Varanasi News: शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन माता कुष्मांडा के दर्शन का विधान है. इस क्रम में काशी के दुर्गाकुंड स्थित अति प्राचीन दुर्गा मंदिर में मां कूष्मांडा के दर्शन-पूजन के लिए गुरुवार की भोर में श्रृंगार व आरती के बाद पट खोला गया. इस बीच मंदिर परिसर व आस-पास का समूचा क्षेत्र माता के जयकारे से गूंज रहा था. हालांकि, दर्शनार्थी तड़के तीन बजे से ही कतारों में खड़े थे. श्रद्धालुओं को कतारबद्ध होने पर ही मंदिर में प्रवेश मिल रहा था. भीड़ को नियंत्रित करने व शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए पर्याप्त तादाद में पुलिस के जवान तैनात किए गए हैं. इसमें महिला सिपाही व दारोगा भी शामिल हैं.
श्रद्धालु मंदिर में मुख्यद्वार से प्रवेश व दक्षिणी द्वार से निकल रहे थे. मानस मंदिर, दुर्गाकुंड के पूरब व उत्तर की तरफ बैरियर लगाकर सभी तरह के वाहनों का आवागमन रोक दिया गया है. इन स्थानों पर तैनात पुलिसकर्मी पूरी सख्ती बरत रहे हैं. माता के दर्शन का सिलसिला आज मध्यरात्रि (कपाट बंद होने तक) अनवरत चलता रहेगा. यहां के अलावा नगर और ग्रामीण क्षेत्रों के देवी मंदिरों में भी दिनभर दर्शन-पूजन और अन्य धार्मिक अनुष्ठान किए गए. मंदिरों के आसपास फूल-माला, चुनरी, प्रसाद समेत अन्य पूजन सामग्री की दुकानें लगाई गई हैं. इन दुकानों पर खरीद करने वालों की बराबर भीड़ दिखी.
दुर्गाकुंड स्थित दुर्गा मंदिर के महंत दीपू दूबे ने बताया कि नवरात्रि के चौथे दिन माता कुष्मांडा के दर्शन का विधान है. आज के दिन यहां दर्शन का खास महत्व है. वैसे तो पूरे साल श्रद्धालु देश के विभिन्न हिस्सों से आकर मां कूष्मांडा की आराधना करते हैं. मगर आज के दिन मां को माल-पुआ चढ़ाने का विशेष महत्व है. साथ ही कन्याओं को रंग-बिरंगी चुनरी व कपड़े भेंट करने से धन-संपदा में वृद्धि होती है. मां का दर्शन करने आई सोनाली यादव ने कहा कि वह पिछले कई वर्षों से हर नवरात्रि के दौरान यहां दर्शन करने आ रही हैं. इससे उन्हें व उनके परिवार को आत्मिक शांति मिलती है. मां सबकी हर मनोकामना पूरी करती हैं.
मान्यता है कि ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाली देवी ने अपनी मंद व हल्की मुस्कान से अण्ड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न किया है. इसलिए इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से अभिहित किया गया है. जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अंधकार ही अंधकार व्याप्त था तब इन्हीं देवी ने अपने ‘ईषत’ (बहुत थोड़ा) हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी. अतः यही सृष्टि की आदि-स्वरूपा और आदि शक्ति हैं. इनके पूर्व ब्रह्मांड का अस्तित्व नहीं था. इनका निवास सूर्य मंडल के भीतर के लोक में है. सूर्य लोक में निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है. इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही है. इन्हीं के तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रहीं हैं. अन्य कोई देवी-देवता इनके तेज व प्रभाव की समानता नहीं कर सकते.