूपी में अखिलेश सरकार के बनते ही मुलायम सिंह ने उन्हें केंद्र सरकार की प्रतिनियुक्ति से बुलाकर यूपी का मुख्य सचिव बनवा दिया था.
परंतु लोकसभा चुनावों में हुई करारी पराजय के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उन्हें मुख्य सचिव के पद से हटाकर राजस्व परिषद के चेयरमैन पद पर भेज दिया. बतौर आईएएस अधिकारी जावेद उस्मानी का कार्यकाल एक वर्ष से अधिक का बाकी है. फिर भी उन्होंने यूपी के मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर तैनाती के लिए आवेदन कर दिया.
इसके लिए केंद्र सरकार की अनुमति उन्हें लेनी पड़ेगी. इसमें समय भी लग सकता है क्योंकि केंद्र सरकार कोल स्कैम में सीबीआई द्वारा की गई पूछताछ की जानकारी प्राप्त करने के बाद ही निर्णय लेगी. ऐसी स्थिति में सूबे के राज्यपाल इस मामले में प्रदेश सरकार से कुछ मुददो पर स्पष्टीकरण प्राप्त करने के बाद ही कोई निर्णय लेंगे. राज्यभवन के सूत्रों का यह कहना है.
सामाजिक संगठन ‘तहरीर’ ने भी राज्यपाल से इस मामले में तत्काल कोई निर्णय ना लेने की अपील की है तो कुछ संगठनों ने अखिलेश सरकार के इस फैसले पर रोक लगाने के लिए न्यायालय जाने की बात कहीं है. इन संगठनों का कहना है कि जावेद उस्मानी की मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर तैनाती करने का निर्णय सही नहीं है.
ऐसे में अब जावेद उस्मानी को मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर तैनात करने का यह प्रकरण तूल पकड़ेगा, यह स्पष्ट हो गया है और देखना यह होगा कि मामले का गरमाने पर अखिलेश सरकार इस मामले में क्या निर्णय लेगी.