Gandhi Jayanti: महात्मा गांधी के भाषणों ने रुहेलखंड के क्रांतिकारियों में भर दिया था जोश, छोड़ गए थे चरखा

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी देशभर का दौरा करते हुए 17 अक्टूबर 1920 को बरेली आएं थे. उस वक्त असहयोग आंदोलन का दौर चल रहा था.महात्मा गांधी के साथ मोहम्मद अली और शौकत अली भी थे. उनके स्वागत में जगह-जगह पर स्वागत द्वार बनाए गए. लोग दूर-दूर से महात्मा गांधी को देखने और उनके विचार सुनने के लिए आए थे.

By Prabhat Khabar News Desk | October 2, 2022 12:52 PM

Bareilly News: देशभर में दो अक्टूबर यानी आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 153 वीं जयंती मनाई जा रही है. सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनों के समय देश के विभिन्न हिस्सों में पहुंचकर लोगों को शांति और सद्भभावना का पाठ पढ़ाया था. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी देशभर का दौरा करते हुए 17 अक्टूबर 1920 को बरेली आए थे. उस वक्त असहयोग आंदोलन का दौर चल रहा था.महात्मा गांधी के साथ मोहम्मद अली और शौकत अली भी थे. उनके स्वागत में जगह-जगह पर स्वागत द्वार बनाए गए. लोग दूर-दूर से महात्मा गांधी को देखने और उनके विचार सुनने के लिए आए थे.

असहयोग आंदोलन के साथ उठ खड़े हुए

ग्रामीण इलाकों से महिलाएं और बच्चे भी आए थे. मोती पार्क में एक विराट सभा हुई.गांधी ने असहयोग के साथ खिलाफत आंदोलन में भी सहयोग मांगा था. गांधी ने संबोधित करते हुए कहा कि आप लोग अब इतने निडर हो गए हैं कि कहने की कोई बात ही नहीं है. अत: मैं आपसे यही आशा करूंगा कि आप ऐसे ही बने रहें. अमृतसर में सरकार ने लोगों को जल देना तक बंद करवा दिया. चाहे आप पर कितने भी अत्याचार क्यों न हों, आप अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने का प्रयत्न करते रहें. दबाव में न आएं. अमृतसर नगर पालिका जैसा व्यवहार न करें. दूसरी बात मैं यह कहता हूं कि अगर आप में शक्ति हो तो आप अपने स्कूलों की स्वतंत्रता को बनाए रखें. अगर आप सरकार की ओर से मिलने वाला अनुदान लेना बंद कर दें, तो आपके स्कूल स्वतंत्र हो जाएंगे. मेरी कामना है कि इन दोनों बातों पर आप खूब विचार करें. मौलाना मोहम्मद अली ने भी बहुत उत्तेजक भाषण दिया. इसका मुसलमानों पर प्रभाव पड़ा और ब्रिटिश साम्राज्य के विरोध में असहयोग आंदोलन के साथ उठ खड़े हुए. उनका भाषण सुनने के बाद क्रांतिकारियों में जोश भर गया.

फिर 1928 में आएं

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी बरेली दो बार आएं थे. पहली बार 1920 में.इसके बाद 1928 के दूसरी बार आएं थे. उन्होंने बरेली के लोगों में जंग ए आजादी को लेकर जोश भरा था. एक और क‍िस्‍सा है. बड़ा बाजार में साहू गोपीनाथ के घर महात्मा गांधी आए थे. महात्मा गांधी के साथ उनका चरखा भी था.साहू गोपीनाथ खुद भी चरखा चलाते थे. परिवार के सदस्यों को भी चाव था. अब महात्मा का चरखा देखकर उनसे रहा नहीं गया.चरखा देने के निवेदन पर महात्मा गांधी ने स्नेह में अपना चरखा बरेली में छोड़ दिया. बुजुर्ग लोग बताते है कि दो पीढ़ी तक यह चरखा साहू गोपीनाथ के परिवार के पास सुरक्षित रहा.

बिहारीपुर में गांधी समाधि

30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की प्रार्थना सभा में शामिल नाथूराम गोडसे ने बापू की गोली मारकर हत्या कर दी. बापू की अंत्येष्ठि के बाद अस्थि विसर्जन किया गया. वहीं भस्म का कुछ हिस्सा लाकर बरेली के बिहारीपुर कसगरान में गांधी समाधि स्थल का निर्माण कराया गया.यह समाधि अब भी है. मगर, 1970 में बापू की मिट्टी की मूर्ति को संगमरमर की मूर्ति के रूप में स्थापित किया गया है.

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रिपोर्ट : मुहम्मद साजिद

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