।।लखनऊ से राजेन्द्र कुमार।।
लखनऊः यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आए दिन प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक से मिलते है. उनसे हाथ मिलाते है और हंसते हुए फोटो खिंचाते है. यह कवायद करते हुए मुख्यमंत्री यह संदेश देने का प्रयास करते हैं दोनों के बीच में कोई कटुता नहीं है. उनके दिल मिले हुए हैं, पर सच्चाई यह है कि दोनों के रिश्ते बेहतर नहीं है, दोनों के हाथ जरूर एक दूसरे से मिलते पर दिल नहीं. यही वजह है कि राज्यपाल राम नाईक लगातार अखिलेश सरकार की नाकामियों को इंगित करते हुए प्रदेश सरकार को झटका देते रहते हैं.
गत बुधवार को भी राज्यपाल राम नाईक ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को दो झटके दिए. उन्होंने मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर जावेद उस्मानी की तैनाती करने संबंधी फाइल लौटा दी. फिर उन्होंने ग्रेटर नोएडा में प्रदेश का दूसरा चिकित्सा विश्वविद्यालय खोलने के लिए अखिलेश सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश पर स्पष्टीकरण मांग लिया.
ऐसे में अब यह दोनों प्रकरण लंबे समय के लिए लटक गए हैं. राज्यपाल के उक्त फैसले को लेकर प्रदेश सरकार सकते में है और राजभवन की आपत्तियों का जवाब खोजने में सरकार के आला अधिकारी जुट गए हैं. गौरतलब है कि बीते चार माह से खाली मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर तैनाती करने के लिए गत 3 नवंबर को मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में चयन समिति की बैठक हुई थी.
चयन समिति में मुख्यमंत्री के अलावा विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य और सूबे के स्वास्थ्य मंत्री अहमद हसन ने हिस्सा लिया. इन लोगों ने प्रदेश के मुख्य सचिव रह चुके व वर्तमान में राजस्व परिषद चेयरमैन के पद पर तैनात जावेद उस्मानी को राज्य सूचना आयोग का मुख्य सूचना आयुक्त बनाने का निर्णय लिया. 1978 बैच के आईएएस अधिकारी जावेद उस्मानी की सेवानिवृत्ति में अभी एक वर्ष से अधिक का समय है. यह जानते हुए भी चयन समिति ने उनको मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर तैनात करने की संस्तुति कर दी और राज्यपाल से उक्त फैसले पर मंजूरी प्रदान करने का आग्रह प्रदेश सरकार की ओर से किया गया.
राजभवन के सूत्रों के अनुसार राज्यपाल राम नाईक ने गत 5 नवंबर को इस मामले में अपने अधिकारियों के साथ चर्चा की तो पाया कि जावेद उस्मानी ने लोकसेवक के रूप में मुख्य सूचना आयुक्त के लिए आवेदन किया है. जबकि किसी सरकारी लाभ के पद पर रहते हुए इस पद के लिए आवेदन नहीं किया जा सकता.
राज्यपाल को ये भी पता चला कि जावेद उस्मानी कुछ साल पहले प्रधानमंत्री कार्यालय में सयुक्त सचिव के पद पर तैनात थे और कोल स्कैम में सीबीआई ने उनके पूछताछ भी की थी और कई स्वयं सेवी संस्थाओं ने मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर जावेद उस्मानी की तैनाती को गैर कानूनी बताते हुए न्यायालय जाने की बात कहीं है.
ऐसी जानकारियों के आधार पर राज्यपाल राम नाईक ने मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर जावेद उस्मानी की तैनाती को मंजूरी देने से मना कर दिया और इस संबंध में राजभवन पहुंची फाइल को वापस लौटाते हुए जावेद उस्मानी के संबंध में सतर्कता रिपोर्ट के साथ फाइल को राजभवन भेजने का निर्देश दिया. राज्यपाल के इस निर्णय से अब मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर जावेद उस्मानी की तैनाती अधर में लटक गई है क्योंकि राज्यपाल द्वारा मांगी गई सूचना प्राप्त करने में समय लगेगा. राजभवन के इस कदम से अखिलेश सरकार की उलझन बढ़ गई है.
कुछ ऐसी ही स्थिति ग्रेटर नोएडा में बनाए जाने वाले चिकित्सा विवि अध्यादेश को लेकर भी है. अखिलेश सरकार ने ग्रेटर नोएडा में चिकित्सा विश्वविद्यालय स्थापित करने के लिए फरवरी में विधान सभा में विधेयक पेश किया था. परन्तु इसे सदन में पारित नहीं कराया. नौ माह से लंबित पड़े इस विधेयक को ठंडे बस्ते में डालते हुए प्रदेश सरकार अचानक इसके लिए 21 अक्टूबर को कैबिनेट में अध्यादेश ले आयी. कैबिनेट बैठक में सरकार द्वारा ग्रेटर नोएडा में चिविवि स्थापना के लिए लाए गए अध्यादेश के प्रारूप को राज्यपाल राम नाईक ने मंजूरी देने से मना दिया.
राज्यपाल ने यह निर्णय करते हुए अध्यादेश लाने की तात्कालिकता के औचित्य पर अखिलेश सरकार से स्पष्टीकरण मांग लिया. राज्यपाल के उक्त फैसले अखिलेश सरकार के लिए बड़ा झटका है और प्रदेश कस आला अफसर इस मामले में रास्ता तलाशने के लिए अब कानूनी विशेषज्ञों से मशविरा कर रहे हैं. वही सपा के प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं क्योंकि राज्यपाल द्वारा मांगे गए स्पष्टीकरण का उनके पास कोई जवाब ही नहीं है.