।। लखनऊ से राजेंद्र कुमार ।।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके प्रमुख रणनीतिकार अमित शाह का करिशमा भले ही देश की जनता पर चला हो पर उत्तर प्रदेश के विधायकों पर उनका जादू असर नहीं करता.विधान परिषद की 12 सीटों के लिए हुए चुनावों के परिणाम से यह साबित हो गया. इन चुनावों में समाजवादी पार्टी (सपा) आठ, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) तीन प्रत्याशियों को जिताने में कामयाब हो गई वही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सिर्फ लक्ष्मण आचार्य को ही चुनाव जिता सकी और भाजपा के दूसरे प्रत्याशी दया शंकर सिंह चुनाव हार गए.
इस हार की वजह भाजपा की खराब रणनीति को बताया जा रहा है क्योंकि भाजपा विधान परिषद के चुनावों में अपना दूसरा प्रत्याशी जिताने की स्थिति में नहीं थी.फिर भी पार्टी के बड़े नेताओं के चलते दयाशंकर को उम्मीदवार बनाया गया और अब दयाशंकर की हार को सपा तथा बसपा नरेन्द्र मोदी व अमित शाह की हार बता रही है.
गौरतलब है कि राज्य विधान परिषद की 12 सीटों पर 13 उम्मीदवारों के मैदान में होने की वजह से शुक्रवार को मतदान हुआ.राज्य विधानसभा के 403 विधायकों में से 399 विधायकों ने वोट डाले.चुनाव जीतने के लिए हर प्रत्याशी को 31 विधायकों का वोट चाहिए था और सपा तथा बसपा के रणनीतिकारों ने अपने-अपने उम्मीदवारों के लिए जरूरी वोट जिता लिए. परन्तु भाजपा अपने 41 विधायकों के सहारे लक्ष्मण आचार्य को आसानी से जिताने के बाद दयाशंकर सिंह के पक्ष मे सिर्फ 17 वोट ही जुटा सकी और दयाशंकर चुनाव हार गए.
हालंकि दयाशंकर सिंह के पक्ष में विधायकों का वोट जुटाने में बसपा से नाता तोड़ने वाले धनकुबेर पूर्व सांसद ने बसपा, कांग्रेस और रालोद के विधायकों को तोड़ने का प्रयास और कुछ विधायकों का वह दयाशंकर के पक्ष में वोट डलवाने में कामयाब भी हुए पर दयाशंकर की जीत के लिए जरूरी समर्थन का वह जुगाड़ नहीं कर सके. रोचक तथ्य तो यह है कि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के जरिए भाजपा में आने की चाहत रखने वाले बसपा, कांग्रेस तथा सपा के विधायकों को भी दयाशंकर को वोट देने के लिए यूपी भाजपा का नेतृत्व मना नहीं सका.
वही सपा नेतृत्व ने ऐसी लापरवाही नहीं जिताई.सपा नेताओं को पता था कि वह अपने 230 विधायकों के जरिए अपने आठ उम्मीदवारों को नहीं जिता सकती.इस वजह से सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव ने लखनऊ में डेरा डाला और कांग्रेस आला कमान से सम्पर्क कर कांग्रेसी विधायकों और रघुराज प्रताप उर्फ राजा भैया के जरिए निर्दलीय विधायकों का समर्थन जुटाकर स्वास्थ्य मंत्री अहमद हसन, रमेश यादव, वीरेंद्र सिंह गुर्जर, अशोक वाजपेयी, डा. सरोजनी अग्रवाल, साहब सिंह सैनी, रामजतन राजभर व आशू मलिक की जीत का रास्ता बना दिया.बसपा ने भी अपने 80 विधायकों के साथ रालोद के आठ विधायकों और अन्य छोटे दलों के विधायकों का जुगाड़ कर अपने नसीमुद्दीन सिद्दीकी, धर्मवीर अशोक व प्रदीप जाटव की जीत सुनिश्चित कर ली.
परन्तु ऐसा जुगाड़ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेई और उनकी टीम नहीं कर सकी.वास्तव में लक्ष्मीकांत को उम्मीद थी कि नरेन्द्र मोदी का करिशमा अन्य दलों से भाजपा में आने वाले विधायकों पर भी चलेगा और वह भाजपा के उम्मीदवारों को जिताने का रास्ता बनाएंगे.ऐसा नहीं हुआ तो सिर्फ इसलिए भी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत और दयाशंकर सिंह को चुनाव मैदान में उतारने वाले पार्टी के बड़े नेताअओं ने वंह मेहनत नहीं की जो सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और बसपा के नसीमुद्दीन सिददीकी ने की.जिसके चलते सपा और बसपा के सभी उम्मीदवार चुनाव जीत गए और भाजपा के दयाशंकर सिंह चुनाव हार गए.