कोरोना से जंग: 1965 में शास्त्री और अब मोदी के साथ खड़ा हुआ पूरा देश
1965 में देश में हुए खाद्यान्न की कमी के कारण आयी थी. तब भी देश तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के साथ खड़ा था
बलिया : लगभग साढ़े छह दशक बाद देश के सामने वहीं स्थिति आयी तो वर्ष 1965 में देश में हुए खाद्यान्न की कमी के कारण आयी थी. तब भी देश तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के साथ खड़ा था और अब कोरोना वायरस संक्रमण के कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता कर्फ्यू की अपील की तो भी पूरा देश मोदी के साथ खड़ा हुआ. तब देश को जय जवान जय किसान का नारा मिला और देश में हरित क्रांति की शुरूआत हुई और अब कोरोना वायरस के पब्लिक कैरियर चेन तोड़ने में बहुत हद तक सफलता. वर्ष 1965 में देश के सामने उत्पन्न हुए खाद्यान्न संकट से निपटने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने देश के सामने एक दिन उपवास रहने की अपील की. उस समय के आम जनमानस के संचार स्रोत रेडियो पर जैसे ही प्रधानमंत्री का संदेश प्रसारित हुआ पूरे देश ने प्रधानमंत्री जी की अपील का सम्मान करते हुए सप्ताह में एक दिन उपवास करने का निर्णय लिया. निर्धारित दिन पर बहुत दिनों तक देश के सभी होटल भी नहीं खुले और एक दिन हुई अन्न की बचत से देश की इस समस्या से लड़ने की ताकत मिली.
इतना ही नहीं देश की सैन्य व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए सेना की मदद की अपील को भी लोगों ने गंभीरता से लिया और अपने अपने घरों से बचत के पैसे और गहने तक जिलाधिकारी कार्यालय में सेना के लिए बने कोष में जमा कराया था. उसी समय लाल बहादुर शास्त्री ने एक नारा ‘जय जवान-जय किसान’ का नारा दिया था. ठीक 65 वर्ष बाद 1965 वाली स्थिति देश के सामने उत्पन्न हुई. परंतु इस बार परिस्थितियां भिन्न थीं. लोगों को देश तो बचाना ही है स्वयं को भी बचाने की चुनौती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश से अपील किया कि 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लगे और लोग सुबह सात बजे से रात नौ बजे तक अपने अपने घरों में रहे. देश ने लाल बहादुर शास्त्री की अपील की तरह ही नरेंद्र मोदी की अपील का सम्मान किया और पूरा देश दिन भर अपने अपने घरों में कैद रहा. उस समय भी खाद्यान्न समस्या से निपटने में प्रधानमंत्री शास्त्री सहित देश को बल मिला और आज कोरोना से संघर्ष की राह में प्रधानमंत्री मोदी और देश को वायरस रोकने में बहुत हद तक मदद मिली.