अखिलेश यादव बोले, ‘बीमा’ तक को जो सरकार पूंजीपतियों के हाथों बेच रही है, वो देश का भविष्य क्या बनाएगी
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव का केंद्र की मोदी सरकार और यूपी की योगी सरकार पर हमला लगातार जारी है. उन्होंने झांसी से यूपी की योगी सरकार की खिंचायी की तो ट्विटर के माध्यम से केंद्र सरकार को आइना दिखाया है.
Lucknow: समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने केंद्र सरकार की सरकारी उपक्रमों को बेचने की नीति पर सवाल खड़े किये हैं. गुरुवार को उन्होंने ट्वीट के माध्यम से एक बयान जारी किया, जिसमें बीमा कंपनी को बेचने को लेकर सवाल किया गया है.
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने लिखा है कि ‘भविष्य की अनिश्चितता व जोखिम से बचानेवाले ‘बीमा’ तक को जो सरकार पूंजीपतियों के हाथों बेच रही है, वो देश का भविष्य क्या बनाएगी. परिवारवाले ही बीमा की ज़रूरत व सुरक्षा का महत्व समझते हैं. मध्य वर्ग को इस पर गंभीरता से सोचना होगा. भाजपा देश को आर्थिक बदहाली के आपातकाल में ले आई है.’
भविष्य की अनिश्चितता व जोखिम से बचानेवाले ‘बीमा’ तक को जो सरकार पूँजीपतियों के हाथों बेच रही है, वो देश का भविष्य क्या बनाएगी।
परिवारवाले ही बीमा की ज़रूरत व सुरक्षा का महत्व समझते हैं। मध्य वर्ग को इस पर गंभीरता से सोचना होगा।
भाजपा देश को आर्थिक बदहाली के आपातकाल में ले आई है। pic.twitter.com/uIQdrIWraI— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) May 5, 2022
अखिलेश ने ली चुटकी कहा, मंत्री पा रहे हैं अपने शौक के विभाग
अखिलेश यादव ने झांसी में प्रेस कांफ्रेंस में कई मामलों में बीजेपी सरकार पर चुटकी भी ली. उन्होंने कहा कि भाजपा के लोगों की यही समस्या है कि उनके मंत्रियों को कई बार उनके शौक के हिसाब से विभाग मिल जाते हैं. अखिलेश ने यह बात तब कही, जब यह पूछा गया कि उनसे आबकारी मंत्री ने उनकी तुलना राहुल गांधी से किए जाने के संबंध में पूछा गया था. अखिलेश यादव ने यह भी कहा कि उन्हें इस तरह का बयान नहीं देना चाहिए, लेकिन आपने पूछा है इसलिए यह कहना पड़ रहा है.
भारतीय जनता पार्टी की केंद्र और यूपी की सरकार पर हमला करते हुए कहा कि डबल इंजन की सरकार में आम जनता को सुविधाएं अधिक मिलना चाहिए, लेकिन आम जनता अपनी मूलभूत समस्याओं के लिए परेशान हाल घूम रही है. समाजवादी पार्टी जनता की समस्याओं को लेकर लगातार आंदोलन करती रही है और करती रहेगी. फिर भले ही उसके लिए सपा के एक-एक कार्यकर्ता को सड़क पर क्यों न आना पड़े.