गोरखपुर : वैसे तो भारतीय राजनीति में उत्तर प्रदेश के नवनियुक्त मुख्यमंत्री, भाजपा के पूर्व सांसद और गोरक्षपीठ मठ के महंत योगी आदित्यनाथ भले ही कट्टर छवि के राष्ट्रवादी और हिंदूवादी नेता माने जाते हों, लेकिन उनके जीवन का दूसरा पहलू यह भी है कि उनके मठ का पूरा प्रबंधन अल्पसंख्यक समुदाय के यासिन अंसारी ही संभालते हैं. यह बात दीगर है कि योगी आदित्यनाथ एक महंत हैं और भगवा वस्त्र धारण कर राजनीति के जरिये सामाजिक कार्यों को पूरा करते हैं, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि उनके मठ में सांप्रदायि़कता नाम की कोई चीज नहीं नजर आती. बताया यह भी जाता है कि पिछले 35 साल से गोरखनाथ मंदिर के अंदर होने वाला हर निर्माण कार्य अल्पसंख्यक समुदाय के ही एक व्यक्ति की निगरानी में होता आ रहा है. प्रबंधन का कामकाज संभालने वाले यासिन अंसारी मंदिर के खर्च का हिसाब-किताब रखते हैं.
अंग्रेजी के अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार, अंसारी ने बताया कि मेरे छोटे महाराज (मठ में योगी आदित्यनाथ को छोटे महाराज के नाम से पुकारा जाता है.) के साथ बेहद दोस्ताना संबंध हैं. जब भी वह यहां आते हैं, तो सबसे पहले मुझे याद करते हैं और काम के बारे में पूरी जानकारी लेते हैं. मैं उनके घर में आजादी से घूमता हूं. उनकी रसोई में जाता हूं. यहां तक कि उनके बेडरूम में भी जाता हूं और उनके साथ खाना भी खाता हूं. मंदिर के पास कई ऐसी दुकानें हैं, जो मुस्लिम चलाते हैं.
बातचीत के दौरान अंसारी ने बताया कि मैंने कई बार योगी आदित्यनाथ को गरीबों की मदद करते देखा है. वह यह नहीं देखते कि समस्याग्रस्त व्यक्ति किस जाति, धर्म या संप्रदाय से ताल्लुक रखता है. छोटे महाराज शादी-समारोहों में भाग लेते हैं. मंदिर परिसर में एक दुकान चलाने वाली अल्पसंख्यक महिला अजीजुन्निसा ने बताया कि पिछले 35 साल से वह यहां दुकान चला रही हैं. उन्होंने कभी महसूस नहीं किया कि योगी ने किसी को सम्मान न दिया हो या भेदभावपूर्ण व्यवहार किया हो.
वहीं, 20 साल से मंदिर परिसर में चूड़ियों की दुकान लगाने वाले मोहम्मद मुताकिम ने बताया कि मंदिर के अंदर दुकानों और अन्य कामों के जरिये कई मुस्लिम परिवार अपनी रोज़ी-रोटी कमाते हैं, उनमें किसी बात का भय नहीं. वहीं, यासिन अंसारी ने बताते हैं कि उनके पिता के बड़े भाई महंत दिग्विजयनाथ की पुरोहित बनने की विधि कार्यक्रम में शामिल हुए थे और मंदिर में रसोई की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गयी थी. उन्होंने बताया कि 1977-83 तक वह मंदिर के खजांची थे और 1984 से वह मंदिर के निर्माण कार्यों के सुपरवाइजर के तौर पर काम कर रहे हैं.
इतना ही नहीं, गोरखनाथ मंदिर के पहले इंजिनियर निसार अहमद हुआ करते थे, जो बाद में महाराणा प्रताप पॉलिटेक्निक के प्रधानाचार्य बन गये थे. उन्होंने बताया कि मैं मंदिर का इंजिनियर था. साधना भवन, यात्री निवास, हिंदू सेवाश्रम, मंदिर में दुकानें, गोरखनाथ अस्पताल की नयी इमारत, संस्कृत विद्यालय, राधाकृष्ण मंदिर और कई अन्य मंदिर मेरे द्वारा दिये डिजाइन के अनुरूप बनाये गये हैं. अब मैं सेवानिवृत्त हो चुका हूं.