तीन तलाक पर इलाहाबाद हाइकोर्ट ने फिर की टिप्पणी, कहा- संविधान से ऊपर नहीं कोई भी पर्सनल लॉ
इलाहाबाद : दहेज उत्पीड़न के एक मुकदमे की सुनवाई करने के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बार फिर तीन तलाक के मामले और फतवे पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है.इलाहाबाद हाईकोर्ट कीजस्टिस एसपी केसरवानी की एकल पीठ ने आरोपित शौहर अकील जमील के खिलाफ दर्ज दहेज उत्पीड़न केस को रद्द करने से इनकार कर दिया. आरोपित […]
इलाहाबाद : दहेज उत्पीड़न के एक मुकदमे की सुनवाई करने के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बार फिर तीन तलाक के मामले और फतवे पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है.इलाहाबाद हाईकोर्ट कीजस्टिस एसपी केसरवानी की एकल पीठ ने आरोपित शौहर अकील जमील के खिलाफ दर्ज दहेज उत्पीड़न केस को रद्द करने से इनकार कर दिया. आरोपित शौहर अकील जमील का कहना था कि वह अपनी बेगम सुमालिया को तलाक दे चुके हैं और दारुल इफ्ता जामा मस्जिद, आगरा से फतवा भी ले चुके हैं. इस आधार पर दहेज उत्पीड़न का मामला रद्द होना चाहिए. तीन तलाक से पीड़ित वाराणसी निवासी सुमालिया ने दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया था. इस पर हाइकोर्ट ने एसीजेएम वाराणसी के आदेश को सही करार देते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया यह आपराधिक केस का मामला है.
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इससे पहले पिछले वर्ष दिसंबर माह में इलाहाबाद हाइकोर्ट ने तीन तलाक के मामले पर कहा था कि ‘‘तुरंत तलाक’ देना ‘नृशंस’ और ‘सबसे ज्यादा अपमानजनक’ है, जो ‘भारत को एक राष्ट्र बनाने में ‘बाधक’ और पीछे ढकेलने वाला है.’ जस्टिस सुनीत कुमार की एकल पीठ ने भी कहा था कि, ‘‘भारत में मुस्लिम कानून पैगंबर या पवित्र कुरान की भावना के विपरीत है और यही भ्रांति पत्नी को तलाक देने के कानून का क्षरण करती है.’ अदालत ने टिप्पणी की कि ‘‘इस्लाम में तलाक केवल अति आपातस्थिति में ही देने की अनुमति है. जब मेल-मिलाप के सारे प्रयास विफल हो जाते हैं, तो दोनों पक्ष तलाक या खोला के माध्यम से शादी खत्म करने की प्रक्रिया की तरफ बढ़ते हैं.’
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने फिर की महत्वपूर्ण टिप्पणी
- फतवे को कानूनी बल प्राप्त नहीं है, इसलिए इसे जबरन थोपा नहीं जा सकता है.
- यदि इसे कोई लागू करता है, तो अवैध है और फतवे का कोई वैधानिक आधार भी नहीं है.
- कोई भी पर्सनल लॉ संविधान से ऊपर नहीं है.
- पर्सनल लॉ के नाम पर मुस्लिम महिलाओं सहित सभी नागरिकों को प्राप्त अनुच्छेद 14, 15 और 21 के मूल अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है.
- जिस समाज में महिलाओं का सम्मान नहीं होता है, उसे सिविलाइज्ड नहीं कहा जा सकता.
- लिंग के आधार पर भी मूल और मानवाधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता.
- कोई भी मुस्लिम पति ऐसे तरीके से तलाक नहीं दे सकता है, जिससे समानता और जीवन के मूल अधिकारों का हनन होता हो.
- कोई भी पर्सनल लॉ संविधान के दायरे में ही लागू हो सकता है.
- ऐसा कोई फतवा मान्य नहीं है जो न्याय व्यवस्था के विपरीत हो.