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पीलीभीत मुठभेड़ केस: 43 पुलिसकर्मियों को राहत, उम्र कैद की जगह 7 साल की सजा, 10 सिखों का हुआ था एनकाउंटर

हाईकोर्ट ने मामले में सख्त टिप्पणी की कि पुलिस अधिकारी किसी अभियुक्त को केवल इसलिए नहीं मार सकते हैं क्योंकि वह एक खूंखार अपराधी है. पुलिस अधिकारियों का यह कर्तव्य नहीं है कि वे आरोपी को सिर्फ इसलिए मार दें क्योंकि वह एक खूंखार अपराधी है.

By Prabhat Khabar News Desk | December 15, 2022 10:14 PM

Lucknow: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने पीलीभीत फर्जी एनकाउंटर मामले में 43 पुलिसवालों को सात साल की सजा सुनाई है. यह केस 10 सिखों के फर्जी एनकाउंटर का है. आज से 31 साल पहले इन लोगों को बस से उतारकर, उन्‍हें खालिस्‍तान लिबरेशन फ्रंट का सदस्‍य बताकर एनकाउंटर किया गया था. यह घटना 12 जुलाई 1991 को हुई थी. कोर्ट ने 57 पुलिसवालों को दोषी पाया था और उम्रकैद की सजा सुनाई थी. हाईकोर्ट ने इनमें से 43 की सजा सात साल की कर दी.

गैर इरादतन हत्या का दोषी करार

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने 1991 के 10 सिखों के एनकाउंटर मामले में 43 पुलिसकर्मियों को गैर इरादतन हत्या का दोषी करार दिया है. पुलिसकर्मियों ने 1991 में दस सिखों को खालिस्तान लिब्रेशन फ्रंट का आतंकी बता कर कथित एनकाउंटर में मार दिया था. ट्रायल कोर्ट ने इन पुलिसकर्मियों को हत्या का दोषी पाते हुए 4 अप्रैल 2016 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.

न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को निरस्त करते हुए दोषी पुलिसकर्मियों को सात-सात साल कारावास की सजा सुनाई है. यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ ने अभियुक्त पुलिसकर्मियों देवेंद्र पांडेय व अन्य की ओर से दाखिल अपीलों पर सुनवाई के बाद पारित किया.

हाईकोर्ट ने मामले में की सख्त टिप्पणी

हाईकोर्ट ने मामले में सख्त टिप्पणी की कि पुलिस अधिकारी किसी अभियुक्त को केवल इसलिए नहीं मार सकते हैं क्योंकि वह एक खूंखार अपराधी है. पुलिस अधिकारियों का यह कर्तव्य नहीं है कि वे आरोपी को सिर्फ इसलिए मार दें क्योंकि वह एक खूंखार अपराधी है. निस्संदेह, पुलिस को आरोपी को गिरफ्तार करना होगा और उसे मुकदमे के लिए पेश करना होगा.

बेंच ने अपने 179 पन्नों के आदेश में 43 पुलिसकर्मियों की सजा को धारा आईपीसी की धारा 302 से आईपीसी की धारा 304 में बदलने पर यह टिप्पणी की. न्यायालय अप्रैल 2016 में विशेष न्यायाधीश, सीबीआई-अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, लखनऊ द्वारा आईपीसी की धारा 120-बी, 302, 364, 365, 218, 117 के तहत दोषी ठहराए जाने के आदेश को चुनौती देने वाले 43 पुलिसकर्मियों द्वारा दायर अपीलों पर विचार कर रहा था.

12 जुलाई 1991 की है घटना

12 जुलाई 1991 को नानकमथा पटना साहिब, हुजूर साहिब व अन्य तीर्थ स्थलों की यात्रा करते हुए 25 सिख यात्रियों का जत्था बस से लौट रहा था. पीलीभीत के कछाला घाट के पास पुलिस वालों ने बस को रोका और 11 युवकों को उतारकर अपने वाहन में बैठा लिया. इनमें से दस की लाश मिली, जबकि शाहजहांपुर के तलविंदर सिंह का आज तक पता नहीं चला.

15 मई 1992 को सीबीआई के हवाले हुई थी जांच

पुलिस ने मामले को लेकर पूरनपुर, न्यूरिया और बिलसंडा थाने में तीन अलग-अलग मुकदमे दर्ज किए थे. विवेचना के बाद पुलिस ने इन मामलों में फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी. एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट में मामले को लेकर जनहित याचिका दाखिल की थी. सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई 1992 को मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी. सीबीआई ने मामले की विवेचना केबाद 57 पुलिस कर्मियों के खिलाफ सुबूतों केआधार पर चार्जशीट दायर की थी. अदालत ने मामले में 47 को दोषी ठहराया था, जबकि 2016 तक 10 की मौत हो चुकी थी.

सीबीआई ने बनाए थे 178 गवाह

सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में 178 गवाह बनाए थे. पुलिसकर्मियों के हथियार, कारतूसों समेत 101 सुबूत तलाशे गए थे. जांच एजेंसी ने 207 कागजातों को भी अपनी 58 पन्नों की चार्जशीट में साक्ष्य के तौर पर शामिल किया था.

दोषी पुलिसकर्मी

दोषी करार दिए गए पुलिसकर्मियों में रमेश चंद्र भारती, वीरपाल सिंह, नत्थू सिंह, सुगम चंद, कलेक्टर सिंह, कुंवर पाल सिंह, श्याम बाबू, बनवारी लाल, दिनेश सिंह, सुनील कुमार दीक्षित, अरविंद सिंह, राम नगीना, विजय कुमार सिंह, उदय पाल सिंह, मुन्ना खान, दुर्विजय सिंह पुत्र टोडी लाल, गयाराम, रजिस्टर सिंह, दुर्विजय सिंह पुत्र दिलाराम, हरपाल सिंह, राम चंद्र सिंह, राजेंद्र सिंह, ज्ञान गिरी, लखन सिंह, नाजिम खान, नारायन दास, कृष्णवीर, करन सिंह, राकेश सिंह, नेमचंद्र, शमशेर अहमद व शैलेंद्र सिंह फिलहाल जेल में हैं.

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जमानत पर हैं ये पुलिसकर्मी

वहीं, देवेंद्र पांडेय, मोहम्मद अनीस, वीरेंद्र सिंह, एमपी विमल, आरके राघव, सुरजीत सिंह, राशिद हुसैन, सैयद आले रजा रिजवी, सत्यपाल सिंह, हरपाल सिंह व सुभाष चंद्र जमानत पर हैं. न्यायालय ने इन्हें हिरासत में लेने का आदेश दिया है. अपील के विचाराधीन रहते तीन अपीलार्थियों दुर्गापाल, महावीर सिंह व बदन सिंह की मृत्यु हो चुकी थी.

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