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उत्तर प्रदेश चुनाव : भाजपा के लिए कहीं ‘काल’ ना बन जाये दलित उत्पीड़न

मोदी सरकार में दलित उत्पीड़न की घटना थमने का नाम ही नहीं ले रही है. आज भी उत्तर प्रदेश के कानपुर में पुलिस कस्टडी में एक दलित व्यक्ति की मौत के बाद से वहां उग्र प्रदर्शन जारी है. प्रदर्शनकारियों में सरकार के प्रति आक्रोश साफ नजर आ रहा है. गुजरात के उना में दलितों के […]

मोदी सरकार में दलित उत्पीड़न की घटना थमने का नाम ही नहीं ले रही है. आज भी उत्तर प्रदेश के कानपुर में पुलिस कस्टडी में एक दलित व्यक्ति की मौत के बाद से वहां उग्र प्रदर्शन जारी है. प्रदर्शनकारियों में सरकार के प्रति आक्रोश साफ नजर आ रहा है. गुजरात के उना में दलितों के साथ जो कुछ हुआ उसके एवज में आनंदीबेन को मुख्यमंत्री पद गंवाना पड़ा. गुजरात ही नहीं उत्तर प्रदेश और बिहार में भी दलित उत्पीड़न की घटनाएं सामने आयीं हैं. उसपर यूपी के निष्कासित भाजपा नेता ने बसपा सुप्रीमो मायावती की तुलना ‘वेश्या’ से करकर दलितों को और भी आहत कर दिया है. यहां तक की केंद्र में राज्यमंत्री रामदास अटावले ने भी यह कह दिया है कि गौ रक्षा के नाम पर इंसान की हत्या नहीं हो सकती है. वे एक कद्दावर दलित नेता है.

दलितों की नाराजगी भाजपा को पड़ेगी महंगी

पिछले लोकसभा चुनाव में दलित भाजपा के साथ आये थे, जिसके कारण मोदी सरकार बहुमत में आयी थी, इसमें कोई दो राय नहीं है. लेकिन अब जो स्थिति बन रही है, उससे यह संदेश जा रहा है कि भाजपा दलित विरोधी पार्टी है. ऐसे में उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव जीतना भाजपा के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है. हालांकि अमित शाह ने दलितों को रिझाने के वाराणसी के जोगियापुर गांव में एक दलित के घर जमीन पर बैठकर भोजन किया था. लेकिन उना की घटना ने उनके इस प्रयास को जल्दी ही धूल में मिला दिया. नरेंद्र मोदी खुद पिछड़े तबके से आते हैं, लेकिन मोदी सरकार की छवि दलित विरोधी की बनती जा रही है. रोहित वेमुला की खुदकुशी के मामले ने इस छवि को और भी मजबूत किया है.

दलित वोट हथियाने के लिए सभी पार्टियां लगा रहीं हैं जोर

जैसे ही दलितों पर अत्याचार हुआ, सभी पार्टियां दलित वोट अपने पक्ष में करने के लिए कमर कसकर तैयार हो गयी. राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल और मायावती सबने राजनीति तेज कर दी. मायावती तो खैर दलितों के नाम पर ही राजनीति करती हैं, इसलिए यह उनका वाजिब हक भी था. दलितों में अत्याचार ने बसपा को एकबार फिर नया जीवन दिया है. अरविंद केजरीवाल तो दलितों को रिझाने में इसलिए भी जुटे हैं क्योंकि उन्हें पंजाब का चुनाव जीतना है, वे तो कांशीराम की बहन स्वर्ण कौर को किसी तरह चुनावी मैदान में अपने पक्ष में करना चाहते हैं, ताकि दलितों का साथ उन्हें मिल जाये. कांग्रेस तो शुरू से ही खुद को दलितों और आदिवासियों का हितैषी बताती रही है. ऐसे में अगर भाजपा के पक्ष में गया दलित कांग्रेस के साथ आ गया और ब्राह्मण भी शीला दीक्षित के नाम पर उनके साथ आ गये तो भाजपा की लुटिया तो डूब ही गयी समझिए. वही समाजवादी पार्टी भी दलितों को रिझाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है. सूत्रों से प्राप्त जानकारी के सपा अपने दलित प्रकोष्ठ को जागृत कर रही है.

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