राम जन्मभूमि मामला : अब अगले साल 8 फरवरी को होगी सुनवाई, जानें सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील सिब्बल ने क्या कहा
नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार से अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले पर अंतिम सुनवाई शुरू हो गयी है. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की अगली तारिख 8 फरवरी 2018 को मुकर्रर की है. आज कोर्ट में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद प्रकरण में मालिकाना हक के विवाद में दायर दीवानी अपीलों सुनवाई हुई और बहस […]
नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार से अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले पर अंतिम सुनवाई शुरू हो गयी है. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की अगली तारिख 8 फरवरी 2018 को मुकर्रर की है. आज कोर्ट में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद प्रकरण में मालिकाना हक के विवाद में दायर दीवानी अपीलों सुनवाई हुई और बहस भी हुई. अगले साल आठ फरवरी को अगली सुनवाई होगी. कोर्ट ने इन अपील में एडवोकेट्स ऑन रिकार्ड को निर्देश दिया कि वे एक साथ बैठकर यह सुनिश्चत करें कि सारे दस्तावेज दाखिल हों और उन पर संख्या भी लिखी हो.
सुनवाई के दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से पक्ष रखते हुए वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी कि सुनवाई को जुलाई 2019 तक टाल दिया जाए, क्योंकि मामला राजनीतिक हो चुका है. कपिल सिब्बल और राजीव धवन की ओर से कोर्ट में कहा गया कि इस मामले की जल्द सुनवाई सुब्रमण्यम स्वामी की अपील के बाद शुरू हुई, जो कि इस मामले में कोई पार्टी भी नहीं हैं. सिब्बल ने कहा कि कोर्ट को देश में गलत संदेश नहीं भेजना चाहिए, बल्कि एक बड़ी बेंच के साथ मामले की सुनवाई करनी चाहिए. सिब्बल बोले कि राम मंदिर का निर्माण बीजेपी के 2014 के घोषणापत्र में शामिल है, कोर्ट को बीजेपी के जाल में नहीं फंसना चाहिए.
सिब्बल ने कहा कि रिकॉर्ड में दस्तावेज अधूरे हैं. कपिल सिब्बल और राजीव धवन ने इसको लेकर आपत्ति जताते हुए सुनवाई का बहिष्कार करने की बात कही. सिब्बल ने कहा कि अयोध्या में हुई खुदाई पर एएसआई की पूरी रिपोर्ट भी अभी रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं बनी है. उन्होंने कहा कि सभी पक्षों की तरफ से अनुवाद करवाये गये कुल 19950 पन्नों के दस्तावेज कोर्ट में औपचारिक तरीके से जमा होने चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के सामने वह सारे दस्तावेज नहीं लाये गये हैं जो इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के सामने रखे गये थे.
आपको बता दें कि अयोध्या में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवादित ढांचा गिराये जाने की 25वीं वर्षगांठ बुधवार 6 दिसंबर को है. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की तीन सदस्यीय विशेष पीठ ने चार दीवानी मुकदमों में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 13 अपीलों पर सुनवाई की. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में अयोध्या में 2.77 एकड़ के इस विवादित स्थल को इस विवाद के तीनों पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और भगवान राम लला के बीच बांटने का आदेश दिया था.
इसके बाद उत्तर प्रदेश के सेंट्रल शिया वक्फ बोर्ड ने इस विवाद के समाधान की पेशकश करते हुये कोर्ट से कहा था कि अयोध्या में विवादित स्थल से उचित दूरी पर मुस्लिम बहुल्य इलाके में मस्जिद का निर्माण किया जा सकता है. हालांकि, शिया वक्फ बोर्ड के इस हस्तक्षेप का अखिल भारतीय सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विरोध किया. इसका दावा है कि उनके दोनों समुदायों के बीच पहले ही 1946 में इसे मस्जिद घोषित करके इसका न्यायिक फैसला हो चुका है जिसे छह दिसंबर, 1992 को गिरा दिया गया था. यह सुन्नी समुदाय की है.
हाल ही में एक अन्य मानवाधिकार समूह ने इस मामले में हस्तक्षेप का अनुरोध करते हुये शीर्ष अदालत में एक अर्जी दायर की और इस मुद्दे पर विचार का अनुरोध करते हुये कहा कि यह महज संपत्ति का विवाद नहीं है बल्कि इसके कई अन्य पहलू भी है जिनके देश के धर्म निरपेक्ष ताने बाने पर दूरगामी असर पड़ेंगे. शीर्ष अदालत के पहले के निर्देशों के अनुरुप उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने उन दस्तावेज की अंग्रेजी अनुदित प्रति पेश कर दी हैं जिन्हें वह अपनी दलीलों का आधार बना सकती है. ये दस्तावेज आठ विभिन्न भाषाओं में हैं.
शीर्ष अदालत ने 11 अगस्त को उत्तर प्रदेश सरकार से कहा था कि दस सप्ताह के भीतर उच्च न्यायालय में मालिकाना हक संबंधी विवाद में दर्ज साक्ष्यों का अनुवाद पूरा किया जाए. न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि वह इस मामले को दीवानी अपीलों से इतर कोई अन्य शक्ल लेने की अनुमति नहीं देगा और उच्च न्यायालय द्वारा अपनायी गयी प्रक्रिया ही अपनायेगा.