।। राजेन्द्र कुमार।।
लखनऊ : प्रवासी भारतीयों के जरिए उत्तर प्रदेश में औद्योगिक निवेश लाने का मौका यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शुक्रवार को गंवा दिया. मुख्यमंत्री गुजरात के गांधीनगर में हो रहे प्रवासी भारतीय दिवस में नहीं पहुंचे.
सरकारी प्रवक्ता ने मुख्यमंत्री के गुजरात ना पहुंचने की वजह खराब मौसम को बताया है. जबकि भाजपा प्रवक्ता विजय पाठक कहते है कि सैफई महोत्सव में फिल्मी सितारों के नाच गाने को देखने के चक्कर में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रवासी भारतीय दिवस में महत्व नहीं दिया.
वरना वह गुरूवार को प्रवासी दिवस में शामिल होने के लिए जा सकते थे, पर मुख्यमंत्री ने ऐसा नहीं किया. इस वजह से मुख्यमंत्री प्रवासी भारतीयों को उत्तर प्रदेश में निवेश करने संबंधी न्यौता देने का मौका चूक गए. अब कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री की यह चूक यूपी में औद्योगिक निवेश लाने की मुहिम पर भारी पड़ेगी.
वास्तव में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के तमाम प्रयासों के बाद भी उत्तर प्रदेश में निवेशकों का विश्वास जम नहीं पा रहा है. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश को विकास के रास्ते पर ले जाने को लेकर अखिलेश सरकार के तमाम दावों के बाद भी अब तक लगभग सोलह हजार करोड़ रुपए का ही निवेश ही सूबे में आ सका है.
यह निवेश भी आगरा में आयोजित हुए दो औद्योगिक सम्मेलनों में आए के बड़े-बड़े निवेशकों के साथ बैठक के बाद आया. हालांकि सरकार ने इन सम्मेलनों में यह उम्मीद जतायी थी कि देश के बड़े-बड़े उद्योगपति और औद्योगिक घराने के पचास हजार करोड़ रुपए का निवेश उत्तर प्रदेश में करेंगे. परन्तु ऐसा नहीं हुआ और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी देश के बड़े-बड़े निवेशकों को यूपी में निवेश करने के लिए मना नहीं सके.
ऐसा क्यों हुआ? इस सवाल का जवाब लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीतिक शास्त्र के प्रोफेसर आशुतोष मिश्र कुछ यू देते है, कि उत्तर प्रदेश विकास के रास्ते से भटक चुका है. मायावती के बीते शासनकाल में इसकी शुरूआत हुई थी क्योंकि मायावती ने यूपी में औद्योगिक विकास की गति को तेज करने पर ध्यान देने के बजाए प्रदेश में विकास के नाम पर स्मारक और पार्को के निर्माण पर अधिक ध्यान दिया. जिसके चलते बड़े औद्योगिक घरानों ने यूपी में निवेश को लेकर अपनी योजनाओं का रूख अन्य राज्यों की ओर कर दिया.
इस स्थिति को बदलने के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को जो काम करना चाहिए था, वह उन्होंने नहीं किया. हालांकि बीते पौने तीन वर्षों के दौरान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रदेश में देशी और विदेशी पूंजी निवेश का भरोसा दिलाया. इसके लिए उन्होंने अमेरिका सहित कई देशों के उद्योगपतियों को अपने आवास पर बुलाकर उन्हें यूपी में निवेश करने का न्यौता दिया, लेकिन यूपी की खराब कानून व्यवस्था, खस्ताहाल सड़कें, सुस्त नौकरशाही और बिजली संकट जैसी समस्याओं के चलते वह बड़े औद्योगिक घरानों को यूपी में निवेश करने के लिए मना नहीं सके.
ऐसी स्थिति में मुख्यमंत्री ने गुजरात के गांधीनगर में हो रहे प्रवासी भारतीय दिवस में जाकरप्रवासी भारतीयों से मिलकर उन्हें यूपी में निवेश करने का न्यौता देने का कार्यक्रम बीते माह बनाया. मुख्यमंत्री की योजना प्रवासी भारतीयों के सामने यूपी की नए तरीके से ब्रैंडिंग करने की थी. जिसके तहत मुख्यमंत्री प्रवासी भारतीयों को बताते कि उत्तर प्रदेश में स्थाई विकास के लिए काफी आर्थिक सुधार उनकी देख रहे में हो रहा है और सरकार के डिवेलपमेंट का फोकस समाज का हर वर्ग है.
यह बताते हुए मुख्यमंत्री यूपी में अब तक हुए निवेश की तस्वीर भी प्रवासी भारतीयों के समक्ष रखते. परन्तु सैफई महोत्सव के दौरान कुछ ऐसा हुआ कि मुख्यमंत्री के प्रवासी दिवस में जाने को लेकर शंका खड़ी हुई. राजनीतिक लोगों के बीच यह कहा गया कि मुख्यमंत्री प्रवासी भारतीय दिवस में हिस्सा लेने गुजरात नहीं जाएंगे क्योंकि उनके गुजरात जाने से राजनीतिक चर्चाओं को बल मिलेगा.
ऐसी अटकों पर विराम लगाने के लिए मुख्यमंत्री ने दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री मधुकर जेटली के साथ अधिकारियों का एक दल गुजरात भेजा. फिर उन्होंने 9 दिसंबर को गुजरात जाने का अपना कार्यक्रम मीडिया में जारी कराकर सैफई महोत्सव में हो रहे कार्यक्रम में शामिल होने के लिए लखनऊ से चले गए. रात भर उन्होंने सैफई में नामचीन फिल्मी हस्तियों का नाच गाना देखा और शुक्रवार को खराब मौसम के चलते गुजरात नहीं गए. जिसे लेकर अब मुख्यमंत्री विपक्षी दलों के निशाने पर हैं और सरकार के प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी इस मामले में चुप्पी साध गए हैं. वह जानते हैं कि इस मामले में कुछ भी बोलने पर विपक्षी दल मुख्यमंत्री के गुजरात ना जाने को लेकर तमाम तरह के आरोप लगाने में जुट जाएंगे.