मध्यप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में 4474 बच्चों को फेंका गया, 395 भ्रूण हत्या हुई
child abandonment, feticide: मध्यप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में सिर्फ 4 साल में 4,474 नवजात एवं बच्चों (0-12 साल के बीच) कहीं न कहीं मरने के लिए छोड़ दिया गया. इन बच्चों को उन्हें जन्म देने वाले या उनके परिवार के सदस्यों ने जन्म के बाद उन्हें फेंक दिया. इनमें लड़के और लड़कियां दोनों शामिल हैं.
रांची : मध्यप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में सिर्फ 4 साल में 4,474 नवजात को कहीं न कहीं मरने के लिए छोड़ दिया गया. इन बच्चों को उन्हें जन्म देने वाले या उनके परिवार के सदस्यों ने जन्म के बाद उन्हें फेंक दिया. इनमें लड़के और लड़कियां दोनों शामिल हैं.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के रिकॉर्ड में उन बच्चों को भी शामिल किया गया है, जिनकी उम्र 0-12 साल तक है. NCRB ने जो आंकड़े दिये हैं, उसमें सिर्फ शिशु हत्या के मामले हैं. इसमें भ्रूण हत्या को शामिल नहीं किया गया है.
रिकॉर्ड बताते हैं कि वर्ष 2015 से 2019 के बीच सबसे ज्यादा 766 बेजुबान बच्चों को मध्यप्रदेश में फेंक दिया गया. इसी राज्य में 4 साल के दौरान सबसे ज्यादा 75 भ्रूण हत्या के मामले भी मध्यप्रदेश में ही रिकॉर्ड किये गये.
इसके बाद राजस्थान का नंबर आता है, जहां चार साल के दौरान कम से कम 571 बच्चों को उनके परिवार वालों ने उनके जन्म के बाद अपनाने से इनकार कर दिया. दूसरी तरफ, इसी कालखंड में 30 बच्चों को जन्म लेने से पहले ही मौत के घाट उतार दिया गया. यानी उनकी भ्रूण हत्या कर दी गयी.
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भ्रूण हत्या के मामले में उत्तर प्रदेश तीसरे नंबर पर रहा, जबकि नवजात का परित्याग करने के मामले में हरियाणा तीसरे स्थान पर रहा. हरियाणा में 216 नवजात को जन्म के बाद झाड़ियों में, नालियों में या कचड़े के ढेर के बीच मरने के लिए छोड़ दिया गया. इस राज्य में 25 भ्रूण हत्या के मामले रिकॉर्ड किये गये.
उत्तर प्रदेश में हालांकि नवजात को फेंके जाने की संख्या बहुत कम है. देश की सबसे ज्यादा आबादी वाले इस प्रदेश में 12 बच्चों का परित्याग किया गया, जबकि 43 की भ्रूण हत्या 4 साल के दौरान कर दी गयी.
पा-लो-ना ने जारी किये आंकड़े
पिछले दिनों रांची में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये हुए एक वेबिनार में शिशु हत्या व नवजात के असुरक्षित परित्याग को रोकने की दिशा में काम करने वाली गैर-सरकारी संस्था पा-लो-ना ने 6 राज्यों से संबंधित आंकड़े जारी किये, जिसमें ये तथ्य सामने आये.
पा-लो-ना एक सामाजिक जागरूकता अभियान है, जिसका उद्देश्य नवजात शिशुओं की हत्या और उनके असुरक्षित परित्याग जैसे अदृश्य अपराध पर समाज व सरकार का ध्यान आकर्षित करना है. उसके कारणों के मूल को जानना, समझना व इस जघन्य अपराध को रोकने के उपाय खोजने में भी यह संस्था जुटी हुई है.
एनसीआरबी के पास बिहार-झारखंड के आंकड़े नहीं
इतना ही नहीं इस तरह के अपराध से बेखबर संबंधित विभागों एवं उसके अधिकारियों को भी इस संबंध में जागरूक करने की कोशिश पा-लो-ना कर रहा है. यह संस्था 6 राज्यों में काम कर रही है, जिसमें झारखंड, बिहार भी शामिल हैं. एनसीआरबी के रिकॉर्ड में इस अपराध से जुड़ा एक भी मामला बिहार या झारखंड में दर्ज नहीं है.
पा-लो-ना की प्रमुख मोनिका आर्य ने बताया कि नवजात शिशुओं के परित्याग का डेटा केवल पा-लो-ना ही एकत्रित कर रहा है. यह संस्था पूरे देश से आंकड़े जुटाने का प्रयास कर रहा है, लेकिन इन्हीं राज्यों से सबसे ज्यादा घटनाएं इनके पास रिपोर्ट हुई हैं. अन्य राज्यों में ऐसी घटनाएं ज्यादा हुईं, लेकिन उसके आंकड़े पा-लो-ना तक नहीं पहुंचे.
Posted By : Mithilesh Jha