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BJP से नीलम की हार, क्या बुलेट और बैलेट की लड़ाई में करवरिया बंधुओं ने अपनी राजनीतिक जमीन भी खो दी? पढ़ें

प्रयागराज जिले की मेजा विधानसभा सीट से भाजपा की नीलम करवरिया को हार का सामना करना पड़ा है, जबकि सपा के संदीप पटेल ने मेजा विधानसभा सीट से जीत दर्ज की है.

By Prabhat Khabar News Desk | March 12, 2022 12:43 PM
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Prayagraj News: यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के परिणाम घोषित हो चुके हैं. साथ ही घोषित हो चुके हैं प्रयागराज की मेजा विधानसभा सीट के परिणाम. सपा की रैलियों में जहां एक ओर जमकर भीड़ उमड़ी वहीं, नतीजे इसके बिल्कुल उलट रहे. भाजपा जहां प्रचंड बहुमत के साथ दोबारा सत्ता में आ गई है. वहीं उनके कुछ बड़े चेहरे चुनाव हार गए. इनमें, प्रयागराज जिले की नीलम करवरिया भी शामिल है. मेजा विधानसभा सीट से भाजपा की नीलम करवरिया सपा के संदीप पटेल से महज 3441 मत के अंतर से चुनाव हार गईं.

नीलम करवरिया की हार ने सभी को चौंकाया

विधानसभा चुनाव में संदीप पटेल को 78,164 मिले थे, जबकि नीलम करवरिया ने 74,869 मत हासिल किए. हैरान करने वाली बात यह है कि संदीप पटेल ने अपने ही चुनाव में करवरिया बंधुओं की राजनैतिक विरासत को मात दे दी. नीलम करवरिया की राजनैतिक शिकस्त से यमुनापार ही नहीं पूरे जिले का जन-मानस हैरान हैं, और हैरान हो भी क्यों न हो, करवरिया बंधुओं का राजनैतिक रसूख ही कुछ ऐसा रहा है, लेकिन लोकतंत्र में जनता ही जनार्दन है.

रेत के धंधे में करवरिया कुनबा ने जमाया रुतबा 

बहरहाल नीलम के हार की वजह बताने से पहले, आपको अतीत में ले चलते हैं. जब प्रयागराज में करवरिया बंधुओं की तूती बोलती थी. या यूं कहा जाए कि यमुनापार में धंधा जमीन का हो या रेत का सिक्का सिर्फ करवरिया बंधुओं का ही चलता था. तब करवरिया कुनबे की कमान, श्याम नारायण करवरिया उर्फ मौला महाराज और उनके भाई विशिष्ट नारायण करवरिया उर्फ भुक्खल महाराज के हाथ में थी. अब करवरिया खानदान के तीन नौजवान उदयभान करवरिया, सूरजभान करवरिया, और अधिवक्ता कपिलमुनी करवरिया ने भी पारिवारिक व्यवसाय को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया था. यह 90 का दशक था जब रेत के धंधे में करवरिया कुनबा बेहिसाब दौलत कमा रहा था.

जवाहर यादव उर्फ पंडित की बालू के धंधे में एंट्री

इस बीच गंगा पार क्षेत्र में जवाहर यादव उर्फ पंडित की भी बालू के धंधे में एंट्री हो गई. वैसे जवाहर पंडित जौनपुर जिले के थे, लेकिन वह 80 के दशक में प्रयागराज आए तो यहीं के हो गए. उनके बारे में जानकार बताते हैं कि, जवाहर यादव को बेहिसाब दौलत कमाने का जुनून था. इसके लिए वह हर रिस्क और जोखिम उठाने को तैयार थे. जिसमें उनका साथ उनके भाई सुलाकी यादव भी बखूबी देते थे.

