अल्पसंख्यक वोट के लिए खुलकर सामने आयी सपा

।।राजेन्द्र कुमार।।लखनऊ. लोकसभा चुनाव में अधिक राजनीतिक जमीन हासिल करने में जुटी सपा की कोशिशों के बीच सूबे की अखिलेश सरकार भी हरकत में आ गई है. सपा और अखिलेश सरकार के एजेंडे पर सूबे के लगभग चार करोड़ अल्पसंख्यक हैं. लिहाजा उनकी तरक्की, तालीम और विकास के लिए सपा प्रमुख के निर्देश पर अखिलेश […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 21, 2013 8:04 PM

।।राजेन्द्र कुमार।।
लखनऊ. लोकसभा चुनाव में अधिक राजनीतिक जमीन हासिल करने में जुटी सपा की कोशिशों के बीच सूबे की अखिलेश सरकार भी हरकत में आ गई है. सपा और अखिलेश सरकार के एजेंडे पर सूबे के लगभग चार करोड़ अल्पसंख्यक हैं. लिहाजा उनकी तरक्की, तालीम और विकास के लिए सपा प्रमुख के निर्देश पर अखिलेश सरकार ने मंगलवार को तीस सरकारी विभागों की 85 कल्याणकारी योजनाओं में अल्पसंख्यकों के लिए 20 फीसदी कोटा तय करने का महत्वपूर्ण निर्णय ले लिया. इसके पूर्व बीते डेढ़ वर्ष के दौरान अखिलेश सरकार ने अल्पसंख्यकों के हितकारी कई फैसले लिए थे.सूबे के अल्पसंख्यक समुदाय का वोट पाने के लिए सपा सरकार के खुलकर किए जा रहे फैसलों का संज्ञान लेते हुए ही भाजपा नेता सपा सरकार पर अब मुस्लिम समर्थन सरकार होने का आरोप लगाने लगे.

जिसकी अनदेखी करते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने इस निर्णय का आधार सच्चर समिति की सिफारिशों को बताते हुए कांग्रेस को झटका दे दिया है. कांग्रेस सच्चर समिति की संस्तुतियों को लागू करने का वायदा ही करती है, वही अखिलेश सरकार ने पहल करते हुए सूबे के अल्पसंख्यकों को कोटे का तोहफा दे दिया. वह भी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खां से बिना राय मशविरा किए. यह पहला अवसर है जब सूबे के अल्पसंख्यकों के हितों को लेकर किसी सरकार ने बिना किसी हो हल्ले के इतना बड़ा निर्णय लिया है.

माना जा रहा है कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव चाहते हैं कि आगामी लोकसभा चुनावों में सूबे का मु‍स्लिम समाज वर्ष 2009 की तरह कांग्रेस के साथ ना जाए. वर्ष 2009 के लोकसभा चुनावों में सूबे के मुस्लिम समाज ने कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी लड़ाई होती देख कांग्रेस का साथ दिया था.मुलायम सिंह के लिए सूबे के मुस्लिम समाज का यह रूख झटका देने वाला था क्योंकि अयोध्या में बाबरी ढ़ांचा गिरने के बाद से सूबे का मुस्लिम वर्ग कांग्रेस के बजाए उनके साथ खड़ा हो गया था. ऐसे में आगामी लोकसभा चुनावों के दौरान यदि कहीं मोदी विरोध के नाम पर मुसलमान कांग्रेस के साथ चला गया तो केंद्र की सत्ता में मुलायम सिंह के अहम भूमिका निभाने का सपना टूट जाएगा. इस संभावना पर अंकुश लगाने के ‍लिए मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश सरकार से सच्चर कमेटी की सिफारिशों की रोशनी में सरकारी योजनाओं में मुसलमानों को उनकी आबादी से थोड़ी अधिक हिस्सेदारी देने का निर्णय कराया. ताकि सूबे के मुस्लिम समाज के बीच यह साबित किया जा सके कि वास्तव में मुसलमानों की हितैषी कांग्रेस नहीं सपा ही है.

सपा के इस फैसले के राजनीतिक मायने कांग्रेस सहित मुस्लिम समाज का वोट हासिल करने में जुटे अन्य दल भली-भांति समझते हैं, परन्तु इसका जवाब देने की स्थिति में नहीं है. केंद्र की सत्ता पर काबिज कांग्रेस के लिए भी अभी सच्चर कमेटी की सिफारिशों को लागू करना आसान और व्यवहारिक नहीं होगा.यदि आधी-अधूरी तैयारियों के बीच केंद्र सरकार ने सच्चर समिति की सिफारिशें लागू करने का फैसला किया गया तो सपा के लिए कहना आसान होगा कि उसके दबाव में केंद्र सरकार ने ऐसा किया.

हालांकि सपा नेता मानते हैं कि यूपी में कांग्रेस फिर 2009 जैसे नतीजों को दोहराने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे.इसलिए सपा नेता प्रदेश भर में अखिलेश सरकार के इस फैसले के लाभ बताने में जुटेंगे. बाबरी एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी कहते हैं कि मुसलमान आज की तारीख तक सपा के साथ है और आगे भी रहेगा,क्योंकि सरकारी योजनाओं में अल्पसंख्यकों के लिए कोटा तय करना बड़ा फैसला है. सुन्नी धर्मगुरू मौलाना वली फारूकी कहते हैं कि सपा सरकार का निर्णय महत्वपूर्ण है. सूबे के मुसलमानों को यह मालूम है कि मुलायम और उनके सांसद कभी भाजपा के साथ खड़े नहीं होगे.इसलिए सूबे के मु‍सलमानों के लिए कांग्रेस को वोट देना कोई मजबूरी नहीं है. कांग्रेस नेता इस कथन से सहमत नहीं है.

कांग्रेस अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के मारूफ खान कहते है कि लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं.ऐसे में सपा सरकार के इस निर्णय का असर कांग्रेस पर नहीं पड़ेगा. मारूफ के कथन पर सूबे के स्वास्थ्य मंत्री अहमद हसन का कहना है कि जिन योजनाओं में हिस्सेदारी दी जानी है, उनका लाभ अल्पसख्यकों को मिलेगा और बदले में वह सपा का साथ देंगे.

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