1885 में हंडे की रोशनी से शुरू हुई रामबारात में आधुनिकता ने लगाए चार चांद, भव्य रोशनी से जगमगाता है मार्ग
137 साल पहले रामबारात की शुरुआत हुई थी. कुछ लोगों से शुरू हुई इस राम बरात में साल दर साल लोगों का कुनबा जुड़ता गया और अब यह राम बरात उत्तर भारत की सबसे बड़ी रामबारात हो गई है. आइए आपको बताते हैं क्या इतिहास है इस रामबारात का और कैसे बनी यह उत्तर भारत की भव्य रामबारात.
Agra News: उत्तर भारत की सुप्रसिद्ध रामबारात 2 साल के विराम के बाद फिर से चढ़ने को तैयार है. 137 साल पहले रामबारात की शुरुआत हुई थी. कुछ लोगों से शुरू हुई इस राम बरात में साल दर साल लोगों का कुनबा जुड़ता गया और अब यह राम बरात उत्तर भारत की सबसे बड़ी रामबारात हो गई है. आइए आपको बताते हैं क्या इतिहास है इस रामबारात का और कैसे बनी यह उत्तर भारत की भव्य रामबारात.
137 साल पहले हुई थी शुरुआत
सर्वप्रथम आगरा के पुराने शहर रावत पाड़ा के व्यापारियों ने रामलीला और रामबारात की शुरुआत की. रामलीला का वर्ष 1885 में लाला चन्नोमल की बारहदरी, श्री मनकामेश्वर मंदिर गली में पहली बार मंचन किया गया. तभी पहली बार बैलगाड़ी पर रामबारात निकाली गई. इस बार ताजनगरी में 21 सितंबर को राम बारात निकलेगी. 21 सितंबर से 23 सितंबर तक दयालबाग में जनकपुरी का आयोजन किया जाएगा जिस का समापन 8 अक्टूबर को होगा.
1930 से रामलीला मैदान में शुरू हुआ मंचन
आगरा में रामलीला महोत्सव की महत्वता बढ़ने के साथ-साथ इसका स्थान भी बदल गया और लाला चन्नोमहल की बारहदरी के बाद रामलीला का मंचन रावतपाड़ा चौराहे पर होने लगा. रामलीला कार्यक्रम के लिए बनी श्री रामलीला कमेटी ने 1930 में छावनी परिषद से रामलीला मैदान को रामलीला मंचन के लिए ले लिया और मैदान में एक मंच तैयार किया गया जिसके बाद से अब तक रामलीला का मंचन वहीं होता है. शुरुआत में रामलीला का सामान रखने के लिए परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था ऐसे में कमेटी ने 1940 में बारहदरी में एक भवन बनाया जहां पर रामलीला का सामान रखा जाने लगा.
बैलगाड़ी पर निकली थी पहली रामबारात
प्राप्त जानकारी के अनुसार शुरुआत में जब रामबारात निकाली जाती थी तब बिजली की व्यवस्था ना होने के चलते हंडे की रोशनी में बैलगाड़ी पर रामबारात निकलती थी. लेकिन जैसे जैसे समय बदला आधुनिकता के युग में रामबारात के लिए बिजली व्यवस्था का प्रयोग होने लगा. पुराने समय में रामबारात स्वर्गीय लाला चन्नोमल की बारहदरी मनकामेश्वर मंदिर से शुरू होकर, रावतपाड़ा, अग्रसेन मार्ग, सुभाष बाजार, दरेसी नंबर 1 व दो, छत्ता बाजार, बेलनगंज, पथवारी, धूलियागंज, सेव का बाजार, किनारी बाजार, कसरेट बाजार, और फिर से रावतपाड़ा होते हुए स्वर्गीय चन्नोमल की बारहदरी पर समाप्त होती थी.
हाथियों पर बैठते थे श्री राम और अन्य भाई
अपने शुरुआती चरणों में रामबारात बैलगाड़ी पर निकाली जाए करती थी. उसके बाद रामबारात के लिए भरतपुर नरेश के हाथी मंगाए गए और हाथियों पर प्रभु श्री राम के साथ उनके चारों भाइयों को बैठाकर रामबारात निकाली जाती थी. वहीं 2011 में हाथियों के रामबारात में शामिल करने पर प्रतिबंध लग गया. इसके बाद रामबारात को रथ पर निकालना शुरू कर दिया गया. श्री राम और उनके भाइयों की सवारी रत्न जड़ित रथों पर निकाली जाने लगी. वहीं इस राम बरात में विष्णु भगवान की सवारी के लिए रामलीला कमेटी ने 1973-74 में एक चांदी का रथ बनवाया था. इस बेशकीमती रथ को देखने के लिए लोग रामबारात में काफी संख्या में उमड़ते थे.
अब तक तीन बार नहीं निकली रामबारात
1885 से लगातार आगरा में रामबारात का आयोजन किया जा रहा है, लेकिन 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय और विगत 2 साल कोरोना महामारी के चलते रामलीला व रामबारात का आयोजन जिले में नहीं किया गया.
अन्य जिले व प्रदेश से आते हैं श्रद्धालु
जिले में सजने वाली रामबारात के लिए करीब 100 झांकियां तैयार की जाती हैं. जिस दिन रामबारात निकलती है श्री राम और उनके भाइयों के साथ तमाम झांकियां रामबारात का मुख्य आकर्षण बनती हैं. वही इस रामबारात को देखने के लिए आगरा और आसपास के जिलों व प्रदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु आगरा पहुंचते हैं.
बिना पैसे के रामबारात में शामिल होते हैं बैंड
उत्तर भारत की सबसे बड़ी रामबारात में आगरा के तमाम बैंड संचालक बिना पैसे के अपने बैंड की धुन बजाते हैं. वहीं यह काम आगरा के बैंड संचालक सालों से करते चले आ रहे हैं. सुधीर बैंड के राजन शर्मा ने बताया कि जब रामबारात की शुरुआत हुई थी तो इसमें सलमा बैंड बजा करता था. जिसके बाद जगदीश बैंड शामिल हुआ और अब शहर के करीब 11 प्रमुख बैंड इसमें शिरकत करते है. जिसमें इस साल आने वाले बैंड जगदीश बैंड, सुधीर, मिलन, कुमार, श्री जी, प्रह्लाद, चावला, मोहन, आनंदा, महाराजा, फौलाद बैंड शामिल होंगे.
सांप्रदायिक सौहार्द का देती है संदेश
रामबारात में बजने वाले यह बैंड सौहार्द का भी संदेश देते हैं. दरअसल इन सभी बैंड में जो कर्मी अपनी धुन बजाते हैं वह अधिकतर मुस्लिम समुदाय से हैं. और रामबारात के लिए वह करीब एक दो महीने पहले से ही तैयारी शुरू कर देते हैं. सुधीर बैंड में धुन बजाने का काम करने वाले मास्टर रउफ ने बताया कि इस बार उन्होंने “राम को लाये हैं, हम उनको लाएंगे” “हर हर शम्भू” और “रामजी की निकली सवारी” गाने की धुन तैयार की है. जिसे वह रामबारात में बजायेंगे.
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रिपोर्ट : राघवेंद्र गहलोत