-
यूपी के गांवों, कस्बों और छोटे शहरों में स्वास्थ्य सेवाएं राम भरोसे
-
छोटे शहरों और गांवों के संबंध में राज्य की संपूर्ण चिकित्सा व्यवस्था राम भरोसे ही कही जा सकती है : कोर्ट
-
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजित कुमार की पीठ ने जनहित याचिका पर सुनवाई की
Coronavirus in UP : उत्तर प्रदेश के गांवों, कस्बों और छोटे शहरों में स्वास्थ्य सेवाएं राम भरोसे हैं…यह तल्ख टिप्पणी इलाहाबाद हाई कोर्ट ने की है. दरअसल मेरठ के जिला अस्पताल से एक मरीज के लापता होने पर हाई कोर्ट ने सोमवार को तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि मेरठ जैसे शहर के मेडिकल कॉलेज में इलाज का यह हाल है तो छोटे शहरों और गांवों के संबंध में राज्य की संपूर्ण चिकित्सा व्यवस्था राम भरोसे ही कही जा सकती है.
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजित कुमार की पीठ ने राज्य में कोरोना वायरस के प्रसार को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी करने का काम किया. कोर्ट में पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार, 22 अप्रैल को शाम 7-8 बजे 64 वर्षीय मरीज संतोष कुमार शौचालय गया था जहां वह बेहोश होकर गिर पडा. उस वक्त जूनियर डॉक्टर तुलिका नाईट ड्यूटी पर थीं.
मामले को लेकर डॉक्टर तुलिका ने बताया कि संतोष कुमार को बेहोशी के हालत में स्ट्रेचर पर लाया गया और उसे होश में लाने की कोशिश की गई, लेकिन उसकी जान नहीं बचाई जा सकी. रिपोर्ट की मानें तो, टीम के प्रभारी डाक्टर अंशु की रात्रि की ड्यूटी थी, लेकिन वह वहां मौजूद नहीं थे. सुबह डॉक्टर तनिष्क उत्कर्ष ने शव को उस स्थान से हटवाया लेकिन व्यक्ति की शिनाख्त नहीं हो पाई.
बताया जा रहा है कि वह आइसोलेशन वार्ड में उस मरीज की फाइल नहीं ढूंढ सके. इस तरह से संतोष की लाश लावारिस मान ली गई. इसलिए शव को लावारिस मानकर पैक कर उसे निस्तारित कर दिया गया. इस मामले में कोर्ट ने कहा कि यदि डॉक्टरों और पैरा मेडिकल कर्मचारी इस तरह का रवैया अपनाते हैं और ड्यूटी करने में घोर लापरवाही दिखाते हैं तो यह गंभीर दुराचार का मामला है क्योंकि यह भोले भाले लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ जैसा है.
सख्त लहजे में कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार को इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की जरूरत है. पांच जिलों के जिलाधिकारियों द्वारा पेश की गई रिपोर्ट पर कोर्ट ने कहा कि हमें कहने में संकोच नहीं है कि शहरी इलाकों में स्वास्थ्य ढांचा बिल्कुल अपर्याप्त है और गांवों के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में जीवन रक्षक उपकरणों की एक तरह से कमी है.
कोर्ट ने ग्रामीण आबादी की जांच बढ़ाने और उसमें सुधार लाने का राज्य सरकार को निर्देश दिया और साथ ही पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने को कहा. वैक्सीनेशन के मुद्दे पर अदालत ने सुझाव दिया कि विभिन्न धार्मिक संगठनों को दान देकर आयकर छूट का लाभ उठाने वाले बड़े कारोबारी घरानों को वैक्सीन के लिए अपना धन दान देने को कहा जा सकता है. चिकित्सा ढांचे के विकास के लिए कोर्ट ने सरकार से यह संभावना तलाशने को कहा कि सभी नर्सिंग होम के पास प्रत्येक बेड पर ऑक्सीजन की सुविधा होनी चाहिए.
आगे कोर्ट ने कहा कि 20 से अधिक बिस्तर वाले प्रत्येक नर्सिंग होम व अस्पताल के पास कम से कम 40 प्रतिशत बेड आईसीयू के तौर पर होने चाहिए और 30 से अधिक बेड वाले नर्सिंग होम को ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्र लगाने की अनिवार्यता की जानी चाहिए.
भाषा इनपुट के साथ
Posted By : Amitabh Kumar