देवी शारदा और हनुमान जी के बड़े भक्त थे जवाहर पंडित

जवाहर धीरे-धीरे शराब के धंधे से जुड़ गए. समय के साथ खूब पैसा भी कमाया. जवाहर पंडित की एक खास बात और थी, वह देवी शारदा और हनुमान जी के बड़े भक्त थे. वहीं मंगलवार को सिविल लाइन हनुमान मंदिर में दर्शन और व्रत उनके लिए जैसे अनिवार्य था. जवाहर पंडित ने जैसे जैसे पैसा और शोहरत हासिल की वैसे वैसे राजनीति लोगों से भी संबंध बनते गए.

मुलायम यादव से मुलाकात के बाद हुए उनके मुरीद हो गए

जवाहर पंडित की मुलाकात जब समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव से हुई तो वह उनके मुरीद हो गए. 1991 विधानसभा चुनाव हुए तो जवाहर पंडित ने तब इलाहाबाद की झूंसी सीट से समाजवादी पार्टी से ताल ठोक दी. लेकिन चुनाव हार गए. हार के बाद जवाहर पंडित क्षेत्र में लगे रहे और 1993 के चुनाव में 26,841 मत के बड़े अंतर से चुनाव जीत लिया. अब जवाहर पंडित अपनी दबंगई के लिए भी जाने जाने लगे थे. विधायक बनने से पहले जहां जवाहर पंडित की नजर बेशकीमती बालू के धंधे पर पड़ चुकी थी, वहीं विधायक बनने के बाद उन्होंने बालू के पट्टो को लेकर सीधे करवरिया बंधुओं से लोहा ले लिया.

गंगा और जमुना पार के दो बाहुबलियों के बीच वर्चस्व की जंग

बालू के खनन को लेकर अब गंगापार और जमुनापार के दो बाहुबली आमने-सामने थे. हालांकि दोनों मूलतः प्रयागराज के तो नहीं थे, लेकिन इनकी हनक प्रयागराज में खूब थी. जवाहर पंडित विधायक बनने के बाद करवरिया बंधुओं पर भारी पड़ने लगे थे. जिसे चाहते खनन का पट्टा दिलाते. एक समय ऐसा भी आया जब उन्होंने करवरिया बंधुओं को बालू के धंधे से बाहर कर दिया. जानकार बताते हैं कि जवाहर ने अधिकतर पट्टे अपने नाम करा लिए थे, कुछ बालू के पट्टे करवरिया बंधुओं के पास थे, लेकिन जवाहर ने उन बालू की खदानों से खनन रुकवा दिया.

इसके बाद मौला महाराज और जवाहर के बीच समझौते को लेकर बैठक हुई. इस बीच हुए विवाद के बाद जवाहर पंडित ने मौला महाराज से सीधे कह दिया कि “अपनी बालू चाहों तो हेलीकॉप्टर से ले जाओ, लेकिन मेरी जमीन से तुम्हारा एक भी ट्रक नहीं गुजरेगा ” कुछ लोग कहते हैं कि इस बीच बात इतनी बढ़ी कि जवाहर पंडित ने मौला महाराज पर राइफल तान दी.

करवरिया परिवार को था मौके का इंतजार

1995 सपा और बसपा में विवाद हो गया, समाजवादी पार्टी की सरकार गिर गई. प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. अब जवाहर पंडित की सुरक्षा वापस हो चुकी थी. शायद यह वहीं मौका था जिसका करवरिया बंधुओं को इंतजार था. 13 अगस्त 1996 को इलाहाबाद के सिविल लाइन इलाके में जवाहर पंडित को एके-47 से छलनी कर मौत के घाट उतार दिया गया. जवाहर पंडित के भाई सुलाकी यादव द्वारा पुलिस को दिए बयान के मुताबिक, घटना के दिन जवाहर पंडित अपनी मारुति 800 कार से समाजवादी पार्टी कार्यालय से अशोकनगर अपने घर जा रहे थे.

