UP: उच्च प्राथमिक विद्यालयों के अनुदेशकों को HC से झटका, 17 हजार मानदेय की अपील पर सुनाया फैसला
जस्टिस राजेश चौहान की एकल पीठ ने 3 जुलाई 2019 को उच्च प्राथमिक विद्यालयों में तैनात अनुदेशकों को 17 हजाररुपये मानदेय देने का आदेश दिया था. जस्टिस चौहान के इस आदेश पर राज्य सरकार ने विशेष अपील दाखिल कर फैसले को चुनौती दी.
Lucknow: इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक आदेश से उच्च प्राथमिक विद्यालयों में तैनात अनुदेशकों को बड़ा झटका लगा है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उच्च प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत अनुदेशकों को ब्याज सहित 17,000 रुपये मानदेय देने के एकलपीठ के फैसले को रद्द कर याचिका खारिज कर दी है.
राज्य सरकार की विशेष अपील स्वीकार
कोर्ट ने कहा है कि अनुदेशकों को केवल सत्र 2017-18 के लिए ही 17,000 रुपये मानदेय दिया जाएगा. इसके साथ ही कोर्ट ने राज्य सरकार की विशेष अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया है.
राज्य सरकार ने विशेष अपील की थी दाखिल
दरअसल, जस्टिस राजेश चौहान की एकल पीठ ने 3 जुलाई 2019 को उच्च प्राथमिक विद्यालयों में तैनात अनुदेशकों को 17,000 रुपये मानदेय देने का आदेश दिया था. जस्टिस चौहान के इस आदेश पर राज्य सरकार ने विशेष अपील दाखिल कर फैसले को चुनौती दी.
हाईकोर्ट ने फैसला रखा था रिजर्व
इलाहबाद उच्च न्यायलय के चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस जेजे मुनीर की डिवीजन बेंच ने मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद 8 सितंबर 2022 को फैसला रिजर्व कर लिया था. इसके बाद अब कोर्ट ने सरकार का पक्ष माना और पुराने फैसले में बदलाव करते हुए अनुदेशकों को केवल सत्र 2017-2018 के लिए 17 हजार मानदेय देने का निर्देश दिया. हाईकोर्ट के इस फैसले से अनुदेशकों को बड़ी मायूसी मिली है. हालांकि कोर्ट ने राज्य सरकार को स्वतंत्र निर्णय करने की छूट दी है.
एक सत्र के लिए होती है संविदा पर नियुक्ति
कोर्ट ने कहा कि संविदा पर नियुक्ति एक सत्र के लिए होती है. इसलिए संबंधित को उसी सत्र का मानदेय पाने का अधिकार है. प्रदेश के लगभग 27 हजार अनुदेशकों का मानदेय 2017 में केंद्र सरकार ने बढ़ाकर 17,000 रुपये कर दिया था, जिसको यूपी सरकार ने लागू नहीं किया था. मानदेय बढ़ाने की मांग को लेकर अनुदेशकों ने हाईकोर्ट में रिट दाखिल की थी.
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इन्होंने दाखिल की थी याचिका
एकलपीठ ने अनुदेशकों को सत्र 2017 से 17000 प्रतिमाह मानदेय 9 प्रतिशत ब्याज के साथ देने का आदेश दिया था. याची विवेक सिंह, आशुतोष शुक्ला और भोलानाथ पांडेय की ओर से याचिका दाखिल की गई थी. याचिका पर पारित आदेश को राज्य सरकार ने चुनौती दी थी.