Chandra Grahan 2022: सूतक में भी इन 3 मंदिरों के खुले रहते हैं कपाट, जानें मान्यता और क्यों होती है पूजा

Chandra Grahan 2022: भारत में तीन मंदिर ऐसे हैं, जिन पर सूतक या ग्रहण का कोई असर देखने को नहीं मिलता. सूतक के दौरान भी इन मंदिरों के कपाट खुले रहते हैं और पूजा अर्चना जारी रहती है. आइए जानते हैं कहां हैं ये मंदिर और क्या है मान्यता....

By Prabhat Khabar News Desk | November 8, 2022 11:02 AM

Aligarh News: चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan 2022) के सूतक शुरू हो चुके हैं. सूतक और ग्रहण में मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, उसमें पूजा अर्चना नहीं होती है. भारत में तीन मंदिर ऐसे हैं, जिन पर सूतक या ग्रहण का कोई असर देखने को नहीं मिलता. सूतक के दौरान भी इन मंदिरों के कपाट खुले रहते हैं और पूजा अर्चना जारी रहती है.

सूतक शुरू होते ही मंदिरों के कपाट कर दिए जाते हैं बंद

अलीगढ़ के ज्योतिषाचार्य पंडित ह्रदय रंजन शर्मा ने बताया कि, हिंदू धर्म में ग्रहण को अशुभ घटना माना जाता है. सूर्य ग्रहण में 12 घंटे पहले और चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan 2022) से 9 घंटे पहले सूतक शुरू हो जाते हैं. सूतक शुरू होते ही मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, उनमें पूजा-अर्चना वर्जित रहती है. आज चंद्रग्रहण पर सुबह 8.10 से सूतक शुरू हो गए हैं, जो चंद्रग्रहण की समाप्ति तक जारी रहेंगे.

सूतक के समय तीन मदिरों में खुले रहते हैं कपाट

दरअसल, बीकानेर, उज्जैन और गया में 3 मंदिर ऐसे हैं, जिन पर सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan 2022) के सूतक का असर नहीं पड़ता. सूतक में भी मंदिर के कपाट खुले रहते हैं, पूजा अर्चना होती है और भगवान को भोग लगाया जाता है. जिसके पीछे अलग-अलग तर्क हैं.

बीकानेर के लक्ष्मीनाथ मंदिर में खुले रहते हैं कपाट

बीकानेर स्थित प्राचीन लक्ष्मीनाथ मंदिर (laxminath mandir) में सूतक के दौरान कपाट बंद नहीं होते, पूजा अर्चना होती है और भगवान लक्ष्मीनाथ को भोग लगाया जाता है. इसके पीछे एक कहानी प्रचलित है. एक बार ग्रहण के दौरान सूतक में पुजारी ने मंदिर के कपाट बंद कर दिए थे, जिसके कारण से न तो पूजा-अर्चना हुई और न भगवान लक्ष्मी नाथ को भोग लगा. मंदिर से एक पाजेब गायब हुई, जो मंदिर के सामने एक हलवाई के पास मिली.

भगवान ने बच्चे का रूप किया धारण?

हलवाई के पास सूतक के समय में एक बालक आया और उसने पाजेब देकर हलवाई से प्रसाद लिया और अपना पेट भरा. लोगों का मानना है कि वह बच्चा स्वयं लक्ष्मीनाथ भगवान थे, जिन्होंने पाजेब देकर प्रसाद पाया और अपना पेट भरा, क्योंकि सूतक के समय कपाट बंद होने से भगवान को भोग नहीं लगा था और भगवान लक्ष्मीनाथ भूखे थे. उसी दिन से मंदिर के कपाट सूतक में भी खुले रहते हैं.

महाकाल और विष्णुपद मंदिर में खुले रहते हैं कपाट

उज्जैन के प्राचीन महाकाल मंदिर में भी सूतक का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. सूतक में भी महाकाल मंदिर के कपाट खुले रहते हैं. श्रद्धालु महाकाल के दर्शन करते हैं. केवल मंदिर में पूजा-पाठ और आरती के समय में बदलाव होता है. बिहार के गया स्थित प्राचीन विष्णुपद मंदिर में भी सूतक के दौरान कपाट खुले रहते हैं. सूतक और ग्रहण को वहां शुभ माना जाता है और इस दौरान लोग वहां पिंडदान करते हैं.

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रिपोर्ट- चमन शर्मा, अलीगढ़

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