Loading election data...

मृतक आश्रित कोटे में अनुकंपा नियुक्ति पाने की हकदार नहीं है विवाहित पुत्री, इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शनिवार को महत्वपूर्ण फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि विवाहित पुत्री मृतक आश्रित कोटे में अनुकंपा नियुक्ति पाने की हकदार नहीं है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 3, 2021 6:21 AM
an image

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शनिवार को बड़ा फैसला दिया. कोर्ट ने कहा कि विवाहित पुत्री अपने पिता की मृत्यु के बाद मृतक आश्रित कोटे में अनुकंपा नियुक्ति पाने की हकदार नहीं है. कोर्ट की एक खंडपीठ ने एकल न्यायपीठ के 9 अगस्त 2021 को दिए उस फैसले को पलट दिया है, जिसमें कहा गया है कि विवाहित पुत्री भी परिवार का सदस्य है और वह मृतक आश्रित कोटे में अनुकंपा नियुक्ति पाने की हकदार है.

यूपी सरकार ने एकल न्यायपीठ के फैसले के खिलाफ विशेष अपील दाखिल की थी. जिस पर कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति एमएन भंडारी और न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की पीठ ने सुनवाई की.

Also Read: UP News: राजनीतिक दलों में अपराधियों को टिकट देने का चलन, इस पर लगे रोक, बिकरू कांड पर इलाहाबाद हाईकोर्ट

खंडपीठ ने विवाहित पुत्री को अनुकंपा नियुक्ति की हकदार न मामने के पीछे तीन वजहें बताते हुए कहा कि पहली, शिक्षण संस्थाओं के लिए बने रेगुलेशन 1995 के तहत विवाहित पुत्री परिवार का सदस्य नहीं है. दूसरा, आश्रित कोटे में नियुक्ति की मांग अधिकार के रूप में नहीं की जा सकती. याची ने इस बात को छिपाया कि उसकी मां को पारिवारिक पेंशन मिल रही है और वह याची पर आश्रित नहीं है. तीसरा, कानून एवं परंपरा दोनों के अनुसार विवाहित पुत्री अपने पति की आश्रित होती है, न की पिता की.

Also Read: Mahant Narendra Giri Death: मामले की CBI से जांच कराने की मांग को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल

दरअसल, याचिकाकर्ता माधवी मिश्रा ने विवाहिता पुत्री के तौर पर विमला श्रीवास्तव केस के आधार पर मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति की मांग की थी. याची के पिता इंटर कॉलेज में तदर्थ प्रधानाचार्य पद पर कार्यरत थे. सेवाकाल में ही उनकी मौत हो गई. एकलपीठ ने याची को अनुकंपा नियुक्ति पर विचार करने का निर्देश दिया, जिसका राज्य सरकार ने विरोध किया.

राज्य सरकार के अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता सुभाष राठी ने कहा कि मृतक आश्रित विनियमावली 1995, साधारण खंड अधिनियम 1904, इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम व 30 जुलाई 1992 के शासनादेश के तहत विधवा, विधुर, पुत्र, अविवाहित या विधवा पुत्री को आश्रित कोटे में नियुक्ति पाने का हकदार माना गया है. 1974 की मृतक आश्रित सेवा नियमावली सरकारी सेवकों के लिए है, जो शिक्षण संस्थाओं की नियुक्ति पर लागू नहीं होती. उन्होंने कहा कि एकलपीठ ने गलत ढंग से इसके आधार पर नियुक्ति का आदेश दिया है. वैसे भी सामान्य श्रेणी का पद खाली नहीं है.

सुभाष राठी ने कहा, मृतक की विधवा पेंशन पा रही है. जिला विद्यालय निरीक्षक शाहजहांपुर ने नियुक्ति से इंकार कर गलती नहीं की है. याची अधिवक्ता ने कहा कि सरकार ने कल्याणकारी नीति अपनाई है. विमला श्रीवास्तव केस में कोर्ट ने पुत्र-पुत्री में विवाहित होने के आधार पर भेद करने को असंवैधानिक करार देते हुए नियमावली के अविवाहित शब्द को रद्द कर दिया है.

Also Read: साहस भरा था इंदिरा गांधी को अयोग्य ठहराने वाला 1975 का इलाहाबाद हाइकोर्ट का फैसला, बोले चीफ जस्टिस

खंडपीठ ने कहा कि आश्रित की नियुक्ति का नियम जीविकोपार्जन करने वाले की अचानक मौत से उत्पन्न आर्थिक संकट में मदद के लिए की जाती है. मान्यता प्राप्त एडेड कालेजों के आश्रित कोटे में नियुक्ति की अलग नियमावली है तो सरकारी सेवकों की 1994 की नियमावली इसमें लागू नहीं होगी. कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के डायरेक्टर आप ट्रेनीज कर्नाटक केस के फैसले का हवाला दिया और कहा कि आश्रित कोटे की नियुक्ति सामान्य नियम का अपवाद है.

कोर्ट ने कहा कि किसी को आश्रित कोटे में नियुक्ति पाने का कानूनी अधिकार नहीं है. लोक सेवा के पदों को संविधान के अनुच्छेद 14व 15के तहत ही भरा जाय. आश्रित की नियुक्ति राज्य सरकार के नियमों के अनुसार ही की जा सकती है.

Also Read: ‘गाय को घोषित किया जाए राष्ट्रीय पशु, रक्षा के लिए बने सख्त कानून’, इलाहाबाद हाई कोर्ट की बड़ी टिप्पणी

Posted By: Achyut Kumar

Exit mobile version