अभी वह सिविल लाइन पैलेस सिनेमा के सामने पहुंचे ही थे कि तभी जवाहर यादव की गाड़ी को एक अन्य गाड़ी टाटा सिएरा ने ओवरटेक कर रोक लिया. पीछे से आई सुमो गाड़ी ठीक जवाहर की गाड़ी के सामने आकर रुकी. सुलकी के बयान के मुताबिक, जवाहर पंडित जब तक संभलते इससे पहले ही मौला महाराज के साथ कल्लू और करवरिया बंधु ने ललकारते हुए कहा, “ए – जवहिरा” बाहर निकल, इतना कहते ही AK-47 की गोलियां चलने लगी. गोलियां ने जवाहर को सर से पांव तक छलनी कर दिया था. मौके पर ही उनकी मौत हो गई. यह पहली घटना थी जब जिले में एके-47 चली थी. वह भी विधायक पर. इस घटना से पूरे शहर में हड़कंप मच गया था.

कल्लू समेत करवरिया बंधु काट रहे आजीवन कारावास की सजा

जवाहर हत्याकांड में करीब दो दशक बाद पिछले साल फैसला आया. उदय भान करवरिया (पूर्व विधायक), सूरज भान करवरिया (एमएलसी), कपिल मुनि करवरिया( सांसद) और उनके मामा कल्लू को कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई. हालांकि कोर्ट का फैसला आने में 20 साल से अधिक का समय लग गया. इससे पहले करवरिया बंधु बाहुबली से माननीय हो गए, खूब राजनीति शोहरत कमाई. यह बात अलग है कि करवरिया बंधुओं को न उनका राजनैतिक रसूख बचा पाया न ही उनके बचाव पक्ष में पेश किए गए 50 से अधिक गवाह.

यहां तक कि कलराज मिश्रा की गवाही भी करवरिया बंधुओ को नहीं बचा सकी. कोर्ट ने जवाहर हत्या कांड में उदयभान करवरिया, सूरजभान करवरिया, कपिलमुनि करवरिया और उनके मामा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई. इस वक्त करवरिया बंधु बतौर सजायाफ्ता कैदी नैनी जेल में सजा काट रहे है. मामले में आरोपी मौला महाराज की कोर्ट का फैसला आने से पहले ही मौत हो गई थी.

वहीं, 2017 में करवरिया खानदान की राजनैतिक विरासत संभालते हुए बाहुबली उदयभान करवरिया की पत्नी ने ब्राह्मणों के गढ़ मेजा विधानसभा से बड़े अंतर से जीत हासिल की थी. लेकिन, विधानसभा चुनाव 2022 में सपा के संदीप पटेल से चुनाव हार गई. वहीं अब अतीत के पन्नों को पलट कर देखें तो आखिर में करवरिया बंधुओं को बुलेट और बैलट की लड़ाई में आखिर क्या हासिल हुआ? अब करवरिया बंधु मात्तम और शादी समारोह आदि में एक या 2 दिन के लिए पैरोल पर बाहर आते हैं, वह भी पुलिस घेरे में.

नीलम करवरिया के हार की सबसे बड़ी वजह

नीलम करवरिया के हार की सबसे बड़ी वजह बसपा के सर्वेश चंद्र तिवारी रहे. ब्राह्मण चेहरा होने के साथ ही सर्वेश ने 22,933 मत हासिल किए. सर्वेश के 22,933 मत नीलम की महज 3441 मत के हार के अंतर पर भारी पड़े. अगर सर्वेश ब्राह्मण चेहरा न होते तो शायद नीलम चुनाव जीत जाती. शायद इसीलिए नीलम की हर, संदीप की जीत के साथ साथ सर्वेश तिवारी की भी चर्चा हो रही है. वहीं जवाहर पंडित की पत्नी विजमा यादव अपना दल के प्रत्याशी पूर्व मंत्री राकेश धर त्रिपाठी को मात देते हुए फिर प्रतापुर से विधायक निर्वाचित हो गई

रिपोर्ट- एसके इलाहाबादी

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